कोलंबो टेस्ट में भारतीय बल्लेबाज मुलथैया मुरलीधरन और अजंता मेंडिस की फिरकी में उलझ गई। मुरलीधरन और मेंडिस ने शानदार गेंदबाजी का प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम की शानदार जीत में अहम भूमिका निभाई।
इस टेस्ट से शुरू हुए रिव्यू सिस्टम ने भी अपनी भूमिका निभाई। इस सिस्टम ने कुछ ऐसे नजदीकी फैसलों को श्रीलंका के पक्ष में कर दिया जो शायद मैदानी अंपायरों के लिए मुश्किल होते।
इस नियम का फायदा लेने वाले सबसे पहले बल्लेबाज तिलकरत्ने दिलशान बने, वहीं कुंबले पहले ऐसे कप्तान रहे जिन्होंने इस नियम का सबसे पहले उपयोग किया।
क्या है रिव्यू सिस्टम- यह नियम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) द्वारा भारत-श्रीलंका सिरीज में ट्रायल के तौर पर लागू किया गया है और इस नियम के अनुसार मैच के दौरान हर पारी में दोनों टीमों के कप्तानों के पास यह अधिकार होगा कि वे अगर मैदानी अंपायर के निर्णय से संतुष्ट नहीं हैं तो वे इसे तीसरे अंपायर को भेज सकते हैं।
इसके लिए दोनों टीमों को तीन मौके दिए जाएँगे। यदि तीसरे अंपायर का निणर्य अपील के पक्ष में हुआ तो टीम का एक मौका बच जाएगा और अगर विपक्ष में हुआ तो अपील करने वाली टीम के खाते से एक मौका कम हो जाएगा।
इस नियम के मुताबिक मैदानी अंपायर के निर्णय से अगर कप्तान संतुष्ट नहीं है तो उसे रिव्यू के लिए अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर अंग्रेजी के अक्षर टी "T" का आकार बनाना होगा और इस तरह यह निर्णय टीवी अंपायर को भेज दिया जाएगा।
कोलंबो टेस्ट में रिव्यू सिस्टम की भूमिका- कोलंबो टेस्ट में दोनों टीमों ने रिव्यू सिस्टम का उपयोग किया, लेकिन इसका ज्यादा फायदा श्रीलंका को मिला। इस नियम की बदौलत श्रीलंका को सचिन, द्रविड़ और सहवाग के विकेट मिले साथ ही शतकीय पारी खेलने वाले दिलशान को उस समय नॉट आउट दिया गया जब वे केवल एक रन पर ही खेल रहे थे।
कोलंबो टेस्ट में रिव्यू सिस्टम के तहत दिए गए निर्णय