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Last Updated : शनिवार, 10 अगस्त 2024 (08:07 IST)

ऑस्ट्रिया में इस्लामिक आतंकवाद के डर से तीन पॉप कंसर्ट रद्द

ऑस्ट्रिया में इस्लामिक आतंकवाद के डर से तीन पॉप कंसर्ट रद्द - Austria Fear of Islamic Terror
Fear of Islamic terrorism in Austria: अमेरिका की इस समय सबसे अधिक लोकप्रिय 'पॉप स्टार' टेयलर स्विफ्ट के इन दिनों ऑस्ट्रिया में तीन कन्सर्ट होने वाले थे। पहला कन्सर्ट देश की राजधानी वियेना में बुधवार 7 अगस्त को होना था। पर अंतिम क्षणों मे उसे और बाक़ी दोनों कन्सर्टों को भी रद्द करना पड़ा। टेयलर स्विफ्ट के 65 हज़ार से भी अधिक प्रशंसक और प्रेमी उनके कन्सर्टों के टिकट पहले से ही ख़रीद चुके थे, और 20 हज़ार रसिक कन्सर्ट के दिन अपना भाग्य आजमाने वाले थे।
 
इन सब को निराश होना पड़ा है, पर टेयलर स्विफ्ट के कारण नहीं। हुआ यह कि पहले कन्सर्ट से कुछ ही समय पहले, ऑस्ट्रिया के आतंकवाद निरोधक विशेष पुलिस दस्ते की एक टीम ने 19 साल के एक मुस्लिम युवक को -- जो मूलतः उत्तरी मेसेडोनिया से आया था और इस बीच ऑस्ट्रिया का नागरिक है -- गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की पूछताछ में उसने बताया कि वह वियेना में होने वाले पहले कन्सर्ट के दिन ही या उसके बाद, अधिक से अधिक लोगों को बम से उड़ा देना और चाकू-छुरे से मार डालना तथा अपना भी अंत कर देना चाहता था। 
 
आतंकवादी हमले की तैयारी : पुलिस को इस युवक के घर की तलाशी में जो ढेर सारी सामग्रियां मिलीं, उन्हें गिनाते हुए ऑस्ट्रिया के गृह मंत्रालय में सार्वजनिक सुरक्षा के महानिदेशक फ्रान्त्स रूफ़ ने मीडिया को बतायाः ''हमने कई रासायनिक पदार्थ ज़ब्त किए  हैं, तरल चीज़ें है, विस्फोटक सामग्रियां हैं और कई प्रकार के तकनीकी उपकरण भी हैं। ... हमने पाया कि टेयलर स्विफ्ट के कन्सर्ट इस 19 वर्षीय युवक के निशाने पर हैं। घर की तलाशी के समय मिले रसायनों और विस्फोटकों से होने वाले अनिष्ट के डर से पुलिस को इस युवक के पड़ोसियों को अपने घरों से निकल कर बाहर जाने और तलाशी का अंत होने तक दूर रहने के लिए कहना पड़ा।
 
इस्लामी स्टेट के प्रति निष्ठा की शपथ : पुलिस की पूछताछ में गिरफ्तार युवक ने यह भी माना कि उसने आतंकवादी इस्लामी स्टेट ISIS के प्रति निष्ठा की शपथ ले रखी है, अपनी नौकरी त्याग दी है और 'कोई बड़ा काम करने का निश्चय किया है।' उसके परिचितों के बीच से पुलिस ने 17 साल के एक और संदिग्ध को गिफ्तार किया है, पर यह नहीं बता रही है कि दोनों का आपस में कोई गठजोड़ है या नहीं। सुरक्षा अधिकारियों के हवाले से ऑस्ट्रिया के मीडिया कह रहे हैं कि देश में छिपे हुए अन्य इस्लामी आतंकवादियों का भी पता लगाया जा रहा है।
 
17 साल का दूसरा गिरफ्तार युवक भी ऑस्ट्रिया का नागरिक और मुस्लिम है। ऑस्ट्रिया की 'आंतरिक सुरक्षा गुप्तचर सेवा' के निदेशक ने भी वियेना में हुई इसी मीडिया-ब्रीफ़िंग में बताया कि 19 वर्षीय मुख्य  गिरफ्तार एक ऐसी 'फ़ैसिलिटी कंपनी' का कर्मचारी रहा है, जिसे उस स्टेडियम में कन्सर्ट के लिए आवश्यक तैयारियां करने का ठेका मिला हुआ है, जिसमें टेयलर स्विफ्ट का कार्यक्रम होना था। यही सब सोच कर टेयलर स्विफ्ट के तीनों कन्सर्ट रद्द करना ही अधिकारियों को सबसे उचित निर्णय लगा।
 
