क्यों बदल रहा है मानसून का मिजाज....
देश में मानसून आने की तैयारी है। पिछले कुछ सालों में मानसून के आगमन पर नजरें इनायत करें तो पता चलेगा कि मानसून का समय अब धीरे-धीरे आगे बढ़ते जा रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो धरती पर हो रहे जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम सामने आने वाले हैं और इसने मानसून को नकारात्मक रूप से प्रभावित करना भी आरंभ कर दिया है।
ऐसा नहीं है कि इस परिवर्तन के कारण बारिश के चार महीनों में बारिश नहीं हो, मानसून की बारिश तो होगी लेकिन कहीं भीषण बारिश होगी और कहीं सूखे की स्थिति रहेगी। मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो जलवायु परिवर्तन के असर से मानसून का प्रवाह कमजोर होता जा रहा है। हो सकता है कि आने वाले वर्षों में मानसून का समय और आगे बढ़ जाए और मानसून की बारिश दिसंबर तक होने लगे, ऐसा भी अनुमान परिवर्तन के कारण लगाया जा रहा है।
इंटरगवर्मेंटल पैनल क्लाईमेट चेंज (आर्इपीसीसी) की रिपोर्ट पर गौर करें तो यह स्थिति हमारे देश में होने वाली कृषि के लिए चिंताजनक हो सकती है। आईपीसीसी के अनुसार कई ऐसी घटनाएं होंगी, जिससे मानसून का मिजाज पूरी तरह से बदल सकता है। इससे सबसे ज्यादा खतरा मानसून के प्रवाह पर पड़ेगा। परिणाम यह होगा कि सक्रिय होने के बाद भी मानसून प्रवाह में ठहराव आएंगे।
कहीं खंड तो कहीं भारी बारिश
आईपीसीसी की रिपोर्ट के अनुसार 95 फीसदी मॉडल यह संकेत दे रहे हैं कि मानसून के दौरान भारी बारिश होने की संभावनाएं सबसे ज्यादा है। इस दौरान सामान्य बारिश की घटनाएं तेजी से कम हो सकती है।
10 फीसदी ज्यादा बारिश
भारतीय क्षेत्र में होने वाली बारिश से हर दशक में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। समुद्र का तापमान बढ़ने से अलनीनो जैसी स्थितियां भी बन रही हैं। अलनीनो नहीं बनें तो समुद्र का बढ़ता तापमान बादलों को नमी प्रदान करता है, जिससे अचानक भारी बारिश होती है। यह प्रक्रिया भी मानसून के सामान्य प्रवाह को रोकती है। दूसरे कारण पर गौर करें तो वह यह सामने आता है कि वायुमंडल में धूल के कणों का बढ़ना। इससे सूर्य की गर्मी और समुद्र को मिलने वाली नमी से अचानक भारी बारिश होती है।