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Written By Author शरद सिंगी

यूएनओ के मंच से नवाजी दावों पर स्वराजी धमाके

यूएनओ के मंच से नवाजी दावों पर स्वराजी धमाके - United Nations General Assembly, Sushma Swaraj, Nawaz Sharif, India, Pakistan
संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में नवाज़ शरीफ ने 21 सितम्बर को पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष राहील शरीफ द्वारा लिखित भाषण पढ़ा था। शरीफ का तो मात्र मुखौटा था, बोल रहे थे पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष। विश्व मंच से मुख्यतः उन्होंने पाकिस्तान की जनता को संबोधित किया तथा अपनी सेना का गुणगान किया। पाकिस्तानी सेना की लांछित हुई प्रतिष्ठा  को संवारने के लिए असत्य  का सहारा लिया। मंच पर गर्व से  कबूल किया कि पाकिस्तानी  सेना ने अफगानिस्तान की सीमा  पर आतंकियों के सफाए के लिए विश्व का सबसे बड़ा अभियान चला रखा है। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि हमने आतंकियों को पैदा तो किया था, किन्तु विश्व अब समझ ले कि अब हम उनका सफाया करने में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं। 
विश्व के नेताओं को इस अधम राष्ट्र की झूठी कहानियां सुनने में दिलचस्पी नहीं थी, अतः अधिकांश महत्वपूर्ण लोग इस भाषण में अनुपस्थित रहे। पाकिस्तान के कुछ देर बाद ही अफगानिस्तान की बारी थी जिसने पाकिस्तान के दावे को तहस-नहस करते हुए आतंकियों के सफाए के प्रयासों पर कई प्रश्‍न चिन्ह खड़े कर दिए विशेषकर खूंखार हक्कानी नेटवर्क को लेकर जो अफगान और पाकिस्तान सीमा पर आतंकी गतिविधियों में लिप्त है। 
 
काश्मीर में आतंकियों की हिंसा को न्यायसंगत ठहराने के लिए शरीफ ने हिजबुल आतंकी बुरहान वानी का सहारा लिया। पाकिस्तानी जनता को खुश करने के लिए भाषण का अस्सी प्रतिशत हिस्सा कश्मीर पर केन्द्रित था। सेना ने अपनी करतूतों और आतंकवादियों को बचाने के लिए नवाज़ शरीफ को बलि का बकरा बना दिया। वे बोलते गए और पाकिस्तान की सिविल सरकार पर स्वयं गोल पर गोल दागते गए। मजबूरी थी।  नवाज़ ने एक बार फिर बताया कि पाकिस्तान की सिविल सरकार अपनी ही सेना के बंधुआ मज़दूर की तरह है। यदि प्रधानमंत्री अपनी औकात से थोड़ा भी बाहर निकलते हैं तो सेना पठानकोट और उड़ी जैसे हमलों को अंजाम दे देती हैं।   
 
नवाज़ शरीफ दुनिया के सामने कश्मीर का खिदमतगार बनने गए थे ताकि पाकिस्तानी जनता पर अपना प्रभाव जमा सकें।  सेना को लगा कि शरीफ अपना कद बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, अतः  उन्होंने तुरंत उड़ी हमले को अंजाम दे दिया।  राहिल शरीफ को उड़ी हमला करवाने से पहले अच्छी तरह मालूम था कि नवाज़ अभी अमेरिका में हैं और उनकी फजीहत होना निश्चित है। नवाज़ की मजबूरी थी कि वे वापस भी नहीं लौट सकते थे क्योंकि सेना का भाषण पढ़ना था। इस तरह सेना का गुणगान और स्वयं की फजीहत कराकर नवाज़ लौट गए। फजीहत न केवल विश्व के सामने हुई अपितु अपने देश  मीडिया ने उन्हें धिक्कारा कि जिस  तरह बिना किसी जोश या आवेग के उन्होंने भाषण पढ़ा। वे भाषण को ऐसे पढ़ रहे थे मानो उन्हें जबरदस्ती खड़ा कर दिया हो।  
 
नवाज़ के  भाषण में भारत का नाम होने से भारत को  अधिकार मिला  प्रतिकार करने का। भारत ने इस अवसर का भरपूर उपयोग किया। संयुक्त राष्ट्रसंघ में तैनात  भारत की एक जूनियर महिला अधिकारी  ने शरीफ के  भाषण की सिलसिलेवार धज्जियां उड़ा दीं। भारत की ओर से सुषमा स्वराज के भाषण में समय था। सब आश्वस्त  थे कि वे मंच से नवाज़ शरीफ को यथोचित उत्तर ही नहीं फटकार भी लगाएंगी किन्तु उनसे  पहले ही  एक जूनियर ऑफिसर ने भारत का परचम लहरा दिया।
 
सुषमाजी का  भाषण 26 सितम्बर को हुआ और  उन पर भारतीय जनता का किसी तरह का दबाव नहीं था। जाहिर है मैदान साफ था और उन्होंने धमाकेदार बैटिंग की क्योंकि आउट होने का डर नहीं था। अपने तर्कों को कुशाग्रता से रखते हुए पाकिस्तान के आतंकी मंसूबों का पर्दाफाश किया। एक जिम्मेदार राष्ट्र की तरह विश्व मंच से उन सभी विषयों पर बोला जो आज विश्व में चुनौती बनकर खड़े हुए हैं। विश्व मंच को  द्विपक्षीय मंच नहीं बनने नहीं दिया। फिर अंत में ताबड़तोड़ बैटिंग करते हुए पाकिस्तान को पूरी तरह से लज्जित किया और  तन पर शायद ही कुछ कपड़े छोड़े होंगे।  कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग घोषित कर पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को नेस्नाबूत कर दिया।  सुषमाजी का यह भाषण आने वाले दिनों में पाकिस्तान के प्रति भारत सरकार की विदेश नीति की झलक देता है। 
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