पाकिस्तान को नरेन्द्र मोदी से उम्मीद...
कुछ समय पहले ब्रिटेन के प्रसिद्ध समाचार पत्र 'डेली टेलिग्राफ' में एक समाचार छपा था जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान के उच्च स्तरीय राजनयिकों को उम्मीद है कि इन चुनावों में मोदी ही जीत हासिल करेंगे और वे भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों में आने वाली समस्याओं का हल निकालने में भी बेहतर साबित होंगे। इसका एक अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि वहां के लोग मोदी की कट्टर हिंदूवादी छवि को त्यागकर यह सोचने के लिए प्रेरित हुए हैं या कह सकते हैं कि वे ऐसा सोचने के लिए विवश हुए हैं। पर इसके साथ वे यह सोचने के लिए भी विवश हुए हैं कि भारत जैसे देश में कट्टरवादिता के साथ लोगों का साथ नहीं पाया जा सकता है। यह एक ऐसा देश है जिसे किसी एक धर्म के नाम पर नहीं चलाया जा सकता है।हालांकि पाकिस्तान में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो कि मोदी को मुस्लिमों का कट्टर दुश्मन समझता है। इस वर्ग में वे लोग भी शामिल हैं जिनसे नीर-क्षीर विवेक कर अपनी राय जाहिर करने की जिम्मेदारी होती है, लेकिन दुख का विषय है कि इन लोगों की राय और मौलाना मसूद अजहर की सोच में कोई अंतर नहीं है। उन्हें अगर कट्टर मुस्लिमवादी कहा जाए तो गलत ना होगा। लेकिन आश्चर्य है कि मोदी को लेकर उन लोगों के विचार नहीं बदले हैं जिन्हें हम बुद्धिजीवी कहते हैं या जो खुद को धर्मनिरपेक्षता के नायक समझते हैं।हाल में प्रसिद्ध लेखक सलमान रश्दी का एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें उनका कहना है कि भारत में मुस्लिमों को अभी भी मोदी से डरने की जरूरत है। हालांकि अपने बहुत से भाषणों और अपने संबोधनों में मोदी ने लगातार इस बात पर जोर दिया है कि वे 125 करोड़ देशवासियों के बारे में सोचते हैं। इससे पहले भी वे जब गुजरात के बारे में बोलते थे तो अल्पसंख्यक या बहुसंख्यकों के स्थान पर पांच करोड़ गुजरातियों की बात करते रहे हैं। इस तरह ऐसा लग रहा है कि भारत की भावी सरकार विदेश नीति के क्षेत्र में जिस गम्भीर समस्या का सामना कर सकती थी, वह समस्या अब दूर हो गई है। पर पाकिस्तान का मूड बदल जाने का मतलब यह नहीं है कि दुनिया के सभी देशों ने इस बात को स्वीकार लिया है कि मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन सकते हैं।पिछले महीने ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति सलाहकार सरताज अजीज ने यह बात बताई थी कि पाकिस्तान की सरकार नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने से चिंतित नहीं है। यानी तब तक उन्हें मोदी के प्रधानमंत्री बनने से चिंता हो रही होगी और जहां तक सरताज अजीज की बात है तो उन्हें पाकिस्तान का भावी विदेशमंत्री माना जा सकता है क्योंकि पाकिस्तान में विदेश विभाग प्रधानमंत्री नवाज शरीप के ही पास है और वे जब भी चाहें अजीज को अपना विदेश मंत्री बना सकते हैं।
अमेरिकी रुख में भी आ रहा है बदलाव... पढ़ें अगले पेज पर....
यहां तक दुनिया में मावनाधिकारों की खातिर अपना झंडा उठाए घूमने वाले अमेरिका की ओर से भी कहा गया कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो अमेरिका को उनके साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होने वाली बात सबसे पहले ब्रिटेन ने भी कही थी। लेकिन इसके बावजूद दुनिया के कुछ बुद्धिजीवियों को मोदी को लेकर परेशानी बनी रही है। पता नहीं उन्हें मोदी को लेकर इतना अविश्वास क्यों है? तब जबकि पाकिस्तान की नजर में मोदी ही प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। रेडियो रूस के विशेषज्ञ और रूस के सामरिक अध्ययन संस्थान के एक विद्वान बरीस वलखोन्स्की की इस सिलसिले में टिप्पणी है कि पाकिस्तानी राजनयिकों का तर्क सीधा-सा है कि मोदी एक ताकतवर नेता हैं और वे विश्वसनीय ढंग से ऐसी बातचीत कर सकते हैं, जिसके बाद खाली घोषणाएं नहीं होंगी, बल्कि दो देशों के बीच तनाव घटाने के लिए वास्तविक कदम उठाना भी संभव होगा। यही नहीं, विगत मार्च में डेली टेलिग्राफ को इंटरव्यू देते हुए सरताज ने वह पुराना अनुभव भी याद दिलाया था, जब भाजपा के ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ दो देशों के रिश्तों को बहुत ज्यादा बेहतर करना संभव हुआ था।तो ऐसा लग रहा है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पड़ोसियों के साथ भारत के भावी रिश्तों में जो सबसे बड़ा खतरा दिखाई दे रहा था, वह दूर हो गया है। