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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 11 जून 2022 (18:38 IST)

सोशल मीडिया नहीं तथ्यों और तर्को पर जानें क्यों आरिफ मोहम्मद खान राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार?

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान राष्ट्रपति पद के दावेदारों में प्रमुख नाम

सोशल मीडिया नहीं तथ्यों और तर्को पर जानें क्यों आरिफ मोहम्मद खान राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार? - Arif Mohammad Khan is a strong contender for the post of President?
राष्ट्रपति चुनाव के एलान के साथ भाजपा की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को लेकर अटकलों का दौर तेज हो गया है। गुरुवार को राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति पद के लिए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का नाम तेजी से ट्रैंड करने लगा। बड़ी संख्या में लोग आरिफ मोहम्मद खान को देश के अगले राष्ट्रपति के लिए सबसे उपयुक्त दावेदार बता रहे है। 

आखिर वो कौन से कारण है जिसके चलते आरिफ मोहम्मद खान राष्ट्रपति पद के एक प्रमुख दावेदार बन गए है आइए सिलसिलेवार विस्तार से समझते है। 
 
समान नागरिक संहिता के समर्थक- केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इन दिनों 2024 के आम चुनाव से पहले देश में समान नागरिक संहिता लाने पर तेजी से आगे बढ़ती हुई दिख रही है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने के बाद भाजपा का एक प्रमुख एजेंडा समान नागरिक संहिता है। ऐसे में राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार और वर्तमान में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान समान नागरिक संहिता (uniform civil code) के प्रबल पक्षधर रहे है। शाहबानो प्रकरण में उन्होंने सबसे पहले समान नागरिक संहिता की बात उठाई थी। ‘वेबदुनिया’ के दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने देश में समान नागिरक संहिता की जरुरत बताई थी।

‘वेबदुनिया’ को दिए अपने इंटरव्यू में आरिफ मोहम्मद खान ने कहा था कि हमारे संविधान निर्माताओं ने एक ऐसे समाज की संरचना की कल्पना की थी जिस में धर्म-मूलवंश–जाति–लिंग-जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव करने की कोई जगह नहीं होगी। इसी लिए उन्होंने संविधान में बुनियादी अधिकारों के साथ राज्य की नीति के निदेशक तत्व भी शामिल किये थे। इन सिद्धान्तों में एक प्रावधान (अनुच्छेद 44) यह भी हैं कि राज्य सभी नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा। उन्होंने आगे कहा था कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक क़ानून बनाकर उस नुक़सान की बड़ी हद तक क्षति पूर्ति कर दी है जो 1986 (शाहबानो प्रकरण) में हुआ था। जैसा मैंने कहा आदर्श स्थिति की तरफ तो हम तब बढ़ेंगे जब समान नागरिक संहिता बनाने में सफल होंगे।
शाहबानो प्रकरण में राजीव गांधी के खिलाफ बगावत- आज से लगभग 36 साल पहले इंदौर की रहने वाली शाहबानो के समर्थन में 1986 में संसद में मुस्लिम महिलाओं के हक में पहली बार आवाज उठाने वाले आरिफ मोहम्मद खान की छवि एक प्रगतिशील मुस्लिम नेता की है। मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने और शाहबानो को न्याय दिलाने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के खिलाफ खुली बगावत कर इस्तीफा देने वाले आरिफ मोहम्मद खान खुले तौर पर कट्टर इस्लाम का विरोध करते है। 
 
1986 में संसद में 55 मिनट दिए अपने भाषण में आरिफ मोहम्मद खान ने पूरे देश को यह समझाने का प्रयास किया था कि शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला ना केवल क़ानून सम्मत था बल्कि उस धार्मिक शिक्षा के भी अनुरूप था जहां जोर देकर कहा गया है कि ग़रीब,कमज़ोर, निराश्रित, विधवा इत्यादि की मदद करना हमारा दायित्व है। 
 
‘वेबदुनिया’ को दिए अपने एक इंटव्यू में आरिफ मोहम्मद खान ने शाहबानो प्रकरण का जिक्र करते हुए कहा था कि यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस दिशा में आगे बढ़ने की बजाय 1986 में तत्कालीन सरकार ने एक विधेयक के माध्यम से शाहबानो मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदल कर गंगा को विपरीत दिशा में बहने की कोशिश की थी और उन लोगों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था जिन्होंने एक बार फिर सांप्रदायिक और हिंसक भाषा के साथ आंदोलन चलाया था जिसमें देश के उच्चतम न्यायालय के ऊपर धर्म के नाम पर आपत्तिजनक आरोप लगाए गए थे।
 
ट्रिपल तलाक पर मोदी सरकार की बने ढाल-2019 में मोदी सरकार के तीन तलाक पर कानून बनाने पर आरिफ मोहम्मद खान देश के वह पहले मुस्लिम बुद्धिजीवी और नेता थे जिन्होंने मोदी सरकार के खुलकर प्रशंसा की थी। वेबदुनिया को दिए अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मौजूदा क़ानून बनाकर उस नुक़सान की बड़ी हद तक क्षति पूर्ति कर दी है जो 1986 (शाहबानो प्रकरण) में हुआ था ।
 
2019 में केंद्र की सत्ता में दोबारा आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाया था लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में आरिफ मोहम्मद खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से व्यक्तिगत मिलकर तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने की मांग की थी। 
'वेबदुनिया’को दिए अपने इंटरव्यू में खुद आरिफ मोहम्मद खान ने इस बात को साझा करते हुए कहा था कि “मैंने इस मामले को लेकर 6 अक्टूबर 2017 को प्रधानमंत्री जी को एक पत्र लिखा था और इस बारे में उनके साथ मेरी भेंट 8 अक्टूबर 2017 को उनके कार्यालय में हुई। बहराइच की एक बच्ची को दी गई तीन तलाक को लेकर मैंने यह पत्र लिखा था। उस दिन प्रधानमंत्री जी ने मुझे कहा वह इन महिलाओं की पीड़ा को समझते हैं और इस बात से सहमत हैं कि इस क्रूर कुप्रथा को रोका जाना ज़रूरी है"। 
 
मुस्लिम राष्ट्रपति से दुनिया को एक संदेश- कट्टर इस्‍लाम का‍ विरोध करने वाले और प्रगतिशील मुसलमान की छवि रखने वाले आरिफ मोहम्मद खान धार्मिक और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे काफी बेबाक और मुखर राय रखते है। बात चाहे पैंगबर विवाद की हो या देश में पिछले दिनों उठे हिजाब विवाद की केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान कट्टर मुस्लिमों को आईना दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते है। इसके साथ देश में हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दें पर भी वह काफी मुखर होकर अपनी बात रखते है।  
 
ऐसे में जब इन दिनों नूपुर शर्मा के बयान से पूरी दुनिया में भारत की छवि को एक धक्का लगा है तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरिफ मोहम्मद खान के नाम को आगे कर पूरी दुनिया को एक संदेश दे सकते है। 

इसके साथ आरिफ मोहम्मद खान को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर भाजपा देश के मुसलमानों को भी एक सकरात्मक मैसेज दे सकती है। केरल जैसे राज्य जहां 26 फीसदी मुस्लिम आबादी है और जहां भाजपा लंबे से अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत बनाने की तैयारी में लगी हुई है उसको भी भाजपा अपने इस फैसले से साध सकती है।