विदेशी गुप्तचर सेवाओं का सहयोग : ऑस्ट्रिया के चांसलर (प्रधानमंत्री) कार्ल नेहामर ने भी इस प्रकरण में भारी दिलचस्पी लेते हुए 'X'  (ट्विटर) पर लिखा कि संभावित आतंकवादी हमले का ख़तरा इतना अधिक था कि हमें उसे 'बहुत गंभीरता से' लेना पड़ा। 'विदेशी गुप्तचर सेवाओं के सहयोग से हम भावी ख़तरे को समय रहते भांप सके और किसी बड़ी त्रासदी को टाल सके।' यानी, ऑस्ट्रिया को यह जानकारी किसी दूसरे देश से, संभवतः अमेरिका से मिली कि अमेरिकी पॉप गायिका टेयलर स्विफ्ट के कन्सर्ट इस्लामी आतंकवाद का शिकार बनाने वाले हैं।
 
स्मरणीय है कि इसी साल 22 मार्च को, मॉस्को-क्षेत्र वाले क्रास्नोग्रस्क के सिटी हॉल में चल रहे एक कन्सर्ट के दौरान, तथाकथित 'इस्लामिक स्टेट-खोरासान प्रॉविंस' के 4 आतंकवादियों ने गोलियों से भूनकर, हथगोले फेंककर और आग लगाकर 145 लोगों के प्राणों की बलि ले ली। 550 से अधिक लोग घायल हुए। एक सप्ताह बाद रूसी अधिकरियों ने यह भी कहा कि 55 और लोगों का कोई पता नहीं चल रहा है। पिछले 25 वर्षों में अकेले मॉस्को में कम से कम आधे दर्जन इस्लामी आतंकवादी हमले हो चुके हैं। 
 
ब्रिटेन में दंगे : इस्लामी आतंकवाद को झेल चुके फ्रांस, बेल्जियम या जर्मनी की तरह ही ठीक इस समय ब्रिटेन के कई शहरों में इस समय जो दंगे और प्रदर्शन हो रहे हैं, उनमें स्थानीय मुस्लिम निवासी निशाने पर हैं। इन दंगों की शुरुआत अगस्त महीने के आरंभ में लिवपरपूल के पास स्थित साउथपोर्ट नाम के शहर में 17 साल के एक युवक द्वारा 6, 7 और 9 साल की तीन अंग्रेज़ बालिकाओं की चाकू मार कर हत्या कर देने से हुई। उस युवक ने 8 और बच्चों तथा 2 वयस्कों को भी घायल कर दिया। अस्पतालों में भर्ती इन 10 घायलों में से कुछ की हालत अभी भी गंभीर है।
 
ब्रिटिश पुलिस इस युवक की सही पहचान आरंभ में छिपाती रही और अंशतः अब भी छिपा रही है। केवल इतना ही बताती रही कि वह 17 साल का है, ब्रिटेन में ही पैदा हुआ है, मानो वह कोई विदेशी नहीं, एक सामन्य ब्रिटिश युवक है। उसके जानलेवा कारनामों से भड़के हुए अंग्रेज़ मानते हैं कि वह ज़रूर एक मुस्लिम है, पर पुलिस न तो इसकी पुष्टि करती है और न खंडन। पुलिस इतना ही कहती है कि उसके मता-पिता अफ्रीका में रवान्डा से आए हैं।
 
अपने ही देश में विदेशी होने का आभास : कुछ ही दिन पहले ब्रिटेन के लीड्स शहर में रहने वाले मुस्लिमों और अंग्रेज़ों के बीच भारी दंगे हुए थे। अब ये देंगे लगभग पूरे देश में फैल गए हैं। बहुत-से अंग्रेज़ों को लगने लगा है कि वे अपने ही देश में विदेशी होते जा रहे हैं। विदेशी आप्रवासियों के प्रति उनकी उदारता और सहनशीलता का ग़लत फ़ायदा उठाया जा रहा है।
 
