उड़ी के सैनिक ठिकाने पर हुआ आतंकी हमला कोई पहला और अंतिम हमला नहीं है। साथ ही, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि भविष्य में ऐसे हमले नहीं होंगे, क्योंकि ऐसे हमलों से हमने कभी कोई सबक नहीं सीखा इसलिए इतिहास हमें बार-बार सबक सिखाने के लिए खुद को दोहरा रहा है। अगर हमारा कोई पड़ोसी देश हम पर बार-बार हमला कर रहा है तो यह उसकी गलती नहीं है। गलती हमारी है कि हम बार-बार उसे हमला करने का न्योता देते हैं और वह अपना काम कर जाता है। ऐसे कुछ हमलों की तरह से शायद हम फिर एक बार भूल जाएं कि हम पर पाकिस्तान ने हमला किया था।
चूंकि इस बार मामला गंभीर है और इसके साथ प्रधानमंत्री मोदी की साख भी जुड़ी हुई है इसलिए इस बार माना जा रहा है कि मोदी सरकार ने सेना को अपना काम करने, राजनयिकों को अपना काम करने और खुफिया एजेंसियों से अपना काम करने को कहा होगा। लेकिन इससे कोई सार्थक परिणाम निकलेगा, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है। इस मामले को भी राजनीतिक नफे-नुकसान के तराजू पर तौला जाएगा और जब हमारी ओर से कोई जवाब दिया जाएगा तो यह किसी भी तरह से अप्रत्याशित नहीं होगा। दुनिया का एकमात्र खालिस इस्लामी देश पाकिस्तान इस बात का अंदाजा लगा लेगा कि भारत की ओर से क्या जवाब आएगा?
पाकिस्तान से सामना करने की नीति ऐसी होनी चाहिए, जो कि इस कथित इस्लामी देश को हजारों टुकड़ों में बांट सके लेकिन सच तो यह है कि घटनाओं की सामरिक प्रतिक्रिया देने के अलावा हमारी कोई पाकिस्तान नीति नहीं है। लेकिन पाकिस्तान की नमकहरामी करने की नीति लगभग स्वतंत्रता से पहले की है। चूंकि हमारे पास कोई दीर्घकालिक, स्थायी, सुसंगत पाकिस्तान नीति नहीं है तो उड़ी और उससे पहले के आतंकी हमले हुए हैं। अगर हमारे पास कोई सुसंगत नीति होती तो पाकिस्तान को अब तक पता लग गया होता कि एक उड़ी की क्या कीमत होती है? हम अब तक विचार-विमर्श में लगे हैं तो इसका अर्थ है कि पाकिस्तान ने सोच लिया है कि उसे भारत के कैसे जवाब की उम्मीद है? समझा जा सकता है कि इस बार भी पाक मान बैठा है कि भारत जो कुछ भी करेगा, उसका पाकिस्तान पर कोई असर नहीं होगा।
अब तक हम जो गलती करते आ रहे हैं, वह यही है कि हमारी कोई स्पष्ट और ठोस पाकिस्तान नीति ही नहीं है। दूसरी ओर पाकिस्तान मानता है कि भारत की मूल प्रवृत्ति युद्ध से भागने की है। इस देश का इतिहास बताता है कि हमने किसी भी देश पर हमला नहीं किया, वरन आक्रमणकारी से बचने के लिए ही हथियार उठाए हैं। भारत पराजित मानसिकता वाले लोगों का देश है, रवैया हमेशा बचाव करने का है और वह भी तब जब हमारी जान पर बन आए। यह सच्चाई है कि आक्रमणकारी को केवल एक बार घुसकर मरना होता है और वह हमेशा ही इस काम में सफल होता है जबकि बचाव करते हुए हमें हर बार लड़ाई को जीतना पड़ता है और अपने नुकसान को सीमित रखना पड़ता है।
