शुक्रवार, 1 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. gandhiji ke trastiship siddhant
Written By

याराना पूंजीवाद से अलग है गांधीजी का ट्रस्टीशिप सिद्धांत

याराना पूंजीवाद से अलग है गांधीजी का ट्रस्टीशिप सिद्धांत - gandhiji ke trastiship siddhant
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। उन्होंने निवेशकों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि वे खुलेआम उद्योगपतियों से मिलते हैं। वे कुछ लोगों की तरह उद्योगपतियों के साथ खड़े होने से नहीं डरते, क्योंकि उनके इरादे 'नेक' हैं। इस सम्मेलन में नरेन्द्र मोदी ने देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात महात्मा गांधी के बिड़ला परिवार से संबंधों का उल्लेख करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि 'जब नीयत साफ हो और इरादे नेक हो तो किसी के साथ खड़ा होने से दाग नहीं लगते। महात्मा गांधी का जीवन इतना पवित्र था कि उन्हें बिड़लाजी के परिवार के साथ जाकर रहने, बिड़लाजी के साथ खड़ा होने में कभी संकोच नहीं हुआ।' इस मौके पर नामचीन उद्योगपति भी उपस्थित थे।

 
गांधीजी के आर्थिक सिद्धांतों में उनका ट्रस्टीशिप का सिद्धांत सर्वोपरि है। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में 1903 में ट्रस्टीशिप के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। गांधीजी ने इसका आधार ईशोपनिषद के प्रथम श्लोक को माना था जिसका अर्थ है, 'इस जगत में जो कुछ भी जीवन है, वह सब ईश्वर का बसाया हुआ है इसलिए ईश्वर के नाम से त्याग करके तू यथाप्राप्त भोग किया कर। किसी के धन की वासना न कर।' उनके अनुसार जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से अधिक संपत्ति एकत्रित करता है, उसे केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करके पर्याप्त संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार है, शेष संपत्ति का प्रबंध उसे एक ट्रस्टी की हैसियत से, उसे धरोहर समझकर, समाज कल्याण के लिए करना चाहिए।

 
ट्रस्टीशिप सिद्धांत के पक्ष में गांधीजी मानते थे कि प्रकृति की रचना ही ऐसी है कि सभी की क्षमता एक-सी नहीं हो सकती इसलिए प्राकृतिक रूप से कुछ लोगों की कमाने की क्षमता अधिक होगी और दूसरों की कम। वे कहते हैं कि मैं बुद्धिवादी व्यक्तियों को अधिक कमाने दूंगा, उनकी बुद्धि को कुंठित नहीं करूंगा, परंतु उनकी अधिकांश कमाई राज्य की भलाई के लिए वैसे ही काम आनी चाहिए, जैसे कि बाप के सभी कमाऊ बेटों की आमदनी परिवार के कोष में जमा होती है। वे अपने कमाई का संरक्षक बनकर ही रहेंगे। इस तरह यह स्पष्ट है कि यह महत्वपूर्ण नहीं रह गया है कि उस समय गांधीजी किसके साथ खड़े थे परंतु महत्वपूर्ण यह है कि गांधीजी किन लोगों के पक्ष में खड़े थे।

 
आज पूरे विश्व में परंपरागत न साम्यवाद बचा है और न ही पूंजीवाद। सोवियत संघ के पतन के बाद गैट समझौता, खुले बाजार की व्यापार नीति और विश्व व्यापार संगठन के द्वारा जिस पूंजीवाद की आंधी आई थी उसी खुले बाजार की नीति का अगुआ देश अमेरिका आज हांफ रहा है। अमेरिका से पूंजीवाद की शुरुआत हुई थी और आज वही देश व्यापार संरक्षणवाद की बैसाखी थामने को अभिशक्त हो गया है। विश्व के इस क्रूर और निर्दयी पूंजीवाद की ठोकरें विश्व के कई देशों को धूल में मिला चुकी हैं। इस निर्दयी पूंजीवादी व्यवस्था का सबसे ताजा शिकार ईरान बनने जा रहा है। ऐसे कठोर समय में अपने देश का भविष्य विकास के नाम पर कुछ पूंजीपतियों के हाथ में सौंप देना इस देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

 
यह विश्व की अर्थव्यवस्थाओं का संक्रातिकाल है। हमारा विश्व दो-दो विश्वयुद्ध देख चुका है, शायद तीसरे विश्वयुद्ध के बाद उसे देखने वाला कोई भी न बचे। पूंजीवादियों का स्वर्ग कहलाने वाले देश अपने-अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। यूरोप और अमेरिका के दो धुर बन रहे हैं। रूस और चीन क्या करने वाले हैं, यह किसी को आभास नहीं हो रहा है, ऐसे समय पर भारतीय राज्य का कुछ पूंजीपतियों पर निर्भर हो जाना अच्छा संकेत नहीं है।

