रविवार, 28 अप्रैल 2024
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Written By अजय बोकिल

चुनावी जीत के दावे ओर भितरघात की सिसकियां

चुनावी जीत के दावे ओर भितरघात की सिसकियां -
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को खां, वोट गिनने की तारीख नजदीक आती जा रई हे ओर दिल की धड़कनें भी बढ़ती जा रई हे। क्या होगा, केसे होगा। वोट तो खूब डलवाए थे। असली डलवाए थे। फर्जी डलवाए थे। पर अंदर मशीन पे जाके कोन को डाला, कोन जाने। वोटर भी स्याना बन रिया हे। बता नई रिया। भगवान को तो पता होगा। पर वो तो मतगणना के दिन ई बोलेगा। जीते तो ठीक, पर हारने की जमीन तो अभी से तैयार करनी पड़ेगी। भितरघात की शिकायत पेले से करी हुई हे। यूं पूरी पार्टी इसी में लगी हे के चुनाव हारे तो ठीकरा भितरघातियों पे फोड़ा जाए। इससे थोड़ी तो बची रेगी।

मियां, चुनाव में सबसे खतरनाक नाग रेता हे भितरघात। इसके काटे का पानी भी नई मांगता। बरसों तक हुकूमत में डटी पार्टी में ये भितरघातिए इफरात में रेते हें। पर अब उन पार्टियों में भी इसने नए बिल बना लिए हें, जिन्हे सत्ता की बीन बजाने का तजुर्बा कम हे। कांगरेस में भितरघात ओर ऊपरघात में ज्यादा फरक कभी नई रिया। यानी खुला खेल फर्रुक्खाबादी। अगले को निपटाया भी तो डंके की चोट पे। टिकट की दावेदारी से ई खेल शुरु हो जाता हेतो वोटिंग मशीन का बटन दबने तक चलता रेता हे। नेताओं के लेवल के हिसाब से डसने का पेमाना ते होता रिया हे। सो, चुनाव की तैयारी भी अगला इसी हिसाब से करता हे।

खां, बीजेपी में इस दफा ये लफ्ज कुछ ज्यादा जोर से सुनाई दे रिया हे। वरना वहां तो अनुशासन, संगठन ओर समर्पण टाइप आड़े-टेढ़े शब्द ज्यादा चलते रिए हें। कई दफे तो कारकर्ता की उमर इन लफ्जों का मायने समझने में ई बीत जाती हे। लेकिन इधर पार्टी दस साल हुकूमत में क्या रह ली, सो उसकी डिक्शनरी में भी इजाफा हो रिया हे। इस बार का चुनाव जीतने के दबी जबान के दावो के साथ भितरघात की सिसकियां भी सुनाई दे रई हें। मसलन- में तो चुनाव जीत ई रिया था, मगर अगले ने मुझे निपटाया। अब जीते तो अपनी दम पे ओर हारे तो अगले के दम से। बस तसल्ली इत्ती के अभी निपट भी गए तो कल को उम्मीद बाकी रहेगी।

मजे की बात ये रई के कांगरेसी खेमे में इस दफे भितरघात का कोई खास गदर नई था। लोग टिकट कटवाने ओर दिलवाने में ई इत्ते हांफ गए थे के बाद में कुछ करने का जोश बाकी नई रिया। यूं भी दस साल से जंग लगी मशीन में घरघराहट से ज्यादा क्या होता। हां, पर ये चलेगी तो एकदम झपट्टा मारेगी। सीधे सीएम की कुर्सी तक। खेर, असली चिंता भाजपा के खेमे में हे। भितरघातिए कहीं बनता खेल न बिगाड़ दें। इस बार तो उन्होने सीएम तक को नई छोड़ा। जहां गुंजाइश बनी भुस भरने से बाज नई आए। बाकी की क्या बिसात। लिहाजा चुनाव नतीजों के पेले ई भितरघात की रेडियो थेरेपी की बात चल पड़ी हे। भितरघातियों के लेवल ते किए जा रिए हें।

खुदा न खास्ता चुनाव हार गए तो जले हुए दाग देखके दिल बहला लेंगे। यूं आला कमान से बाला कमान तक समझाया हुआ हे के चिंता की कोई बात नई हे। टीवी पे चुनावी बहसों में जीतने के कारणों की तैयारी अभी से कर लो। मगर दिल में खुटका बना हुआ हे कहीं विकास की पुंगी में भितरघात का सांप घुस गया तो...।