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Written By jitendra

ब्लॉग चर्चा : एक हिंदुस्‍तानी की डायरी

ब्लॉग चर्चा : एक हिंदुस्‍तानी की डायरी -
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एक हिंदुस्‍तानी की डायरी पत्रकार अनिल सिंह का ब्‍लॉग है। इस डायरी में बहुत सारी बातें दर्ज हैं। जीवन के ढेरों अनुभव हैं, आसपास की घटनाओं पर विचारात्‍मक टिप्‍पणियाँ हैं, गुजरे जमाने की यादें हैं, मन की अनसुलझी गुत्थियाँ हैं, ग्‍लोबलाइजेशन है और दोस्‍तों की गलियाँ भी।

इस विविधतापूर्ण डायरी में मन और बुद्धि, भावना और विवेक दोनों का बड़ा ही संतुलित किस्‍म का सम्मिश्रण है।

आज हमारी ब्‍लॉग-चर्चा में हम इस डायरी के कुछ पन्‍नों को खोलेंगे।

फरवरी, 2007 में 'एक हिंदुस्‍तानी की डायरी' की शुरुआत हुई। अनिल मूलत: पत्रकार हैं। बहुत से अखबारों और जर्मनी की रेडियो सेवा में रह चुके अनिल इस समय स्‍टार न्‍यूज में कार्यरत हैं। रोजी-रोटी के लिए लेखन तो हमेशा से होता रहा, लेकिन अपने मन और विचारों के अनुरूप लिखने का स्‍पेस दिया है, ब्‍लॉग ने। ब्‍लॉग की शुरुआत के पीछे के कारणों की पड़ताल करते हुए अनिल सिंह बताते हैं कि अनुभूतियाँ तो थीं हीं, कुछ-कुछ छिटपुट लिखा भी करते थे, लेकिन इतना सशक्‍त माध्‍यम तब नहीं था।

लेकिन ब्‍लॉग के माध्‍यम से उन दबी हुई अनुभूतियों को एक मंच मिला। मेरा स्‍वत्‍व जो कहीं खो गया था, इस ब्‍लॉग लेखन के जरिए वह वापस मिला।
इस डायरी में बहुत सारी बातें दर्ज हैं। जीवन के ढेरों अनुभव हैं, आसपास की घटनाओं पर विचारात्‍मक टिप्‍पणियाँ हैं, गुजरे जमाने की यादें हैं, मन की अनसुलझी गुत्थियाँ हैं, ग्‍लोबलाइजेशन है और दोस्‍तों की गलियाँ भी।

अब दूसरे ब्‍लॉगरों को पढ़कर यह लगता है कि कितने सारे लोग हैं, जो आपकी ही तरह सोच रहे हैं। हमारे विचार और चिंतन एक ही दिशा में अग्रसर हैं

इस डायरी के लेखन को मुख्‍यत: दो भागों में बाँटकर देखा जा सकता है। एक है भीतरी मन की दुनिया और दूसरा बाहर का ठोस भौतिक संसार। इस ब्‍लॉग का संपूर्ण लेखन इन दो महत्‍वपूर्ण पहलुओं पर केंद्रित है और जीवन के ढेरों सवालों की पड़ताल करता, उनसे जूझता और उनके हल खोजने के प्रयास करता है। मनोविज्ञान, परिवार, मन की निजी उलझनें और राजनीति, दर्शन, धर्म और बाह्य सांस्‍कृतिक जगत पर अनिल सिंह की टिप्‍पणियाँ और विचार बहुत विश्‍वसनीय और ठोस जमीन वाले हैं।

उनकी हाल की ही एक पोस्‍ट -‘कहानी से कहीं ज्‍यादा घुमावदार है जिंदगी’ में वो एक ऐसे आदमी भूपत कानजी भाई कोळी के बारे में लिख रहे हैं, जो स्किड्जोफ्रेनिक है और एक हत्‍या के आरोप में 14 सालों से पुलिस की हिरासत में है। वे लिखते हैं, 'भूपत कानजी भाई कोळी के छूटने की एक ही सूरत है और वह यह कि सरकार उस पर चल रहा केस वापस ले ले। लेकिन जिस देश में हत्या के आरोपी शिबू सोरेन को बाइज्जत बरी किया जा सकता है, जहाँ बहुत से लोग पागलपन का नाटक करके बड़े-से-बड़े गुनाह से बरी हो जाते हैं, उस देश में असली पागल के ठीक होने के दैवी चमत्कार का इंतज़ार किया जा रहा है क्योंकि हमारी ‘न्यायप्रिय’ सरकार मानती है कि दोषी को हर हाल में गुनाह की सज़ा मिलनी ही चाहिए।
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शुक्र मनाइए कि भूपत कोळी संज्ञाशून्य है। उसे न तो अपने गुनाह की संजीदगी का एहसास है और न ही सज़ा की तकलीफ का। लेकिन हम तो संज्ञाशून्य नहीं हैं। और, प्रजावत्सल नरेंद्र मोदी तो कतई संज्ञाशून्य नहीं हो सकते क्योंकि यह उन्हीं के गुजरात की एक हिंदू प्रजा का मामला है।'

