शनिवार, 26 अप्रैल 2025
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Written By समय ताम्रकर

एक थी डायन - फिल्म समीक्षा

एक थी डायन
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निर्माता-निर्देशक विशाल भारद्वाज को साहित्य आकर्षित करता है, लिहाजा उनकी फिल्मों की कहानी ज्यादातर शेक्सपीयर, रस्किन बांड जैसे लेखकों की रचनाओं पर आधारित होती हैं। उन्होंने अपनी ताजा फिल्म एक थी डायन मुकुल शर्मा द्वारा लिखित लघु कहानी के आधार पर बनाई है। मुकुल शर्मा अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा के पिता हैं और फिल्म के लिए कहानी में जो बदलाव किए हैं उसमें मुकुल को भी जोड़ा गया है।

भारत में बनने वाली हॉरर या सुपरनेचुरल थ्रिलर मूवी से ‘एक थी डायन’ काफी अलग हैं। ये उन हॉरर फिल्मों की तरह नहीं है जो तय शुदा फॉर्मूलों के अनुसार बनती हैं और जो हॉरर कम कॉमेडी ज्यादा लगती हैं।

बचपन में सभी को भूत-चुड़ैल की अंधेरी दुनिया के बारे में जानने की उत्सुकता रहती है। भले ही बच्चों को डर लगता हो, लेकिन ऐसे किस्से वे बड़े चाव से सुनते हैं। भूत-डायनों को लेकर उनकी अपनी कल्पनाएं होती हैं और यही चीज उन्हें ताउम्र डराती हैं क्योंकि बचपन की डरावनी बातें हमेशा याद रहती हैं।

फिल्म का हीरो बोबो (इमरान हाशमी) बचपन में डायन, पिशाच और शैतानों की दुनिया के बारे में किताबें पढ़ता है और तरह-तरह की कल्पना करता है। अपनी छोटी बहन मीशा को भी वह ये बातें बताता हैं।

बोबो और मीशा की मां इस दुनिया में नहीं है। उनके पिता की मुलाकात डायना (कोंकणा सेन शर्मा) नामक महिला से लिफ्ट में होती है। वे कार में उसे लिफ्ट देते हैं और बाद में शादी कर लेते हैं।

बोबो अपनी इस नई मां से बहुत चिढ़ता है और उसे डायन मानता है। उसे पिशाच और डायनों के बारे सारी जानकारियां रहती हैं, जैसे, डायन की जान उसकी चोटी में और पिशाच की उसकी गर्दन में होती है। डायन की ताकत रात के किस समय बढ़ जाती है। कैसे वह अपनी ताकत बढ़ाती है, आदि-आदि।

बोबो की बहन मीशा की मौत दुर्घटनावश हो जाती है और इसका जिम्मेदार वह डायना को मानता है। बोबो के बचपन वाले हिस्से को फिल्म का एक बड़ा हिस्सा समर्पित किया गया है और नि:संदेह यह फिल्म का सबसे बेहतरीन हिस्सा है।

बाल बोबो के रूप में विशेष तिवारी ने कमाल का अभिनय किया है और उसकी बहन का रोल निभाने वाली लड़की भी बेहद क्यूट है। नरक को लेकर उनकी कल्पनाएं, रात को भाई-बहन का रजाई के अंदर टॉर्च लेकर डरावनी ‍किताबें पढ़ना, पिता के साथ भाई-बहन के संवाद, जैसे कई दृश्य हैं जो बेहतरीन बन पड़े हैं।

बोबो बड़ा होता है, लेकिन डायन को लेकर उसका खौफ कम नहीं होता है। उसका अतीत बार-बार उसका पीछा करता है। तरामा (हुमा कुरैशी) नामक उसकी गर्लफ्रेंड बोबो को समझ नहीं पाती है। बोबो को लगता है कि डायनें अभी भी उसके इर्दगिर्द हैं। उसकी मुलाकात एक विदेशी लड़की लिसा दत्ता (कल्कि कोएचलिन) से होती है और उसमें भी बोबो को डायन नजर आती है।

