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Written By विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 2 अगस्त 2019 (14:59 IST)

3 तलाक : कानून बनाकर पीएम नरेंद्र मोदी ने 1986 में हुए नुकसान की भरपाई कर दी

शाहबानो की लड़ाई लड़ने वाले आरिफ मोहम्मद खान का वेबदुनिया पर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

3 तलाक : कानून बनाकर पीएम नरेंद्र मोदी ने 1986 में हुए नुकसान की भरपाई कर दी - Arif Mohammad Khan on 3 Talaq
इंदौर की रहने वाली शाहबानो के समर्थन में आज से लगभग 33 साल पहले 1986 में संसद में मुस्लिम महिलाओं के हक में पहली बार आवाज उठाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान आज एक बार फिर चर्चा में है। मुस्लिम महिलाओं को उनका हक दिलाने और शाहबानो को न्याय दिलाने के लिए उस वक्त केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले आरिफ मोहम्मद खान आज तीन तलाक पर बने नए कानून से बेहद खुश हैं। तीन तलाक पर बने नए कानून को लेकर आरिफ मोहम्मद खान से वेबदुनिया के पॉलिटिकल एडिटर ने खास बातचीत की। 
 
प्रश्न : तीन तलाक के खिलाफ आप ने जो लड़ाई शुरू की थी वह अब पूरी हुई, इतना लंबा संघर्ष और अब एक जीत कैसा लग रहा है?
उत्तर : मैं बहुत विनम्रता से कहना चाहूंगा कि यह मेरी निजी जीत नहीं है बल्कि यह उन भारतीयों की जीत है जिन्होंने एक ऐसे समाज की संरचना की कल्पना की थी जिसमें धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव करने की कोई जगह नहीं होगी।
 
यह कल्पना हमारे संविधान निर्माताओं ने की थी और इसीलिए उन्होंने संविधान में बुनियादी अधिकारों के साथ राज्य की नीति के निर्देशक तत्व भी शामिल किए थे और यह प्रावधान किया था कि विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। इन सिद्धांतों में एक प्रावधान (अनुच्छेद 44) यह भी है कि राज्य सभी नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।
 
लेकिन, यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस दिशा में आगे बढ़ने की बजाय 1986 में तत्कालीन सरकार ने एक विधेयक के माध्यम से शाहबानो मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदलकर गंगा को विपरीत दिशा में बहने की कोशिश की थी और उन लोगों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था, जिन्होंने एक बार फिर सांप्रदायिक और हिंसक भाषा के साथ आंदोलन चलाया था जिसमें देश के उच्चतम न्यायालय के ऊपर धर्म के नाम पर आपत्तिजनक आरोप लगाए गए थे।
 
मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मौजूदा क़ानून बनाकर उस नुकसान की काफी हद तक क्षतिपूर्ति कर दी है, जो 1986 में हुआ था। जैसा मैंने कहा आदर्श स्थिति की तरफ तो हम तब बढ़ेंगे जब समान नागरिक संहिता बनाने में सफल होंगे, लेकिन तब तक कम से कम मौजूदा क़ानूनों में जिन कुरीतियों को संरक्षण मिला हुआ है उनको तो खत्म किया ही जाना ही चाहिए और तीन तलाक को निषिद्ध करने का कानून बनाने का साहस दिखाकर सरकार ने इस दिशा में एक सारगर्भित कदम उठाया है।
  
