अनुभव में बुढ़ापे की झलक!
श्रीलंका के खिलाफ भारत की सबसे बड़ी हार
कोलंबो टेस्ट से पहले भारतीय कप्तान अनिल कुंबले ने कहा था कि अगर श्रीलंका टीम में मुथैया मुरलीधरन और अंजता मेंडिस है तो हमारे पास भी अनुभवी बल्लेबाजों की पूरी फौज है। यह कहना मुश्किल है कि यह बयान देते समय कुंबले को अपने बल्लेबाजों पर ज्यादा ही विश्वास था या फिर वे मुरली और मेंडिस को कम आँक रहे थे। जिस विकेट पर श्रीलंका ने छह विकेट पर 600 रनों का बड़ा स्कोर बनाया, उसी विकेट पर तथाकथित अनुभवी भारतीय बल्लेबाज दो बार आउट हो गए। मैच के चौथे दिन भारत ने कुल 14 विकेट खो दिए, जबकि इस दिन लगभग 25 ओवरों का खेल शेष था। कहाँ गई मजबूत दीवार (राहुल द्रविड़ 14 और 10), क्या हुआ मास्टर-ब्लास्टर के अनुभव का (सचिन तेंडुलकर 27 और 12), क्या खत्म हो गई दादा की रनों की भूख? (सौरव गांगुली 23 और 4), क्या हुआ सहवाग और गंभीर की आक्रमकता का? ये सभी सवाल हैं जो कोलंबो की शर्मनाक हार के बाद पूछे जा रहे हैं। आखिर कौन है इस करारी हार का जिम्मेदार? क्या एकदिवसीय क्रिकेट की तरह अब टेस्ट में भी युवाओं को मौका देने का वक्त आ गया है?बिना किसी शक के हार की जिम्मेदार भारत की लचर बल्लेबाजी है। मुरलीधरन चैंपियन गेंदबाज हैं और मेंडिस अपनी तरह के अनोखे स्पिनर हैं, लेकिन जब भारतीय टीम में सचिन, द्रविड़, गांगुली, लक्ष्मण, सहवाग जैसे सूरमा बल्लेबाज मौजूद हैं तो फिर क्या कारण है कि टीम पारी और 238 रनों से हार गई। क्या इन बल्लेबाजों का वक्त बीत चुका है? क्या सचिन सिर्फ रिकॉर्ड बनाने के लिए टीम में हैं? दरअसल किसी भी भारतीय बल्लेबाज ने विकेट पर टिकने की प्रतिबद्धता नहीं दिखाई। कोई एक बल्लेबाज भी अगर जिम्मेदारी लेकर विकेट पर टिका रहता तो शायद अंजाम इतना बुरा नहीं होता। इस हार से टीम मैनेमेंट को सबक लेना चाहिए और टीम में सकारात्मक बदलाव किए जाने चाहिए। द्रविड़, गांगुली, लक्ष्मण और सचिन क्रिकेट में अपना सर्वोत्तम समय देख चुके हैं, यह बात उन्हें मान लेनी चाहिए। भारत के पास टेस्ट क्रिकेट के लिए कई युवा बल्लेबाज हैं, जरूरत है तो सिर्फ एक अवसर की।