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युवा बोबो वाला हिस्सा इतना प्रभावी नहीं है और कई बातें अस्पष्ट रह जाती हैं? मसलन मीशा मौत के बाद डायना कहां गायब हो जाती है? बड़े होने पर बोबो उसे क्यों नहीं खोजता? उसके साइकेट्रिक की रहस्यम तरीके से मौत होना? युवा बोबो सम्मोहन के जरिये अपने अतीत से रूबरू होता है, उसे ये सारी बातें याद क्यों नहीं रहती जबकि वह 11 वर्ष का था और इस उम्र की तो बातें याद रहती हैं। बोबो की मेजिक ट्रिक्स भी बचकानी हैं।

फिल्म का क्लाइमेक्स भी लेखक ठीक से सोच नहीं पाए और ये बी-ग्रेड की हॉरर मूवी जैसा है, इसके बावजूद फिल्म अच्छी लगती है, बांध कर रखती है, उत्सुकता बनाए रखती है तो इसका श्रेय जाता है निर्देशक कनन अय्यर को।

कनन का प्रस्तुतिकरण बेहद दमदार है। उन्होंने डरावने दृश्य कम रखे हैं, लेकिन जितने भी हैं, रोंगटे खड़े करते हैं। खासतौर पर मीशा की मौत के बाद का दृश्य, बोबो का डायन का पीछा करना, बोबो-मीशा का लिफ्ट से नरक में जाना बेहद प्रभावी हैं। कनन ने इंटरवल तक जबरदस्त फिल्म बनाई है। आगे जानने की उत्सुकता बनी रहती है, लेकिन इसके बाद उन्हें लेखकों का वैसा साथ नहीं मिला।

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तीनों एक्ट्रेसेस में सबसे प्रभावी रही हैं कोंकणा सेन शर्मा। उनके दृश्य बेहद डरावने हैं और उन्होंने अपने इर्दगिर्द रहस्य का ताना-बाना अच्छी तरह बुना। कल्कि कोएचलिन का रोल कन्फ्यूजन पैदा करने के लिए रखा गया है, इसे और बेहतर लिखा जा सकता था। इमरान हाशमी और हुमा कुरैशी का अभिनय औसत रहा।

फिल्म का संगीत अच्छा है। दो गीत ‘काली काली’ तथा ‘यारम’ न केवल अच्छे लिखे गए हैं बल्कि इनकी धुनें भी ऐसी हैं कि पहली बार में ही पसंद आ जाते हैं। ‘यारम’ का पिक्चराइजेशन बेहतरीन है। सौरभ गोस्वामी की सिनेमाटोग्राफी उल्लेखनीय है, हालांकि विशाल भारद्वाज की पिछली सारी फिल्मों जैसा इसमें भी परदे पर अंधेरा ज्यादा रखा गया है।

एक थी डायन जिस उम्मीद के साथ शुरू होती है उस उम्मीद के साथ खत्म तो नहीं होती, लेकिन यह फिल्म अपनी मौलिकता और प्रस्तुतिकरण के कारण बांध कर रखती है। विक्रम भट्ट की पकाऊ हॉरर फिल्मों से थक चुके दर्शकों को यह फिल्म राहत देती है।

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बैनर : बालाजी टेलीफिल्म्स लि., विशाल भारद्वाज पिक्चर्स प्रा.लि.
निर्माता : एकता कपूर, शोभा कपूर, विशाल भारद्वाज, रेखा भारद्वाज
निर्देशक : कानन अय्यर
संगीत : विशाल भारद्वाज
कलाकार : इमरान हाशमी, कोंकणा सेन शर्मा, कल्कि कोएचलिन, हुमा कुरैशी

सेंसर ‍सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 15 मिनट
रेटिंग : 3/5
1-बेकार, 2-औसत, 2.5-टाइमपास, 3-अच्छी, 4-बहुत अच्छी, 5-अद्भुत