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Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 3 सितम्बर 2025 (12:46 IST)

Ganesh Chaturthi 2025 : गणेश उत्सव 10 दिन तक क्यों मनाते हैं? जानें इसके पीछे की कहानी

why ganesh chaturthi is celebrated for 10 days
why ganesh chaturthi is celebrated for 10 days: गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे भारत में, खासकर महाराष्ट्र में, बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है और इसका समापन गणेश विसर्जन के साथ होता है। हर कोई इन 10 दिनों में बप्पा की भक्ति में लीन रहता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह उत्सव 10 दिनों तक ही क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक का संबंध सीधे महाभारत से है।

महाभारत और गणेश उत्सव की कहानी
एक मान्यता के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने महाभारत जैसे विशाल ग्रंथ की रचना करने के लिए भगवान गणेश से इसे लिखने की प्रार्थना की थी। गणेश जी इस कार्य के लिए तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि वे बिना रुके लगातार लिखेंगे और यदि वेदव्यास जी एक पल के लिए भी रुकते हैं, तो वे लिखना बंद कर देंगे।

वेदव्यास जी ने गणेश जी की शर्त मान ली, लेकिन उन्होंने भी एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि गणेश जी को किसी भी श्लोक को लिखने से पहले उसका अर्थ समझना होगा। इस तरह, जब भी गणेश जी किसी जटिल श्लोक का अर्थ समझने में समय लेते थे, वेदव्यास जी को कुछ समय मिल जाता था।

यह लेखन कार्य लगातार 10 दिनों तक चला। बिना रुके लिखने के कारण भगवान गणेश का तापमान बहुत बढ़ गया। उनके शरीर में अत्यधिक गर्मी जमा हो गई थी। जब दसवें दिन महाभारत का लेखन कार्य पूरा हुआ, तो वेदव्यास जी ने गणेश जी को नदी में ले जाकर स्नान कराया ताकि उनके शरीर की गर्मी शांत हो सके। ऐसा माना जाता है कि इसी घटना के प्रतीक के रूप में गणेश उत्सव 10 दिनों तक मनाया जाता है और दसवें दिन गणपति का विसर्जन किया जाता है।

एक और पौराणिक मान्यता
एक और पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। यह मान्यता है कि गणेश जी कैलाश पर्वत से सीधे पृथ्वी पर आते हैं और 10 दिनों तक अपने भक्तों के बीच रहते हैं। इन दस दिनों में भक्त उनकी पूजा करते हैं, मोदक और तरह-तरह के पकवानों का भोग लगाते हैं, और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। दसवें दिन गणेश जी वापस कैलाश पर्वत चले जाते हैं, इसलिए उनका विसर्जन किया जाता है।