Ganesh chaturthi 2025: गणेशजी की दाईं और बाईं सूंड का रहस्य
Ganesh chaturthi 2025: भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी तिथि के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस बार 27 अगस्त 2025 से लेकर 06 सितंबर तक गणेश उत्सव का आयोजन हो रहा है। आइए जानते हैं गणेश जी की दाईं और बाईं सूंड का रहस्य।
दाईं सूंड: जिस मूर्ति में सूंड के अग्रभाव का मोड़ दाईं ओर हो, उसे दक्षिण मूर्ति या दक्षिणाभिमुखी मूर्ति कहते हैं। यहां दक्षिण का अर्थ है दक्षिण दिशा या दाईं बाजू। दक्षिण दिशा यमलोक की ओर ले जाने वाली व दाईं बाजू सूर्य नाड़ी की है। जो यमलोक की दिशा का सामना कर सकता है, वह शक्तिशाली होता है व जिसकी सूर्य नाड़ी कार्यरत है, वह तेजस्वी भी होता है। इन दोनों अर्थों से दाईं सूंड वाले गणपति को 'जागृत' माना जाता है। ऐसी मूर्ति की पूजा में कर्मकांड के अंतर्गत पूजा विधि के सर्व नियमों का यथार्थ पालन करना आवश्यक है। उससे सात्विकता बढ़ती है व दक्षिण दिशा से प्रसारित होने वाली रज लहरियों से कष्ट नहीं होता।
दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा सामान्य पद्धति से नहीं की जाती, क्योंकि तिर्य्क (रज) लहरियां दक्षिण दिशा से आती हैं। दक्षिण दिशा में यमलोक है, जहां पाप-पुण्य का हिसाब रखा जाता है। इसलिए यह बाजू अप्रिय है। यदि दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें या सोते समय दक्षिण की ओर पैर रखें तो जैसी अनुभूति मृत्यु के पश्चात अथवा मृत्यु पूर्व जीवित अवस्था में होती है, वैसी ही स्थिति दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा करने से होने लगती है। इसलिए ऐसी मूर्ति की पूजा करने का मन नहीं करता।
बाईं सूंड : जिस मूर्ति में सूंड के अग्रभाव का मोड़ बाईं ओर हो, उसे वाममुखी कहते हैं। वाम यानी बाईं ओर या उत्तर दिशा। बाई ओर चंद्र नाड़ी होती है। यह शीतलता प्रदान करती है एवं उत्तर दिशा अध्यात्म के लिए पूरक है, आनंददायक है।
इसलिए पूजा में अधिकतर वाममुखी गणपति की मूर्ति रखी जाती है। इसकी पूजा प्रायिक पद्धति से की जाती है।
किस ओर हो गणेशजी की सूंड?
- गणेश जी की बायीं सूंड वाली मूर्ति को स्थापित करना गृहस्थों के लिए शुभ माना गया है।
- बायीं सूंड के गणेश जी को वाममुखी और विघ्नविनाशक गणेशजी कहते हैं।
- गणेश जी की दाईं सूंड वाली मूर्ति को किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए स्थापित करते हैं।
- दाईं सूंड वाले गणेशजी की मूर्ति को दक्षिणाभिमुखी और सिद्धिविनायक गणेशजी कहते हैं।
- एकदम सीधी सूंड के गणेश जी की उपासना संन्यासी मोक्ष प्राप्ति हेतु करते हैं।