- राजकुमार कुम्भज
चीन की राजधानी बीजिंग में वायु-प्रदूषण से बचाव के लिए रेड अलर्ट जारी किया गया था। वायु-प्रदूषण की सर्वाधिक गंभीर व खतरनाक स्थिति आ जाने के कारण ही रेड अलर्ट जारी किया जाता है।
लगभग सवा दो करोड़ की आबादी वाले इस शहर में वायु-प्रदूषण के प्रकोप से निपटने के लिए कुछ और भी कारगर उपाय किए गए हैं। बीजिंग शहर में रेड अलर्ट के अलावा चीन की मौसम-वेधशाला ने, देश के उत्तरी क्षेत्र में प्रदूषित वायुमंडल से निपटने के लिए, पीला अलर्ट भी जारी किया है। ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि वायु-प्रदूषण की स्थितियां अभी कुछ समय तक ऐसी ही बनी रहने की आशंका है।
वायु-प्रदूषण को लेकर बीजिंग के हालात जितने दयनीय हैं, उससे कहीं अधिक खतरनाक हालात दिल्ली के हो गए हैं। दिल्ली तो वायु-प्रदूषण की विश्व-राजधानी बन गई है। दिल्ली के हालाल तो इतने खतरनाक हो गए हैं कि उसके वायु-प्रदूषण का स्तर लगभग 7 गुना तक बिगड़ चुका है। दुनिया के सर्वाधिक 20 प्रदूषित शहरों में से अकेले 15 शहर तो भारत और चीन के ही हैं, जहां वायु-प्रदूषण से प्रतिवर्ष 33 लाख लोग मारे जाते हैं। इनमें से भी लगभग आधे अर्थात 16 लाख की संख्या तो चीनी नागरिकों की ही होती है।
बीजिंग की सवा दो करोड़ और दिल्ली की ढाई करोड़ आबादी वायु-प्रदूषण से एक समान स्तर पर पीड़ित है। कहा जाता है कि इस सबके लिए अंधाधुंध आतिशबाजी और होटलों में खाना पकाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भट्टियां जिम्मेदार हैं। अंधाधुंध आर्थिक विकास के लिए उठाए गए गैर-जिम्मेदार कदमों से दुनिया के बहुत से प्रमुख शहरों का वायुमंडल खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुका है। इसे तत्काल रोकने की जरूरत है, वरना जीवन के लिए प्राणवायु का खतरा उपस्थित होने में देर नहीं लगेगी।
चीन की राजधानी बीजिंग में दूसरी बार रेड अलर्ट इसलिए लगाया गया, क्योंकि मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बीजिंग के कई हिस्सों में 'दृश्यता' सिर्फ 200 मीटर तक की ही रह गई है। धुंध इतनी ज्यादा गहन-गंभीर हो गई थी कि सामने से आते वाहन भी दिखाई नहीं दे पा रहे थे, जबकि उनकी हेडलाइटें प्रकाशमान थीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक का स्तर सुरक्षित माना जाता है, जबकि शेनयांग शहर में जहरीले कणों का स्तर 1400 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक पहुंच गया है। यह चीन में रिकॉर्ड किया गया अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है।
पर्यावरण सर्वेक्षण की एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका की अपेक्षा चीन दोगुना अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जित कर रहा है। ये चौंकाने वाली सूचना राजनीति से प्रेरित न होकर सिर्फ पर्यावरण-प्रेरित ही है, जो हमें भविष्य के प्रति सचेत कर रही है। लिहाजा कुछ कल-कारखानों को या तो अपना उत्पादन कम करना होगा या कि फिर उन्हें कुछ समय के लिए बंद ही करना पड़ेगा, क्योंकि वायुमंडल में छोटे और घातक कणों का संख्या-स्तर खतरनाक स्थिति तक बढ़ चुका है, इससे 'दृश्यता' भी प्रभावित हो रही है।
स्कूल-कॉलेज और उद्योग-धंधे बंद रखने सहित लोगों को भी घरों में ही ठहरे रहने की सलाहें एक सीमित-सुधार की पूर्ति तो हो सकती है, किंतु इसके लिए सक्षम दीर्घकालीन कदम उठाए जाना बेहद जरूरी है। इन उपरोक्त बंदिशों से कुछ समय के लिए तो वायु-स्तर को सामान्य करने में अवश्य ही सहायता मिल सकती है, लेकिन समूचा जनजीवन आखिर कितने लंबे समय तक बाधित रखा जा सकता है? नागरिक जीवन को प्रतिबंधित करना क्या मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं है? 'दृश्यता' का घटना, लोकतंत्र का घटना है और लोकतंत्र का घटना एक अमंगलकारी घटना है।