प्रश्न : क्या अब आप ट्रिपल तलाक पर बने नए कानून को पूरा मानते हैं या इसमें और संशोधन की गुंजाइश है?
उत्तर : संसद के बनाए गए किसी भी क़ानून में सुधार की गुंजाइश बनी रहती है। हमने तो 100 से भी ज़्यादा बार संविधान में संशोधन किए हैं। अपने तजुर्बों के आधार पर अपने कानूनों को सुधारना एक जीवंत समाज की निशानी है, लेकिन सुधार की शुरुआत तो होनी चाहिए। हमारे यहां तो आजादी की 7 दहाइयों तक कुप्रथाओं को धर्म के नाम पर सही ठहराने और धमकियां देकर सुधार को रोकने का वातावरण व्याप्त था। अब लगता हैं कि कुछ बर्फ़ पिघली है। जो काम अब हुआ है उसका प्रभाव केवल मुस्लिम महिलाओं तक सीमित नहीं रहने वाला है। इसके नतीजे में जो चेतना और मानस पैदा होगा उससे देश में नारी सशक्तीकरण की प्रक्रिया को बल मिलेगा और कुल मिलाकर यह भारतीय समाज को सशक्त बनाएगा।
 
प्रश्न : मुस्लिम महिलाओं के सम्मान के लिए आपने जो लड़ाई शुरू की थी उसके लगभग तीस साल बाद कानून बना, क्या कानून बनाने में देर नहीं हुई?
उत्तर : इस देरी के लिए निश्चित ही पुरानी सरकारों के रवैए को जिम्मेदार माना जाएगा, लेकिन दोषारोपण की बजाय अब हमें आगे बढ़ने की तरफ ध्यान देना होगा क्योंकि अब जो सकारात्मक पहल हुई है, उससे और अधिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त होगा।
 
प्रश्न : आपने यह पूरी लड़ाई अकेले लड़ी, कभी किसी क्षण आपको लगा कि आप अकेले पड़ गए या आप हार रहे हैं, ऐसा कोई अनुभव जो साझा करना चाहें?
उत्तर : मैंने कोई लड़ाई लड़ी, यह श्रेय मैं नहीं लेना चाहता। मैंने जो कुछ किया वह आत्मसंतोष के लिए किया। आप खुद सोचिए 1986 में मैंने 55 मिनट तक संसद में भाषण देकर पूरे देश को यह समझाने का प्रयास किया कि शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला ना केवल कानून सम्मत था बल्कि उस धार्मिक शिक्षा के भी अनुरूप था, जहां जोर देकर कहा गया है कि गरीब, कमज़ोर, निराश्रित, विधवा इत्यादि की मदद करना हमारा दायित्व है। लेकिन विडंबना देखिए कि जिस परंपरा में यह कहा गया है कि लोग आप से पूछते हैं कि खैर-खैरात में कितना खर्च किया करें तो आप कह दीजिए कि जो भी तुम्हारी जरूरत से ज़्यादा है (कुरान 2.29), वहां धर्म के स्वयंभू नेताओं ने कहा कि निस्सहाय शाहबानो को जो 174.20 रुपए अदालत ने दिलाए हैं अगर इसको कानून बनाकर रोका नहीं गया तो इस्लाम धर्म ख़तरे में आ जाएगा। 
 
मेरे सामने 1986 में नैतिक प्रश्न था। पहले सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के पक्ष में थी और मुझसे उस निर्णय का बचाव कराया गया बाद में उन्होंने पर्सनल लॉ बोर्ड के दबाव में आकर अदालत के निर्णय को निष्प्रभावी बनाने का फैसला कर लिया तो अब मैं क्या कहूंगा। अगर मैं उस समय सरकार ना छोड़ता तो मेरी स्थिति तो अकबर के बीरबल की हो जाती, जिसने बादशाह की मर्ज़ी के मुताबिक एक दिन बैंगन की तारीफों के पुल बांधे और दूसरे मौके पर उसे बैंगन की बुराइयों का वर्णन करना पड़ा, क्योंकि बादशाह की राय बदल गई थी। यह सही है कि 1986 और आज के वातावरण में बहुत अंतर है। तब वो लोग भी जो मेरी बात से सहमत थे मेरे पक्ष में बोलने से डरते थे, लेकिन आज तो बहुत महिलाएं, बहुत नौजवान हैं जो इस लड़ाई को स्वयं लड़ रहे हैं।
 
