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Last Updated :नई दिल्ली , मंगलवार, 1 जुलाई 2025 (21:04 IST)

बुरारी मौतें: 7 साल बाद चूंडावत परिवार के बारे में अब भी लोगों में है जिज्ञासा

Burari case
Burari case: उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी (Burari) में 7 साल पहले 1 जुलाई 2018 को जिस घर में एक ही परिवार के 11 सदस्यों की रहस्यमय मौत हो गई थी, उसके आस-पड़ोस में लगता है कि जनजीवन सामान्य हो चला है, कोचिंग सेंटर और दुकानें सामान्य रूप से चल रही हैं। लेकिन कभी सुर्खियों में रहे इस मकान में अब भी सन्नाटा पसरा हुआ है और वहां से गुजरने वाले लोग उसके बारे में जिज्ञासा प्रकट करते हैं।
 
लगभग 2 दशकों से इस क्षेत्र में रह रहे इस्त्री दुकान के कर्मचारी मदन ने कहा कि कभी-कभी विद्यार्थी, विशेषकर पास के शिक्षण संस्थानों की लड़कियां, इमारत की ओर इशारा करती हैं, एक पल के लिए रुकती हैं, आपस में फुसफुसाकर बातें करती हैं, डर जाती हैं और फिर चली जाती हैं। चूंडावत परिवार के 11 सदस्यों में से 10 छत में लगे लोहे के जाल से फांसी पर लटके मिले थे जबकि परिवार की मुखिया 77 वर्षीय नारायण देवी का शव घर के दूसरे कमरे में फर्श पर पड़ा था।
 
देवी की बेटी प्रतिभा (57) और 2 बेटे भवनेश (50) और ललित (45) मृतकों में शामिल थे। भवनेश की पत्नी सविता (48) और उनके तीन बच्चे मेनका (23), नीतू (25) और धीरेंद्र (15) भी मृत पाए गए। ललित की पत्नी टीना (42) और उनका 15 वर्षीय बेटा दुष्यंत भी जान गंवाने वालों में शामिल हैं। प्रतिभा की बेटी प्रियंका भी फांसी पर लटकी पाई गई। उसकी जून 2018 में सगाई हुई थी।
 
पुलिस ने राष्ट्रीय राजधानी के सबसे सनसनीखेज मामलों में से एक इस मामले को सुलझाने के लिए तंत्र-मंत्र, मनोविज्ञान, अंधविश्वास समेत हर पहलू पर हाथ आजमाया और नवीनतम जांच तकनीकों का इस्तेमाल किया। मामले की जांच से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जब शव मिले तो जिला पुलिस ने शुरू में हत्या का मामला दर्ज किया। हालांकि जब परिवार के सदस्यों से पूछताछ की गई तो कोई मकसद सामने नहीं आया। फिर रजिस्टर खोले गए और धीरे-धीरे रहस्य से पर्दा उठने लगा।
 
उन्होंने कहा कि यह एक चुनौतीपूर्ण मामला था, क्योंकि अधिकारियों को 8 रजिस्टरों को देखना पड़ा जिनमें 11 वर्षों की अवधि में की गई विस्तृत प्रविष्टियां शामिल थीं और बताया गया था कि 'वध तपस्या' कैसे की जाती है, यानी उसका अनुष्ठान किया जाता है। इस मामले में सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाली बात यह है कि ललित चूंडावत से कथित तौर पर उसके मृत पिता मिलने आते थे और परिवार के लिए निर्देश देते थे।
 
अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2006 में उसके पिता का निधन हो गया था और उनकी मृत्यु के कुछ महीनों बाद ललित एक दुर्घटना में घायल हो गया और उसकी आवाज चली गई। कुछ समय बाद उसकी आवाज वापस आ गई और उसे विश्वास होने लगा कि उसके पिता उससे मिलने आते हैं। वह अपने परिवार के सदस्यों को उपदेश देते थे और वे लोग उन उपदेशों को रजिस्टर में नोट करते थे।
 
इस खोज ने मीडिया का ध्यान व्यापक रूप से आकर्षित किया, अटकलें लगाई गईं और कई जांच हुईं। मनोवैज्ञानिक शव परीक्षण से पता चला कि परिवार के किसी भी सदस्य का आत्महत्या करने का कोई इरादा नहीं था, बल्कि, यह एक दुर्घटना थी, जो एक गलत अनुष्ठान के दौरान हुई। चूंडावत निवास के ठीक सामने स्थित एक शिक्षण संस्थान की शिक्षिका मोनिका ने बताया कि हालांकि घर के आसपास का भय कम हो गया है, लेकिन अंधविश्वास के कुछ दुर्लभ उदाहरण अब भी हैं।
 
मोनिका ने कहा कि अब सब कुछ शांत है, लेकिन अब भी कुछ अंधविश्वासी माता-पिता हैं। वे सिरदर्द या पेट दर्द जैसी छोटी-मोटी बीमारियों को इस मकान से जोड़ देते हैं। एक छात्रा कुछ दिनों के लिए कक्षा से गायब रही और जब वह वापस लौटी, तो उसने मुझे बताया कि उसकी मां उसे डॉक्टर के बजाय एक आध्यात्मिक गुरु के पास ले गई थी। गुरु ने कथित तौर पर कहा कि वहां जो कुछ हुआ उसके कारण कोई आत्मा अब भी आसपास हो सकती है।
 
मदन ने परिवार को याद करते हुए कहा कि उन्हें रोज़ाना गली में देखा जाता था। मदन ने कुछ समय के लिए घर के नीचे दुकान की जगह किराए पर ली थी। उन्होंने कहा कि बच्चे यहां क्रिकेट खेलते थे और मां के बुलाने पर बिना किसी बहस या झंझट के वापस भाग जाते थे। दादी नारायण देवी, अक्सर मेरे पास बैठती और बातें करती थीं। घटना से एक दिन पहले मैंने उनसे बात की थी। कुछ भी गलत नहीं लगा।
 
स्थानीय लोगों को याद है कि नारायण देवी रोज़ाना पास के राम मंदिर जाती थीं। एक स्थानीय व्यक्ति ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया कि वह सुबह आती थीं, कुछ देर वहां बैठती थीं, कुछ लोगों से बात करती थीं और चली जाती थीं। उसने बताया कि वह मृदुभाषी थीं और पूरा परिवार समाज में काफ़ी प्रतिष्ठित था। साजिश की कहानी गढ़ने वाले इस बारे में बहुत सारी बातें पोस्ट करना जारी रखते हैं और अब भी, कभी-कभी आगंतुक इस स्थान के बारे में पूछने के लिए रुकते हैं।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta
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