वायु-प्रदूषण की वजह से चीन और चीन की राजधानी बीजिंग की खराब होती जा रही छवि को सुधारने का सबसे पहला बड़ा प्रयास 2008 के बीजिंग ओलंपिक से पहले हुआ था, तब कारों को सम-विषम नंबरों के आधार पर चलाने का नियम लागू किया गया था। इसके साथ ही प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखानों को बीजिंग से सटे हबेई प्रांत में स्थानांतरित कर दिया गया था। इससे प्रदूषण के स्तर में एक हद तक कमी भी आई थी। लेकिन सर्दियां शुरू होते ही दुनिया के अन्य शहरों की तरह बीजिंग भी प्रदूषण की समस्या से घिरने लगता है। बीजिंग की तरह ही हर शहर की समस्या का मुख्य कारण लगभग एक समान ही पाया गया है अर्थात कोयले से चलने वाले पॉवर प्लांट और सड़कों पर बेतहाशा दौड़ रही कारों की भीड़।
यहीं चीन के संदर्भ में जिस एक और खास बात पर गौर किया जा सकता है, वह यह है कि सर्दियों में उत्तरी चीन के घरों में सेंट्रल हीटिंग चलती रहती है जिसका उत्पादन कोयले से चलने वाले प्लांट्स में ही होता है, जो वायुमंडल को प्रदूषित करने के लिए पर्याप्त जिम्मेदार बताए गए हैं। हालांकि चीन सरकार ने वर्ष 2017 तक बीजिंग में वैकल्पिक उपाय करते हुए अब इन्हें बंद कर देने की एक कारगर योजना बनाई है।
चीन में प्रदूषण की स्तर-स्थिति किस हद तक बिगड़ती जा रही है, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी क्रिसमस से 2 रात पहले चीन के प्रसिद्ध शहर नानजिंग में रात को आसमान नीला देखा गया, जबकि सूर्यास्त के समय प्रदूषण की स्थिति इस हद तक दूषित हो गई थी कि समूचा आसमान जामुनी रंग का हो गया था। देखने वाली खास बात ये भी थी कि लोगों ने इस सबके लिए सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया, क्योंकि सरकार ने धुंध को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए, जबकि समय रहते बहुत कुछ प्रभावशाली किया जा सकता था।
नानजिंग में प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा घोषित किए गए सुरक्षित स्तर से 10 गुना अधिक था। स्कूल-कॉलेज की बाहरी गतिविधियों पर रोक और भारी कारखानों पर तालाबंदी की तो गई किंतु समस्याग्रस्त हो जाने के बाद ही यह निषेधाज्ञा जारी की गई, जो कि समस्याग्रस्त होने से पहले ही की जा सकती थी।
बीजिंग में होने वाले किसी भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन या आयोजन के दौरान सड़कों पर दौड़ रहे वाहनों और प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखानों पर कड़े नियम-प्रतिबंध लगाए जाते हैं। पिछले बरस एपेक सम्मेलन के दौरान भी ऐसा ही किया गया था। स्कूल-कॉलेजों में छुट्टियां कर दी गई थीं और तमाम सरकारी दफ्तर भी बंद रखे गए थे। इसी बरस सितंबर में द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार की 70वीं बरसी पर भी यही किया गया। इस वजह से नतीजे में वायु की गुणवत्ता बहुत अच्छी रही।
सीमित प्रयासों के बावजूद चीन की राजधानी बीजिंग में दिल्ली के मुकाबले वायु-प्रदूषण के स्तर में काफी सुधार हुआ है। सड़कों की स्िथति और स्वच्छता भी दिल्ली में कई गुना बेहतर हुई है। प्रदूषण के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के मामले में बीजिंग ज्यादा गंभीर दिखाई देता है, जबकि दिल्ली को अभी बहुत कुछ सीखना शेष है। चीन को एक फायदा यह भी होता है कि वहां एक पार्टी शासन व्यवस्था है जिस वजह से सरकार जो भी योजना बनाती है, वह वास्तविक तौर पर अमल में भी आती है।
दिल्ली में वायु-प्रदूषण का प्रकोप प्रधानमंत्री निवास, 7 रेसकोर्स रोड तक पहुंचने में कामयाब हो गया है और इस संकट से निपटने के लिए अभी सिर्फ योजनाएं, योजनाओं में परिवर्तन और उस सब पर बहस-मुबाहिसों का ही दौर-दौरा चल रहा है। प्रतिदिन 60 लोग वायु-प्रदूषण की चपेट में आकर मर रहे हैं, बच्चों और बूढ़ों का जीना दूभर हो गया है और गर्भवती स्त्रियों की स्थिति तो बेहद दयनीय हो गई है।
दिसंबर महीन में बीजिंग में वायु-प्रदूषण के खिलाफ दो बार रेड अलर्ट जारी किया गया है। बहुत संभव है कि जल्द ही दिल्ली भी इसकी जद में आ जाए। जरूरी है कि सारा जोर साफ हवा-पानी पर होना चाहिए। अगर लोगों को बीमारियों से बचाना है और जनजीवन के हालात सुधारना है तो दिल्ली को बीजिंग से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है, वरना वह दिन दूर नहीं, जब यही कहा जाएगा कि बीजिंग में रेड अलर्ट, तो दिल्ली भी दूर नहीं।