पाकिस्तान के लोग, फौज, आईएसआई और आतंकवादी यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत ऐसे लोगों का देश है, जो कि तनिक से प्रतिरोध से झुक जाता है। यह हिन्दू मानसिकता का परिचायक है कि देश का बंटवारा भी इसी आधार पर हुआ था कि मुस्लिम, बहुसंख्यक हिन्दुओं के दमन और उत्पीड़न का शिकार होंगे। लेकिन इस देश में तो ठीक उल्टा ही हो रहा है। कश्मीर का एक बड़ा भाग छिन गया लेकिन हम इसे दोबारा हासिल नहीं कर सके। कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों को देश निकाला दिया गया लेकिन हमारी सरकार, नेता, राजनीतिक दल कुछ नहीं कर सके।
मुस्लिम केवल ऐसी कश्मीरियत का हवाला देते रहे जिसमें कट्टर सुन्नी आतंकवादी पाकिस्तान से आकर घाटी में स्वच्छंदता से विचरण करते रहे और लोगों की हत्याएं करते रहे। उन्हें कश्मीरी मुस्लिमों के घरों में पनाह ही नहीं मिलती रही वरन कश्मीरियों की रोटी और बेटी भी इन बुरहानवानियों को मिलती रही। दिल्ली और केंद्र की सरकारें इन विद्रोहियों, देशद्रोही अलगाववादियों की इस तरह देखरेख करती रही हैं मानो ये अलगाववादी न होकर हजरत के बाल हों। हमारे लोकतंत्र का नमूना देखिए कि सुप्रीम कोर्ट की नजर में भी ये अलगाववादी बिलकुल निरापद हैं। कोई नेता दिल्ली में इलाज कराकर और पाकिस्तानी उच्चायोग की दुआएं लेकर घाटी में आता है और कहता है कि वह तो हिन्दुस्तानी है ही नहीं। घूमने, ऐश करने के लिए भारतीय सुविधाएं, पासपोर्ट आदि सभी चाहिए।
आज भी साउथ ब्लॉक, नार्थ ब्लॉक और विभिन्न राजनीतिक दलों में ऐसे नेता, बुद्धिजीवी मौजूद हैं, जो घाटी में तो जनमत संग्रह के पक्षधर हैं और आतंकवादियों के मानवाधिकारों को लेकर दिन-रात दुखी रहते हैं। देश की राजनीति केवल सत्ता हासिल करने के लिए है इसलिए जब भी कभी आतंकवादी पकड़े जाते हैं तो उन्हें घाटी की जेलों में किसी देवी-देवता की तरह से रखा जाता है। आतंकवादी कभी भी इन्हें छुड़ा ले जाते हैं तो कभी कोई मंत्री की बेटी के बदले रिहा किए जाते हैं। यह सिर्फ हमारे देश में होता है इसलिए हमारे देश की हालत भी ऐसी है कि देश में सत्ता पाने के लिए तथाकथित देशभक्त नेता कुछ भी करने को बुरा नहीं समझते हैं। जिहादियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की बजाय नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड्स के जवान ऐसे नेताओं की सुरक्षा में लगे रहते हैं जिनके होने या न होने से देश को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
भारतीयों ने अपनी एक स्थायी नीति बना ली है कि वे अपनी गलतियों से कभी नहीं सीखने की कसम खा चुके हैं। पाकिस्तानी जहां नए-नए तरीकों से भारत को अधिकाधिक नुकसान पहुंचाने में विश्वास करते हैं वहीं हम इन घटनाओं से कभी कुछ नहीं सीखते हैं। हमारे नेता, राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों में ऐसे पाकिस्तानपरस्त तत्वों की कमी नहीं है, जो कि आज भी पाकिस्तान से शांति वार्ता की उम्मीद लगाते हैं जबकि पाकिस्तान की सेना, आईएसआई, कट्टरपंथी तत्व और जनता का एक बड़ा भाग हमेशा दिखाता है कि उन्हें 'हिन्दू भारत' से कोई सहानुभूति नहीं है जिसे वे पहले भी कई बार तोड़ चुके हैं।
