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Last Modified: बुधवार, 9 जून 2021 (23:16 IST)

Kisan Andolan : कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा- सरकार किसान संगठनों से बातचीत को तैयार, कृषि कानूनों में कहां आपत्ति है बताएं

Kisan Andolan : कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा- सरकार किसान संगठनों से बातचीत को तैयार, कृषि कानूनों में कहां आपत्ति है बताएं - agriculture minister narendra singh tomar says government ready to talk with farmer unions
नई दिल्ली। केंद्र और आंदोलनकारी किसानों की बातचीत जनवरी से रुकी रहने के बीच केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बुधवार को कहा कि सरकार किसानों के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के लिए तैयार है, लेकिन इस दिशा में कोई सफलता नहीं मिली क्योंकि किसान संगठन तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाले कानून की अपनी मांगों पर अडिग रहे। उन्होंने किसान संगठनों से तीनों कृषि कानूनों के प्रावधानों में कहां आपत्ति है, ठोस तर्क के साथ अपनी बात बताने को कहा है।
 
गतिरोध के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी तथा शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीरसिंह बादल ने सवाल उठाया कि केंद्र सरकार किसानों के साथ बातचीत क्यों नहीं कर रही है। उधर कांग्रेस ने प्रदर्शनकारी किसानों की मांग स्वीकार किए जाने की वकालत की।
सरकार और किसान यूनियनों ने गतिरोध खत्म करने और किसानों के विरोध प्रदर्शन को समाप्त करने के लिए 11 दौर की बातचीत की है, जिसमें आखिरी वार्ता 22 जनवरी को हुई थी। जनवरी के बाद से बातचीत नहीं हुई है।
 
बुधवार को मंत्रिमंडल की ब्रीफिंग में तोमर ने कहा कि जब भी किसान चर्चा चाहेंगे, भारत सरकार चर्चा के लिए तैयार रहेगी। लेकिन हमने बार-बार उन्हें प्रावधानों में आपत्तियों के पीछे तर्क के साथ अपनी बात रखने को कहा है। हम सुनेंगे और समाधान ढूंढ़ेंगे, लेकिन किसान संगठनों ने दावा किया कि सरकार का कदम ‘अनुचित और अतर्कसंगत’ है।
 
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में कहा कि प्रदर्शनकारी किसान एक बार फिर इस बात को दोहराते हैं कि सरकार का रवैया अनुचित और अतर्कसंगत है। किसान तीनों केंद्रीय कानूनों को पूरी तरह वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी देने वाला नया कानून लाने की मांग करते रहे हैं।
सरकार ने कृषि कानूनों का बचाव करते हुए कहा है कि इससे किसानों की आय बढ़ेगी और वह किसान यूनियनों से बातचीत के बाद संशोधन करने पर विचार कर सकती है। प्रमुख विपक्षी दलों ने आंदोलन का खुलकर समर्थन किया है।
 
ममता बनर्जी ने कोलकाता में राकेश टिकैत और युद्धवीरसिंह के नेतृत्व में किसान नेताओं को उनके आंदोलन को समर्थन देने का आश्वासन देते हुए कहा कि किसानों के साथ बातचीत करना इतना मुश्किल क्यों है? उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन केवल पंजाब, हरियाणा या उत्तर प्रदेश के लिए नहीं है। यह पूरे देश के लिए है।
 
बनर्जी ने तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के समर्थन में विपक्ष शासित राज्यों को एकजुट करने का वादा करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य ‘सत्ता से नरेंद्र मोदी सरकार को हटाना’ है।
 
कांग्रेस ने भी इस मामले में हमला तेज कर दिया। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तोमर के बयान को लेकर कहा कि किसान को भीख नहीं, न्याय चाहिए। किसान को अहंकार नहीं, अधिकार चाहिए। घमंड के सिंहासन से उतरिए, राजहठ छोड़िए, तीनों काले क़ानून ख़त्म करना ही एकमात्र रास्ता है।
 
राहुल गांधी ने आंदोलन के दौरान 500 किसानों की मौत होने के दावे वाले हैशटैग के साथ ट्वीट किया कि खेत-देश की रक्षा में तिल-तिल मरे हैं किसान, पर ना डरे हैं किसान, आज भी खरे हैं किसान।
 
शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने तोमर से केन्द्र के कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे किसानों से बिना शर्त वार्ता करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि किसानों की मांगों को खारिज कर उनके घावों पर ‘नमक छिड़कने’ के बजाय कृषि मंत्री को उनसे बिना शर्त बातचीत करनी चाहिए।
 
बादल ने कहा कि आंदोलनकारी किसान तीनों कानूनों को निरस्त करने के अलावा अन्य मुद्दों पर बातचीत नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि यह केंद्र को पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है। किसानों ने उन सभी प्रस्तावों को खारिज कर दिया है जिनका उद्देश्य कृषि कानूनों को निरस्त करने की मुख्य मांग को स्वीकार किए बिना किसान आंदोलन को अस्थिर करना है। उन्होंने यहां एक बयान में कहा कि मैं नरेंद्र तोमर से अपील करता हूं कि वे आंदोलनकारी किसानों के साथ बिना शर्त बातचीत करें और किसान समुदाय के हित में उनकी मांगों को स्वीकार करें।
 
नए कृषि कानूनों के विरोध में 6 महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसान डेरा डाले हुए हैं, जो मुख्यत: पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। इन किसानों को आशंका है कि नए कृषि कानूनों के अमल में आने से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की सरकारी खरीद समाप्त हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा रखी है और समाधान खोजने के लिए एक समिति का गठन किया है।
 
तोमर ने कहा कि देश के सभी राजनीतिक दल इन कृषि कानूनों को लाना चाहते थे, लेकिन उन्हें लाने का साहस नहीं जुटा सके। मोदी सरकार ने किसानों के हित में यह बड़ा कदम उठाया और सुधार लाए। देश के कई हिस्सों में किसानों को इसका लाभ मिलने लगा। लेकिन इसी बीच किसानों का आंदोलन शुरू हो गया। उन्होंने कहा कि सरकार ने किसानों के साथ 11 दौर की बातचीत की और किसान संगठनों से इन कानूनों पर उनकी आपत्तियों के बारे में पूछा गया और जानने की कोशिश की गई उन्हें कौन से प्रावधान किसानों के खिलाफ मालूम पड़ते हैं।
 
उन्होंने कहा कि लेकिन न तो किसी राजनीतिक दल के नेता ने सदन (संसद) में इसका जवाब दिया और न ही किसी किसान नेता ने, और बातचीत आगे नहीं बढ़ी। मंत्री ने कहा कि सरकार किसानों के प्रति कटिबद्ध है और किसानों का सम्मान भी करती है। तोमर और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल समेत तीन केंद्रीय मंत्रियों ने प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के साथ 11 दौर की बातचीत की थी।
 
इस तरह की 22 जनवरी को हुई पिछली बैठक में, सरकार ने 41 किसान समूहों के साथ बातचीत की जिसमें गतिरोध उत्पन्न हुआ क्योंकि किसान संगठनों ने कानूनों को निलंबित करने के केंद्र के प्रस्ताव को पूरी तरह से खारिज कर दिया।
 
इससे पहले 20 जनवरी को हुई 10वें दौर की वार्ता के दौरान केंद्र ने 1-1.5 साल के लिए कानूनों को निलंबित रखने और समाधान खोजने के लिए एक संयुक्त समिति बनाने की पेशकश की थी, जिसके बदले में विरोध करने वाले किसानों से दिल्ली की सीमाओं से हटकर अपने घर जाने को कहा गया था।
 
किसान संगठनों ने आरोप लगाया है कि ये कानून मंडी और एमएसपी खरीद प्रणाली को खत्म कर देंगे और किसानों को बड़े कॉरपोरेट्स की दया पर छोड़ देंगे। हालांकि, सरकार ने इन आशंकाओं को गलत बताते हुए इन्हें खारिज कर दिया।
 
कैबिनेट ब्रीफिंग के बाद तोमर ने से कहा कि एमएसपी है, उसे बढ़ाया जा रहा है और भविष्य में भी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी 11 जनवरी को अगले आदेश तक इन तीन कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी और गतिरोध को हल करने के लिए चार सदस्यीय समिति बनाई। भारतीय किसान यूनियन (मान) के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त समिति से खुद को अलग कर लिया था। शेतकरी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनवत, कृषि अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी तथा अशोक गुलाटी समिति के अन्य सदस्य हैं। उन्होंने हितधारकों के साथ परामर्श प्रक्रिया पूरी कर ली है। (भाषा)
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