प्रश्न : उस समय कांग्रेस ने आपका साथ नहीं दिया, क्या आपको नहीं लगता है कि कांग्रेस को इसका नुकसान उठाना पड़ा और आपका साथ न देकर कांग्रेस ने गलती की?
उतर : मुझे जो भी लगता हो लेकिन कांग्रेस को ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने कोई गलती की है। उन्होंने तो आज भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कहने से नए कानून का विरोध किया और पूरा प्रयास किया कि यह सुधारात्मक विधेयक राज्यसभा में पास ना होने पाए। यह अलग बात है कि खुद उनके अपने सदस्यों में इस बात को लेकर काफी मतभेद था और संभवत: इसीलिए वोटिंग के वक्त पार्टी व्हिप होने के बावजूद कई सदस्यों ने अपने आपको अनुपस्थित कर लिया और वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।
 
प्रश्न : ट्रिपल तलाक पर कानून को लेकर आपकी कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा के बड़े नेताओं से कोई चर्चा हुई?
उत्तर : मैंने इस मामले को लेकर 6 अक्टूबर 2017 को प्रधानमंत्रीजी को एक पत्र लिखा था और इस बारे में उनके साथ मेरी भेंट 8 अक्टूबर 2017 को उनके कार्यालय में हुई। बहराइच की एक बच्ची को दिए गए तीन तलाक को लेकर मैंने यह पत्र लिखा था। उस दिन प्रधानमंत्री जी ने मुझे कहा कि वह इन महिलाओं की पीड़ा को समझते हैं और इस बात से सहमत हैं कि इस क्रूर कुप्रथा को रोका जाना जरूरी है। मैं प्रधानमंत्री जी का कृतज्ञ हूं कि उन्होंने अपनी बात के अनुसार आचरण किया। इसके बावजूद कि राज्यसभा में उनका बहुमत नहीं था, हिम्मत दिखाई और अन्ततः इस क्रांतिकारी विधेयक को दोनों सदनों से पास कराकर कानून का रूप दे ही दिया।
 
प्रश्न : आपका कांग्रेस के साथ लंबा सियासी अनुभव रहा है, आज कांग्रेस को किस स्थिति में देखते हैं?
उत्तर : यह बहुत पुरानी बात हो गई। मैंने 23 फरवरी 1986 को जब अदालत के निर्णय को बदलने का विधेयक लाया गया था, मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दिया था। चंद महीने बाद मुझे पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। मेरे लिए अब यह उचित नहीं कि मैं कांग्रेस की स्थति के बारे में चर्चा करूं।
 
प्रश्न : आप जैसे राजनेता को राजनीति में जो स्थान मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाया, कभी आपको इसका मलाल हुआ कि आप अपने राजनीतिक उसूलों पर चलने की वजह से पिछड़ गए?
उत्तर : ऐसी बात तभी सोची जा सकती है जब आदमी की दृष्टि में केवल पद और सत्ता ही सब कुछ हो। लोग 2-4 साल की बात याद नहीं रखते, मेरे मामले में 1986 से मुश्किल से कोई दिन एसा गुजरता होगा जब कोई ना कोई मुझे यह ना कहता हो कि मैं तो आपको 1986 में त्यागपत्र देने के बाद से ही फॉलो कर रहा हूं। 
 
कोई कहता है कि मेरे पास आपके भाषणों की बहुत सी कटिंग रखी हुई हैं। यह दृश्य उस वक्त खासतौर से मार्मिक हो जाते हैं, जब मैं अपनी यात्राओं के दौरान रेलवे स्टेशन या एअरपोर्ट पर होता हूं और लोग लाइन तोड़कर मेरे पास आते हैं और अपना प्यार दर्शाते हैं। मेरे लिए अपने देशवासियों के इस प्यार से बढ़कर और कोई निधि नहीं हो सकती। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूं कि मेरे देश ने मुझे मेरे हिस्से से बढ़कर प्यार और सम्मान दिया।