दिल तो बच्चा है जी : फिल्म समीक्षा
बैनर : भंडारकर एंटरटेनमेंट, वाइड फ्रेम पिक्चर्सनिर्माता : कुमार मंगत पाठक, मधुर भंडारकर निर्देशक : मधुर भंडारकरसंगीत : प्रीतम चक्रवर्ती कलाकार : अजय देवगन, इमरान हाशमी, ओमी वैद्य, श्रुति हासन, शाजान पद्मसी, श्रद्धा दास, टिस्का चोपड़ा, रितुपर्णा सेनगुप्तासेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 28 मिनट * 16 रील रेटिंग : 3/5शुक्र है कि मधुर भंडारकर ने अपना ट्रेक बदला वरना एक जैसी फिल्म बनाते हुए वे टाइप्ड होने लगे थे। पिछली फिल्म ‘जेल’ की असफलता ने उन्होंने सबक सीखते हुए इस बार हल्की-फुल्की रोमांटिक फिल्म ‘दिल तो बच्चा है जी’ बनाई। ज्यादातर निर्देशक जब अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आते हैं तो बेहतर फिल्म नहीं बना पाते हैं। कुछ नया करने की कोशिश में वे बहक जाते हैं। ‘दिल तो बच्चा है जी’ के जरिये मधुर ने कोई महान रचना तो नहीं की है, लेकिन यह फिल्म औसत से बेहतर है। कई जगह स्क्रिप्ट में कसावट की जरूरत महसूस होती है, लेकिन समग्र रूप से यह फिल्म दर्शकों को ‘फील गुड’ का अहसास कराती है। प्यार के मायने सबके लिए अलग-अलग हैं। कोई सेक्स को ही प्यार समझ बैठता है। किसी का दिल किसी एक से नहीं भरता तो कोई एक पर ही पूरी जिंदगी न्यौछावर कर देता है। इसको आधार बनाकर मधुर भंडारकर, नीरज उडवानी और अनिल पांडे ने ‘दिल तो बच्चा है जी’ की कहानी और स्क्रीनप्ले लिखा है।
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वर्षीय नरेन आहूजा (अजय देवगन) का वैवाहिक जीवन असफल रहा। पत्नी से वह तलाक ले रहा है। इसी बीच वह उम्र में अपने से आधी जून पिंटो (शाजान पद्मसी) की ओर आकर्षित होने लगता है। जून आज की जनरेशन से है, जो किसी से भी अपने दिल की बातें बिंदास तरीके से शेयर करती है। वह अपने बॉस नरेन से भी पूछ बैठती है कि उसने पहली बार सेक्स किस उम्र में किया था। नरेन उसके इस बिंदासपन को ही प्यार समझ बैठता है। नरेन के दो पेइंग गेस्ट हैं, मिलिंद केलकर (ओमी वैद्य) और अभय (इमरान हाशमी)। मिलिंद के लिए प्यार के मायने हैं शादी और परिवार। उसे इस बात से मतलब है कि वह गुनगुन (श्रद्धा दास) को चाहता है, भले ही गुनगुन उसका और उसके पैसों का उपयोग करती है। सच्चा प्यार ही उसके लिए मायने रखता है। अभय की जिंदगी तीन ‘एफ’ के इर्दगिर्द घूमती है। फन, फ्लर्टिंग और ....। उसकी जिंदगी का आदर्श वाक्य है- सो और सोने दो। प्यार-व्यार उसके लिए बेकार की बातें थीं, जब तक वह निक्की (श्रुति हासन) से मिलता नहीं है। इन तीनों की प्यार की गाड़ी मंजिल तक पहुँच पाती है या नहीं, यह फिल्म में हल्के-फुल्के तरीके से दिखाया गया है। इस कहानी में हास्य की भरपूर गुंजाइश थी, लेकिन तीनों लेखक मिलकर इसका पूरी तरह उपयोग नहीं कर पाए। कई जगह फिल्म घसीटते हुए आगे बढ़ती है, खासकर पहले हाफ में। तीनों कैरेक्टर्स को स्थापित करने में जरूरत से ज्यादा समय लिया गया है। इसके बावजूद उन्होंने जितना भी पेश किया है, वह अच्छा लगता है। संजय छैल द्वारा लिखे गए ‘आजकल तक होलसेल में बैडलक चल रहा है’ जैसे चुटीले संवाद कई जगह गुदगुदाते हैं। अजय और शाजान की कहानी सबसे ज्यादा दिलचस्प है और गुदगुदाती है। निर्देशक मधुर ने प्यार को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण को अपने कैरेक्टर के जरिये सामने रखा है। उनकी तीनों फीमेल कैरेक्टर्स बेहद प्रेक्टिकल और बोल्ड हैं। अभय के साथ निक्की एक रात गुजारती है और सेक्स को लेकर वह बिलकुल असहज नहीं होती। गुनगुन अपने स्वार्थ की खातिर मिलिंद का जमकर शोषण करती है। एक निर्देशक के रूप में मधुर ने कहानी को इस तरह पेश किया है कि उत्सुकता बनी रहती है। हालाँकि कई जगह दोहराव देखने को मिलता है। फिल्म की लंबाई भी ज्यादा है और अंत भी परफेक्ट नहीं कहा जा सकता है। अभिनय फिल्म का सबसे सशक्त पहलू है। अजय देवगन ने अपने उम्र से आधी लड़की को चाहने की असहजता को बेहतरीन तरीके से पेश किया है। शाजान पद्मसी फिल्म का सरप्राइज है। उनके खूबसूरत और मासूम चेहरे का निर्देशक ने जमकर उपयोग किया है। शाजान का अभिनय उल्लेखनीय है और इस फिल्म के बाद उन्हें बेहतरीन मौके मिल सकते हैं।
इमरान हाशमी के लिए लंपट व्यक्ति का किरदार निभाना हमेशा से आसान रहा है। इस फिल्म में उनके अभिनय में सुधार नजर आता है। ओमी वैद्य ‘3 इडियट्स’ से उठकर सीधे ‘दिल तो बच्चा है जी’ में चले आए हैं। श्रुति हासन में आत्मविश्वास नजर आया और श्रद्धा दास भी प्रभावित करती हैं। प्रीतम का संगीत मधुर है, लेकिन हिट गीत की कमी खलती है। हिट गाने इस फिल्म के लिए मददगार साबित हो सकते थे। अभी कुछ दिनों से और जादूगरी अच्छे बन पड़े हैं। कुल मिलाकर कमियों के बावजूद भी ‘दिल तो बच्चा है जी’ रोचक है।