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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 23 जनवरी 2025 (12:09 IST)

षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा

Shattila Ekadashi Katha : षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा - Shattila Ekadashi Katha 2025
Ekadashi Vrat 2025 Dates: वर्ष 2025 में 25 जनवरी को षटतिला एकादशी मनाई जा रही है। धार्मिक शास्त्रों में षटतिला एकादशी का बहुत महत्व माना गया है, इससे संबंधित मान्यता के अनुसार जितना पुण्य हजारों वर्षों की तपस्या, कन्या दान और स्वर्ण का दान करने के बाद प्राप्त होता है, उससे कहीं ज्यादा पुण्यफल एकमात्र षटतिला एकादशी का व्रत-उपवास रखने से मिल जाता है। ALSO READ: षटतिला एकादशी व्रत करने का क्या है फायदा? जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व
 
आइए यहां जानें षटतिला एकादशी व्रत की पौराणिक कथा...
 
षट्तिला एकादशी व्रतकथा के अनुसार प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही। इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। वह अत्यंत बुद्धिमान थी, लेकिन उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नहीं किया था।

इससे भगवान ने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है। ऐसा सोचकर भगवान ने भिखारी का वेश धारण करके उस ब्राह्मणी के पास आए और उससे भिक्षा मांगी। 
 
ब्राह्मणी बोली- महाराज किसलिए आए हो? भगवान ने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला उनके भिक्षापात्र में डाल दिया और उसे लेकर प्रभु स्वर्ग लौट आए। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया। 
 
ब्राह्मणी घबरा कर भगवान के पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की, परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है? इस पर भगवान बोले- पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियां आएंगी तुम्हें देखने के लिए। पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना। 
 
ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देवस्त्रियां आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षट्तिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो। उनमें से एक देवस्त्री ने षट्तिला एकादशी का माहात्म्य सुनाया, तब ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है। 
 
उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षट्तिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया। इसी कारण हर मनुष्यों को षट्तिला एकादशी का व्रत और किसी भी तरह का लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए। इससे अनेक प्रकार के कष्ट, दुर्भाग्य, दरिद्रता दूर होकर मोक्ष प्राप्त होता है। इस दिन पूजा, हवन, प्रसाद, स्नान-दान, भोजन और तर्पण में तिल का उपयोग किया जाता है।
 
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