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Written By Author जयदीप कर्णिक

हमने क्या खोया, हमने क्या पाया

बहुत याद आओगे जग्गु भाई

जगजीतसिंह
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उम्मीद की आखिरी डोर भी टूट ही गई। दिल के हर कोने से दुआ निकल रही थी कि मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं, जगजीत भाई वापस जरूर आएंगे, उस अलिखित वादे को पूरा करने के लिए जिसके तहत उनसे लंबी बात होनी थी, कुछ तो लिखना था और कुछ बस महसूसना। अफसोस, मौका नहीं दिया भाईसाहब ने।

जगजीतसिंह का जाना हर उस गजल प्रेमी के लिए निजी क्षति है जिसने उनकी एक भी गजल सुनी है। उनका मुरीद अपनी पूरी जिन्दगी में जगजीतसिंह से चाहे मिला हो या ना मिला हो, उनके कैसेट और सीडी सुनी हों या उन्हें 'लाइव' सुना हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, जिसने एक बार उन्हें सुन लिया वो उनका हो गया। एक अजीब-सा निजी रिश्ता जुड़ जाता था उनके साथ। बस यों लगता कि ये इंसान दिल के बहुत करीब है, बहुत अपना है। ऐसा इसलिए कि जगजीतसिंह की आवाज और अल्फाज हर सुनने वाले को बहुत करीब से सहलाते थे।

अपने प्यार को, दिल टूटने के गम को, खुशी को, पंजाबी टप्पों को, भक्ति भाव को जगजीत की आवाज से जोड़कर एक पूरी की पूरी पीढ़ी जवान हुई है। एक क्या, एक साथ कई पीढ़ियों के रंजो-गम, मोहब्बत, इकरार और इनकार, तन्हाई और जुदाई सबमें जगजीत की आवाज ने बहुत करीब से साथ निभाया। ऐसा साथ जो ना सगे निभा सकते हैं ना दोस्त, वो अपनापन तो बस जगजीत की आवाज में ही महसूस होता है।

...और उनके चले जाने के बाद मुझे लगता है कि ये और भी शिद्दत से महसूस होता रहेगा। शायरों ने जिन्दगी के हरेक रंग पर लिखा है, लेकिन उनके शब्दों को मानी दिए जगजीतसिंह ने। वो हर शब्द में प्राण फूंक देते थे। उनकी गहरी खरज भरी आवाज बदन के पोर-पोर में रिस कर रूह को भिगो देती है। उनसे पहले शायरी और गजल बड़ी 'एक्सक्लूसिव' चीज हुआ करती थी। गुलाम अली, मेहंदी हसन और बेगम अख्तर को सुनने वालों का एक 'क्लास' हुआ करता था।

जगजीत की सबसे बड़ी उपलब्धि ही यह है कि उन्होंने इस एक्सक्लूसिविटी को तोड़ा और गजल को एक बहुत बड़े वर्ग से जोड़ा। गालिब को, सुदर्शन फाकिर को और निदा फाजली को, जिन्होंने किताबों में कभी नहीं पढ़ा उन्होंने भी हर अशआर के मानी समझे। हमारे सामाजिक ताने-बाने और किसी पर यकीन ना कर पाने की इंसानी फितरत के बीच अपने दिल की बात कहने में संकोच करने वाली पीढ़ी को जगजीत की आवाज में एक बेहतरीन दोस्त मिला।

...वही दोस्त आज साथ छोड़कर चला गया। इसीलिए आज जाने कितनी आंखें नम हैं और कुछ तो जारो कतार रो रही हैं। इतना कि जितना कोई सगे के गम में ना रोया हो। इन आँखों को रो लेने दीजिए... यों किसी के जाने का गिला नहीं होता, लेकिन बहुत करीब से उठकर चला गया कोई।

क्या खूब बात निकलकर आई जगजीत की आवाज में- तुम चले जाओगे तो सोचेंगे, हमने क्या खोया, हमने क्या पाया। हमने एक करीबी दोस्त को सदा के लिए खो दिया है। लेकिन हमने उसकी आवाज में एहसासों को जीना सीखा है और उसकी रूह, उसकी आवाज हमेशा हमारे साथ बनी रहेगी। श्रद्धांजलि जग्गु भाई।