हर वर्ष मार्च के महीने में एफएमपी यानी फिक्स्ड मेच्युरिटी प्लान काफी लोकप्रिय हो जाते हैं। एफएमपी बुनियादी तौर पर म्यूच्युअल फंड्स की ऋणपत्रों में निवेश करने वाला नियतकालिक फंड है और इनकी कर-संरचना के कारण ये बैंक डिपाजिट की तुलना में ज्यादा करसंगत निवेश-पत्र सिद्ध होते हैं।
एफएमपी में देय लाभ निश्चित नहीं होते हैं पर चूँकि वर्तमान में चूँकि ब्याज दरें 9 से 11 प्रतिशत है, एक वर्ष की एफएमपी से बैंक डिपाजिट के समकक्ष या कुछ अधिक लाभ मिलने की संभावना है।
वर्तमान के कर नियम के अनुसार, म्यूच्युअल फंड्स के माध्यम से हुए एक वर्ष या अधिक समय के निवेश को लांग टर्म निवेश माना जाता है और प्राप्त लाभ पर इंडेक्ससेशन का इस्तेमाल करते हुए लाभ लिए जाने वाले लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स 20 प्रतिशत की दर से देय होता है।
एफएमपी की खास कर-संरचना (डबल इंडेक्ससेशन के प्रभाव) को आज हम 13 महीने वाली ऐसी एफएमपी से समझेंगे जिसका निर्गम मार्च माह में हुआ हो और जो अगले वर्ष अप्रैल माह में परिपक्व हो रही हो।
मार्च 2009 (582 कॉस्ट इनफ्लेशन इंडेक्स या सीआईआई पर) में अगर किसी निवेश-पत्र में 10,000 रुपए निवेश किए होते जो कि अप्रैल 2010 (711 सीआईआई) में परिपक्व हो रहे होते, तो कैपिटल गेन्स की गणना करने के लिए खरीद मूल्य 10,000 को 711 से गुणा कर 582 से भाग देना होगा और इस प्रकार इंडेक्स खरीद मूल्य 12,217 रुपए मानी जाती।
किसी बैंक में अगर 10,000 रुपए की 9.5 प्रतिशत की दर से 13 महीने के लिए फिक्स्ड डिपाजिट करते हैं तो परिपक्वता पर 11,030 रुपए प्राप्त होते हैं। 30 प्रतिशत कर देने वाले व्यक्ति को 1,030 की ब्याज की आय पर 318 रुपए का कर चुकाना होगा और कर के बाद उसकी वास्तविक आय सिर्फ 712 रुपए ही होगी जो कि सिर्फ 6.57 प्रतिशत शुद्ध लाभ के समकक्ष है।
उपरोक्त उदाहरण में 10,000 को अगर 13 महीने की एफएमपी में निवेश किया जाता और 9.5 प्रतिशत की दर से परिपक्वता पर 11,030 प्राप्त होने पर सीआईआई का लाभ लेते हुए इंडेक्स खरीद मूल्य 12,217 मानी जाती। इस प्रकार निवेशक को यहाँ 11,030-12,217 = -1187 का लांग टर्म कैपिटल लॉस हो रहा होता, जिसका समायोजन दूसरे लांग टर्म कैपिटल गेन्स में किया जा सकता है। कुल मिलाकर, इस उदाहरण में एफएमपी पर कोई टैक्स ही नहीं लग रहा है।