डायरी का एक और पन्‍ना, 'न कोई मुस्लिम दोस्‍त है न पड़ोसी' में अनिल सिंह लिखते हैं, 'बँटवारे की राजनीति और दंगों ने हमारे शहरों में धार्मिक आधार पर मोहल्लों और बस्तियों का ध्रुवीकरण कर दिया है। इसने हम से विविधता का वो चटख रंग छीन लिया है, बचपन से ही हम जिसके आदी हो चुके थे। मैं राम जन्मभूमि और अवध के उस इलाके से आता हूँ जहाँ हमारे चाचा, ताऊ और पिताजी आजी सलाम, बड़की माई सलाम और बुआ सलाम कहा करते थे। ताजिया के मौके पर आजी हम बच्चों को धुनिया (जुलाहों की) बस्ती में भेजती थी, मन्नत माँगती थी। बकरीद पर मुसलमानों के घर से हमारे यहाँ भी खस्सी का गोश्त आता था।'

ऐसी ढेरों बेहतरीन चीजें हैं, उनके ब्‍लॉग पर। 'एक हिंदुस्‍तानी की डायरी' लगातार अपडेट होती रहती है। प्रतिदिन आपको वहाँ कुछ नया, कुछ बेहतरीन पढ़ने को मिलेगा।

हिंदी ब्‍लॉगिंग के बढ़ते संसार से अनिल काफी उत्‍साहित हैं और इसे बहुत सकारात्‍मक नजरिए से देखते हैं। उनका मानना है कि ब्‍लॉग के माध्‍यम से बहुत सारी चीजें बहुत बड़े पैमाने पर लोगों तक पहुँच रही हैं। विश्‍व साहित्‍य से लेकर क्‍लासिक किताबें तक ब्‍लॉग के माध्‍यम से आ रही हैं। ब्‍लॉग प्रिंट मीडिया की तुलना में अधिक सशक्‍त माध्‍यम है।

उनका मानना है कि ब्‍लॉगिंग के माध्‍यम से हिंदी भाषा और साहित्यिक लेखन का भी निश्चित ही विकास होगा। नए लेखकों की पौध तैयार होगी। हिंदी लेखन की दुनिया वैसे ही बहुत संकुचित और बहुत सारी घटिया राजनीति का शिकार रही है। ब्‍लॉग जरूर उस दलवाद को तोड़ने का काम करेंगे और इस दुनिया का विस्‍तार होगा। हिंदी साहित्‍य की वर्तमान दशा ऐसी है कि उसमें एक किस्‍म का ठहराव आ गया है। जीवन के साथ उसका संबंध टूटा है। हिंदी ब्‍लॉग साहित्‍य और जीवन के बीच इस ठहराव को खत्‍म करने और तोड़ने का काम करेंगे।

अनिल सिंह कहते हैं कि वैसे तो बहुत से विषयों पर लिखा जा रहा है, लेकिन बहुत-सी बातें अब भी छूटी हुई हैं। उनके अनुसार हिंदी में मनोविज्ञान, दर्शन, इतिहास और राजनीतिक विषयों पर कुछ गंभीर किस्‍म के ब्‍लॉग होने चाहिए। विज्ञान और अर्थशास्‍त्र पर गंभीर, वैचारिक लेखन होना चाहिए। नारे या जुमलेबाजी नहीं, बल्कि एक चिंतनपरक लेखन। ब्‍लॉग के माध्‍यम से नए विचारों को स्‍थान मिले। नए विश्‍वास और नई आस्‍थाएँ पैदा हों।

ब्‍लॉग - एक हिंदुस्‍तानी की डायर
URL - http://diaryofanindian.blogspot.com/