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि एक और तथ्य की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसे लेकर न सिर्फ पश्चिम के प्रभावशाली क्षेत्रों, बल्कि भारत में भी बड़ी बेचैनी बनी हुई है।मोदी के सिलसिले में पाकिस्तानी राजनयिकों के नजरिए में आए बदलाव की चर्चा करते हुए उसी डेली टेलीग्राफ समाचार पत्र ने भी लेख के शुरू में लिखी गई प्रस्तावना में इस तथ्य की याद दिलाई थी कि सन 2002 में गुजरात में हुए मुस्लिम नरसंहार से भी मोदी का नाम जुड़ा हुआ है। अखबार ने लिखा था कि इस्लामाबाद का मानना है कि सन 2002 में 700 से ज्यादा मुस्लिमों की हत्या का दोषी एक ताकतवर नेता है, जिसके साथ क्या शांति स्थापित करने के बारे में बातचीत की जा सकती है? इस तरह शुरू से ही उस बदनाम आदमी के साथ भावी शांति वार्ता की बात की जा रही है, जिस पर मानव जाति के विरुद्ध अपराध करने का आरोप लगा हुआ है? बरीस वलखोन्स्की का कहना है कि पश्चिम के कुछ निश्चित क्षेत्रों की भावनाओं को व्यक्त करने वाले अखबार का यह विचार भी यही सिद्ध करता है कि आज नरेन्द्र मोदी वास्तव में भारत के सबसे ताकतवर नेता हैं। लेकिन यदि भारत के पुराने दुश्मन पाकिस्तान के लिए मोदी की ताकत इस बात में व्यक्त होती है कि उनके साथ विश्वसनीय बातचीत की जा सकती है तो पश्चिम के लिए मोदी के शासनकाल में भारत की स्वतंत्र नीतियों का मतलब होगा कि कम से कम पांच साल के लिए एशिया में पश्चिमी नीति के विश्वसनीय एजेंट के रूप भारत से विदाई।इस पृष्ठभूमि में भारत के उदार मीडिया द्वारा मतदाताओं के सामने मोदी की छवि को धूमिल करने का प्रयास देखकर जरा भी आश्चर्य नहीं होता है। नरेन्द्र मोदी की पार्टी को राष्ट्रवादी और सांप्रदायिक बताते हुए यह उदार मीडिया खुद नरेन्द्र मोदी को नरसंहारक बताता है। हालांकि यह बात भी सच है कि भाजपा के कुछ नेता और उससे जुड़े हुए कुछ संगठन भी उन्हें इस तरह की बात करने का मौका देते हैं। जैसे हाल ही में हिन्दू संगठन विश्व हिन्दू परिषद के एक नेता प्रवीण तोगड़िया ने भारत की जनता से यह अपील की कि वे मुस्लिमों को जमीन-जायदाद न बेचें। उन्हें अपने पड़ोस में न रहने दें। भविष्य में भावी मोदी सरकार को अपने ऐसे हितचिंतकों से सावधान रहना होगा जो कि उनके लिए सबसे बड़े दुश्मन का काम कर सकते हैं। लेकिन, यदि कुल मिलाकर स्थिति पर नजर डाली जाए तो हम देखते हैं कि सभी आरोपों के बावजूद सिर्फ नरेन्द्र मोदी ही ऐसे नेता हैं जो भारतीय समाज के धर्म-निरपेक्ष स्वरूप पर जोर दे रहे हैं, जबकि कांग्रेस और उसका कथित तौर पर धर्मनिरपेक्ष व समर्थक मीडिया सांप्रदायिक कार्ड खेलने की कोशिश कर रहा है। क्यों डांटा ने नरेन्द्र मोदी ने टीवी कार्यक्रम संचालक को... पढ़ें अगले पेज पर...
हाल ही में एक भारतीय टेलीविजन चैनल पर बोलते हुए नरेन्द्र मोदी ने कार्यक्रम के संचालक को बुरी तरह से डांटा था, जो यह कोशिश कर रहा था कि मोदी को 'हिन्दू राष्ट्रवादी’ बताया जाए। मोदी ने तब कहा था- मेरा यह मानना है कि सरकार का सिर्फ एक ही धर्म है और वह धर्म है भारत। सरकार के पास सिर्फ एक ही धार्मिक पुस्तक है, वह धार्मिक पुस्तक है संविधान और सरकार सिर्फ एक ही तरह की वफादारी निभा सकती है, कि वह अपनी जनता के प्रति वफादार हो।चाहे कुछ भी हो, लेकिन नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना यही दिखाती है कि उनका उद्देश्य यह नहीं है कि आज अपने राजनीतिक विरोधियों पर जीत हासिल की जाए और फिर कल अपने पुराने दुश्मनों से समझौता किया जाए (हालांकि वे दुश्मन ऐसी बातचीत के लिए तैयार होंगे?), बल्कि उनका मुख्य उद्देश्य तो यह है कि अपनी नकारात्मक छवि को तोड़ा जाए, जो उन लोगों ने बनाई है, जो उनके खिलाफ खुलकर नहीं बोलते, लेकिन इस बात की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं कि वास्तविक राजनीतिज्ञ की उनकी छवि को धूमिल बनाए रखा जा सके ताकि उनकी सकारात्मक कोशिशों को नाकाम किया जा सके और समाज को हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई में बांटे रखा जा सके।और, यह सारा काम उन तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी बुद्धिजीवियों का है जोकि अपने तर्कों और तथ्यों का उपयोग कर मोदी को एक खलनायक बनाए रखने तक ही सीमित रखना चाहते हैं। वे यह भी नहीं मानते हैं कि किसी भी किसी भी आदमी के विचारों में कभी कोई बदलाव भी हो सकता है। मोदी और उनके समर्थकों को ऐसे कथित बुद्धिजीवियों से सावधान रहना होगा।