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उदारवादी सुधारों की बयार सऊदी अरब में भी

उदारवादी सुधारों की बयार सऊदी अरब में भी - History of Saudi Arabia Arab country Saudi Arabia,
सऊदी अरब अपने सामाजिक सुधारों को लेकर पिछले कुछ दिनों से सुर्ख़ियों में है। सऊदी अरब, अरब देशों में सबसे बड़ा देश है जो एक अमीर देश होते हुए भी अपनी कई विवादित और निर्मम परंपराओं की वजह से बदनाम रहा है। इस विषय पर चर्चा करने से पहले हम इस देश का थोड़ा-सा इतिहास देखते हैं। सऊदी अरब में सऊद घराने का राज्य है। 
 
सन् 1935 में बादशाह अब्देल अज़ीज़ सऊद ने अपने ही नाम पर सऊदी अरब सल्तनत की स्थापना की और तबसे आज तक सऊदी तख़्त पर सऊद घराने का एकाधिपत्य है। दुनिया की बची खुची राजशाहियों में सऊदी अरब की राजशाही सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण मानी जाती है। सऊदी अरब के बादशाह को इस्लाम धर्म की दो सबसे पवित्र मस्जिदों का संरक्षक भी कहा जाता है। आपको पढ़कर आश्चर्य होगा कि बादशाह सऊद के 45 पुत्र थे उनमें से एक की मृत्यु के पश्चात् अनुक्रम में दूसरे को राजगद्दी मिलती रही। इस तरह छ: पुत्रों को राजगद्दी मिली। वृद्ध युवराज गद्दी पर बैठते रहे और सऊदी अरब अपने पुराने ढर्रे पर चलता रहा किंतु वर्तमान बादशाह सलमान ने इस परिपाटी को बदलते हुए अपने 32 वर्षीय पुत्र मोहम्मद को युवराज घोषित कर दिया और यहीं से सऊदी अरब में बदलाव की कहानी आरंभ हुई जिसकी चर्चा हम नीचे करेंगे। विश्वास है कि पाठकों को यह कहानी एक तिलस्मी कहानी से कम रोचक नहीं लगेगी। 
 
इस्लाम में एक वहाबी पंथ है जो अपने धार्मिक कट्टरपंथ के लिए जाना जाता है और वह सऊदी अरब में बहुत प्रभावशाली है। पवित्र कुरान की आयतों की गलत तरीके से कठोरतम और हिंसक व्याख्या ही इसका धार्मिक दृष्टिकोण है। इस पंथ के संस्थापक मुहम्मद अब्द अल-वहाब थे जिनके नाम पर वहाबिज़्म आरम्भ हुआ। कट्टरपंथ का यह हाल है कि सऊदी अरब में गैर मुसलमानों के लिए न तो नागरिकता का प्रावधान है और न ही उनके पूजा स्थलों को बनाने की अनुमति है। शायद यही वजह रही कि 11 सितम्बर 2001 में न्यूयॉर्क शहर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमलों के 19 हमलावरों में से 15 सऊदी अरब के नागरिक थे। तब से सऊदी अरब पर आतंकियों को पोषित करने के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। आज भी सरेआम चौक में गर्दन काट कर मृत्युदंड दिया जाता है। धर्म या सुल्तान के विरुद्ध बोलने पर मृत्युदंड का प्रावधान है जो बहुत उदारता से दे दिया जाता है। 
 
महिलाओं के अधिकार बहुत ही सीमित हैं और उनकी स्वतंत्रता कड़े परदे में हैं। सन् 2015 में उन्हें पहली बार स्थानीय निकायों के चुनावों में वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ। इस तरह सऊदी अरब दुनिया का अंतिम राष्ट्र बना जिसने महिलाओं को वोट डालने की अनुमति दी। वर्तमान युवराज युवा हैं और नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने सऊदी अरब में सामाजिक सुधारों की कहानी आरम्भ की। महिलाओं को ड्राइविंग की अनुमति दी गई है जो अगले वर्ष से लागू होगी जिसके लिए विश्व भर में सऊदी अरब प्रशासन की आलोचना होती रही है। महिलाओं के लिए खेल स्टेडियम में जाने की भी व्यवस्था भी की जा रही है। नव मनोनीत युवराज जो दूसरे  महत्वपूर्ण परिवर्तन का प्रयास कर रहे हैं वे हैं आर्थिक नीतियों में सुधार।


सऊदी अरब के पास दुनिया का 22 प्रतिशत कच्चा तेल है और अभी तक उसकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह तेल के निर्यात पर निर्भर थी। इस देश के पास आय का दूसरा स्रोत नहीं है क्योंकि आपको आश्चर्य होगा कि सऊदी अरब दुनिया का ऐसा सबसे बड़ा देश है जिसमें कोई नदी नहीं है। अधिकांश भाग मरुस्थल है और जमीन का पानी समाप्त हो चुका है ऐसे में किसी प्रकार की खेती संभव नहीं है और खाद्य पदार्थों के लिए उसे आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। अब चूंकि कच्चे तेल के भावों में निरंतर गिरावट और विश्व में उसके उपयोग में हो रही गिरावट ने सऊदी अर्थव्यवस्था को चुनौती दे डाली है ऐसे में सऊदी अरब को अपनी अर्थव्यवस्था बचाने के लिए आय के अन्य स्रोतों पर काम करना जरूरी था।   
 
युवराज मोहम्मद ने यही किया। सबसे पहले सऊदी अरब से आतंकियों और कट्टरपंथियों का तुरंत नाश करने की घोषणा की और इस्लाम के संयत और मध्यम पंथ को पुनः स्थापित करने का वादा किया। अपने देश को बाहरी निवेशकों के लिए खोला जो कुछ अर्से पहले तक सोचना भी संभव नहीं था। अनेक नई योजनाओं की घोषणा की। अरबों डॉलर से एक अत्याधुनिक शहर और औद्योगिक नगरी बसाने की घोषणा की। विशेषज्ञों का मानना है कि जिस गति से युवराज समाज में परिवर्तन चाहते हैं उतनी तेजी से तो शायद संभव नहीं होगा क्योंकि यह समाज वर्षों से एक रूढ़िवादी जीवनशैली का आदि हो चुका है, किंतु आधुनिक संसार में किसी भी समाज को अधिक दिनों तक अंधेरे में नहीं रखा जा सकता। अभी तो यही लगता है कि नए युवराज सऊदी अरब को रूढ़िवाद से मुक्त करेंगे।
 
 
यह उल्लेखनीय है कि अब तक की उत्तराधिकार की परम्परा से पूर्व शासक के पुत्रों में से ही एक के बाद एक सुल्तान की गद्दी पर आसीन होते थे परिणामतः राजगद्दी संभालते समय उनकी उम्र अस्सी वर्ष से ऊपर हो जाती थी जिस उम्र में नया कुछ करने की अंतःप्रेरणा नहीं होती। पहली बार वर्तमान शासक ने अपने भाइयों की जगह अपने युवा पुत्र को युवराज घोषित किया। उसी का परिणाम है कि नए सोच की सुधारवादी बयार, परम्परावादी व दकियानूसी सऊदी अरब जैसे समर्थ राष्ट्र का चेहरा बदलने की तैयारी में है। हमारा विश्वास है कि यह परिवर्तन उस देश के और सम्पूर्ण मध्य एशिया के लिए हितकर सिद्ध होगा। आमीन।
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