हमारे नेता वोटों के लालच में पाकिस्तानियों से गले मिलने के लिए कराची और लाहौर तक की सैर करते हैं और उन्हें उनके जहरीले दांत नहीं दिखते हैं लेकिन हम हर बार ऐसी प्रतिक्रिया जाहिर करते हैं, मानो यह पहली बार हुआ है। भारतीय इस बात को लेकर विशेष तौर पर मूर्खतापूर्ण अपेक्षा रखते हैं कि पाकिस्तान की सेना, आईएसआई दुनिया के सभी नियम-कानूनों को मानेगी। जब आपको पता है कि आपका दुश्मन दीर्घकालिक लड़ाई के लिए तैयार है तो आपकी तैयारी अल्पकालिक और कामचलाऊ ही क्यों होती है? हमें स्थायी वॉर रूम की जरूरत है लेकिन हमें इतने आतंकवादी और युद्ध जैसे हमलों के बाद इसकी कोई जरूरत नहीं महसूस होती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि हम अपनी गलतियों, असफलताओं से भी कुछ भी सीखना नहीं चाहते हैं।
जब भी कोई आतंकवादी घटना होती है, तो हम जानकारियों का डॉजियर बनाकर पाकिस्तान को सौंपते हैं और वे इसे रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं। लगता है कि इस तरह के डॉजियर बनाकर सारी दुनिया को दिखाना और फिर पाकिस्तान को सौंपना हमारा राष्ट्रीय खेल बन गया है जिसमें पाकिस्तान को सबसे ज्यादा मजा आता है। हमारे राजनयिक प्रयासों का उद्देश्य होना चाहिए कि पाकिस्तान, सारी दुनिया में एक अछूत देश बन जाए लेकिन सच तो यह है कि इसे चीन ही नहीं, वरन अमेरिका, रूस और हमारे कथित मित्र देशों से भी मदद मिलती है। हमारे कलमवीर पत्रकार देश को सिखाते हैं कि पाकिस्तान के लोग कितने अच्छे हैं, वे अपनी हिन्दू आबादी की कितनी मदद करते हैं।
इसी तरह पाकिस्तान जब कहता है कि घाटी में हमारी गलतियों के कारण अलगाव और हिंसा पनपी है। देश के मीडिया में काम करने वाले नरमपंथी और गरमपंथी यह नहीं देखते कि कश्मीर घाटी का इस्लामीकरण करने में पाकिस्तान का पूरा-पूरा हाथ है। जब घाटी में 100 प्रतिशत मुस्लिम हो गए तो कश्मीरियत बहाल हो गई। पहले तो पाकिस्तान अपने इलाके में आतंकवादियों के शिविर लगाता था लेकिन अब उसे यह करने भी जरूरत नहीं रह गई है, क्योंकि घाटी के अपने जिहादी ही इस्लामीकरण को फैला रहे हैं।
जब कभी भी पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात आती है तो मीडिया के डव इसे युद्धोन्माद फैलाना कहने लगते हैं। आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई भी इन्हें सुरक्षाबलों का युद्धोन्माद लगती है। अपने देश के हितों की रक्षा करना सभी देश की सरकारों का धर्म है और दुनिया में कोई भी देश अपनी कार्रवाइयों को इस बात से प्रभावित नहीं होने देता कि दुनिया के दूसरे देश क्या कहेंगे? अमेरिका और चीन को जब भी सैनिक कार्रवाई करनी होती है, वे करते हैं। इसराइल ऐसा करता है लेकिन हम शांतिप्रिय भारतीय ऐसा करने के बारे में नहीं सोचते हैं। हमारी असली समस्या है कि भारत के सांस्कृतिक डीएनए में संघर्षों से बचने, डरने की प्रवृत्ति छिपी हुई है और हम बार-बार गुस्से से आग-बबूला होते हैं लेकिन किसी भावी अपमान से बचने के लिए निर्णायक कार्रवाई नहीं करते हैं। हम भारतीय उन लोगों में से हैं, जो कि 'दूसरों को घायल करने का इरादा रखते हैं लेकिन जिन्हें हमला करने से डर लगता है।'