इसी सोच के कारण बहुत-से अंग्रेज़, जो पुलिस के और नई लेबर सरकार के शब्दों में 'घोर-दक्षिणपंथी' हैं, एकजुट होकर विदेशी आप्रवासियों से लड़ने-भिड़ने और उन पर हमले करने लगे हैं। ब्रिटेन के मुस्लिम निवासियों को लेकर वे विशेष रूप से कुपित हैं। दोनों समुदायों के बीच इस समय भारी टकराव चल रहा है। किंतु ब्रिटिश ही नहीं, सारा पश्चिमी मीडिया समवेत स्वर में उन अंग्रेज़ों को ही घोर-दक्षिणपांथी, यानी वास्तव में फ़ासिस्ट बताने और कोसने-धिक्कारने में लगा है, जो मीडिया की दृष्टि से रंगभेद तथा नस्लवाद से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं और इस्लाम को सलाम करने से मना कर रहे हैं।
एक पाकिस्तानी कश्मीरी का मत : वर्षों से लंदन में रहने वाले और अंग्रेज़ों की मानसिकता से भलीभांति सुपरिचित डॉ. अमजद अयूब मिर्ज़ा ने, लीड्स में हुए दंगों के समय एक इंटरव्यू में बताया कि लीड्स के विशेषकर पाकिस्तान से आए निवासियों ने स्थानीय अंग्रेज़ों का जीवन कितन दूभर बना दिया है। पाकिस्तानियों का व्यवहार अक्सर ऐसा होता है, 'मानो वे स्वदेशी हैं और अंग्रेज़ विदेशी।' डॉ. अमजद अयूब मिर्ज़ा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से आकर लंदन में बस गए स्वयं एक मुसलमान हैं, तब भी दोटूक शब्दों में कहते हैं, 'मुसलमान जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं।' वे ऐसा कहने का साहस शायद इसलिए भी कर पाते हैं कि वे पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के भारतीय कश्मीर के साथ विलय के लिए एक आन्दोलन चला रहे हैं।
 
कुछ इसी प्रकार के विचार नीदरलैंड के एक लेखक और साहित्यकार लेओन विन्टर के भी हैं। स्विस दैनिक 'नोए त्सुरिशर त्साइटुंग' के लिए एक विशेष लेख में उन्होंने लिखा है कि अन्य पश्चिमी देशों की तरह नीदरलैंड के टेलीविज़न समाचारों में भी ब्रिटेन में हो रहे दंगों के प्रसंग में 'दसियों लाख आप्रवासियों से संबंधित प्रश्नों पर चुप्पी साध ली जाती है। कहा जाता है कि इस समय के दंगे ब्रेक्सिट (ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय संघ की सदस्यता त्याग देने) की प्रतिक्रिया हैं।'
 
मीडिया झूठ बोल रहा है : यानी, लेओन विन्टर के कथनानुसार, नीदरलैंड में और अन्य यूरोपीय देशों में भी यह आभास दिया जाता है कि 'ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ की सदस्यता यदि नहीं त्यागी होती, तो ये दंगे भी नहीं होते।' लेओन विन्टर का कहना है कि मीडिया संस्थान सच्चाई को छिपा रहे हैं, झूठ बोल रहे हैं। वे छिपा रहे हैं कि 'अकादमिक (उच्च) शिक्षा-विहीन अंग्रेज़ जनता आप्रवासियों की संख्या बढ़ते जाने का विरोध कर रही है। इन आप्रवासियों को रहने-सहने और अपना ख़र्च चलाने की ऐसी सुविधाएं मिलती हैं, जो ब्रिटेन की मूलभूत जनता को शायद ही या बिल्कुल नहीं मिलतीं।'
 
ब्रिटेन की वास्तविक स्थिति का वर्णन करते हुए लेओन विन्टर ने लिखा है कि 'मुसलमान वहां की सड़कों पर नमाज़ पढ़ते हैं और साथ ही हमास व हिज़्बुल्लाह के झंडे लेकर इसराइल विरोधी प्रदर्शन भी करते हैं। इंग्लैंड के कई पूरे के पूरे इलाकों का ऐसा इस्लामीकरण हो गया है कि वे पाकिस्तान के ऐसे शहरों जैसे दिखने लगे हैं, जहां महिलाएं सिर से पैर तक ढकी हुई हैं और पुरुष भी केवल पारंपरिक पहनावे ही पहनते हैं। स्थानीय मूल जनता के साथ मेल-जोल का वहां कोई नामोनिशान तक नहीं है।'
 
भारतीयों का प्रशंसनीय उदाहरण : लेओन विन्टर का अपने लेख में कहना है कि ऐसा भी नहीं है कि सभी आप्रवासी केवल समस्याएं ही पैदा करते हैं। उन्हें ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय और पाकिस्तानी आप्रवासियों के बीच अंतर चौंकाए बिना नहीं रहताः 'भारत से आए अधिकतर हिंदू अपने आप को ढाल लेते हैं, पढ़ाई करते हैं और सम्मान पाते हैं। पाकिस्तानी मुसलमानों के बीच भी ऐसे कुछ लोग होते हैं, पर अधिकतर तो मज़हबी लत में ही विरत रहते हैं और खुशहाली का एक ऐसा सपना देखने लगते हैं, जो इस्लामी क्रांति के रास्ते से ही होकर जाता है।' डच लेखक लेओन विन्टर का मानना है कि ब्रिटेन में रहने वाले अधिकांश मुसलमान पाकिस्तानी हैं और कथित आप्रवासियों के के प्रति वहां की अंग्रेज़ जनता की बढ़ती हुई दुर्भावना में उन्हीं की सबसे बड़ी नकारात्मक भूमिका है।