 
आजकल यूरोप और अमेरिका से होता हुआ 'क्रोनी कैपिटेलिज्म' अथवा याराना पूंजीवाद भारत में अपनी जड़ें जमा रहा है। इस याराना पूंजीवाद में राजनेता, पूंजीपति और सरकारी अधिकारी मिलकर अपने-अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति करते हैं। इसमें देश के हित गौण हो जाते हैं। इस याराना पूंजीवाद की विशेषता है कि इसमें राजनेता और उनके आर्थिक सलाहकार शब्दों का खेल खेलते हैं। इसमें देश की गिरती हुई व्यवस्था को भी आंकड़ों की जादूगरी से बहुत ऊपर उठा दिया जाता है। इसमें सारी बातें सामूहिकता में ही कही जाती हैं, जैसे कुल उत्पादन, कुल राष्ट्रीय आय और स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों के कीमतों में चढ़ाव अर्थव्यवस्था के गुणों के रूप में प्रसारित किए जाते हैं। 
 
इसका ताजा उदाहरण है लगभग 7 करोड़ की जनसंख्या वाले देश फ्रांस की अर्थव्यवस्था से भारत की 130 करोड़ की जनसंख्या वाले देश की अर्थव्यवस्था के आगे निकल जाने की बात। देश के कुल उत्पादन में फ्रांस को पीछे छोड़ देने के बाद याराना पूंजीवाद का ही एक शगुफा है। स्विस बैंकों द्वारा भारतीयों के कालेधन बढ़ जाने पर दी गई रिपोर्ट का उत्तर भी गोलमोल कर दिया गया है। सरकार द्वारा कहा जा रहा है कि भारतीयों का कालाधन घट गया है। इस तरह से याराना पूंजीवाद की भाषा में कालेधन का भी एक तरह से गुणगान कर दिया गया है।

 
न्यू वर्ल्ड वेल्थ और एलआईओ की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार 1991 में भारत द्वारा खुले व्यापार की नीति स्वीकार करने के बाद से हजारों खरबपति भारत छोड़कर विदेशों में बस गए थे। इसी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 के बाद से यह रफ्तार वर्ष 2014 के बाद और भी तेज हुई है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत छोड़ने वाले लोगों का पसंदी देश ब्रिटेन ही है। अरबपतियों के पलायन के लिहाज से विश्व में चीन के बाद भारत अरबपतियों के पलायन में दूसरे स्थान पर है।

 
अभी लोकसभा के मानसून सत्र में भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक पारित कराया गया है। इस विधेयक में ऐसे आर्थिक अपराधियों के विरुद्ध कठोर आर्थिक प्रावधान किए गए हैं, जो मुकदमों से बचने के लिए देश छोड़कर भाग जाते हैं। इसमें यह भी सुंदर व्यवस्था की गई है कि अगर आरोपित मुकदमे की सुनवाई के लिए देश वापस लौट आता है तो उसके विरुद्ध शुरू की गई कानूनी कार्यवाही वापस ले ली जाएगी। इस विधेयक में अपनी मर्जी से ही देश छोड़कर चले जाने वाले खरबपतियों के लिए कोई कानूनी नियम नहीं बनाए गए हैं।

 
देश में योजना आयोग की स्थापना वर्ष 1950 में की गई थी। यह देश का सबसे बड़ा कार्यालय था, जो देश के सुदूर भागों का भी अध्ययन कर उनके लिए पंचवर्षीय योजना बनाता था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में स्वतंत्रता दिवस समारोह के लाल किले से अपने पहले ही संबोधन में योजना आयोग को भंग कर देने की घोषणा की थी। पूरा देश यह नहीं जान पाया कि किस अनुसंधान और रिपोर्ट के आधार पर चुनावी दौड़धूप में व्यस्त प्रधानमंत्री ने योजना आयोग को भंग करने का निर्णय ले लिया था।

 
2002 के गुजरात दंगों के बाद गुजरात का उद्योग जगत गुजरात में जो कुछ हुआ, उससे बहुत नाराज था। ये गौतम अडानी ही थे जिन्होंने उस समय उद्योगपतियों का एक समानांतर संगठन मोदी के समर्थन में खड़ा कर दिया था। इसी संगठन के नेतृत्व में गौतम अड़ानी के नेतृत्व में वाइब्रेंट गुजरात अभियान चला था। इससे ही दंगाग्रस्त गुजरात की जगह उभरते हुए चमकते गुजरात की छवि गढ़ी गई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में अडानी समूह की जादुई प्रगति हुई है। इसके गवाह आंकड़े हैं। यानी अब पूरे विश्व में यात्रा करता हुआ 'क्रोनी-कैपिटलिज्म' अथवा 'याराना पूंजीवाद' अब अपने नए रूप में 'नेक इरादों का पूंजीवाद' बनकर हमारे देश में 'मुखा मुखम' हो रहा है और हम पलक पावड़े बिछाए इसके स्वागत में आतुर हैं। (सप्रेस)

 
(डॉ. कश्मीर उप्पल शासकीय महात्मा गांधी स्मृति स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटारसी से सेवानिवृत्त प्राध्यापक हैं।)
ये भी पढ़ें
तमिलनाडु की 'अनाथ' राजनीति को अब है नए 'थलाईवर' का इंतजार...