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Christmas Tree: सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है क्रिसमस ट्री, जानिए इसका इतिहास

Christmas Tree: सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है क्रिसमस ट्री, जानिए इसका इतिहास - History of Christmas Trees
क्रिसमस ट्री- सदाबहार झाड़ियों तथा वृक्षों को ईसा युग से पूर्व भी पवित्र माना जाता रहा है। इसका मूल आधार यह रहा है कि फर वृक्ष की तरह के सदाबहार वृक्ष बर्फीली सर्दियों में भी हरे-भरे रहते हैं। इसी धारणा के आधार पर रोमनवासियों ने सर्दियों के भव्य भगवान सूर्य के सम्मान में मनाए जाने वाले सैटर्नेलिया पर्व में चीड़ के वृक्षों को सजाने की परंपरा आरंभ की थी।
 
क्रिसमस के परिप्रेक्ष्य में सदाबहार फर का प्रतीक ईसाई संत बोनिफेस द्वारा ईजाद किया गया था। जर्मनी में यात्राएं करते हुए वे एक ओक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे, जहां गैर ईसाई ईश्वरों की संतुष्टि के लिए लोगों की बलि दी जाती थी।
 
संत बोनिफेस ने वह वृक्ष काट डाला और उसके स्थान पर फर का वृक्ष लगाया। तभी से अपने धार्मिक संदेशों के लिए संत बोनिफेस फर के प्रतीक का प्रयोग करने लगे थे।
 
एक किंवदंती के अनुसार संत निकोलस क्रिसमस की रात को गलियों में घूमकर गरीब व जरूरतमंद बच्चों को चॉकलेट-मिठाई आदि वितरित करते थे जिससे वे भी क्रिसमस को हर्षोल्लास से मना सकें। इस तरह क्रिसमस व बच्चों के साथ सांता क्लॉज के रिश्ते जुड़ गए।      
 
इसके बारे में एक जर्मन किंवदंती यह भी है कि जब नवजात शिशु के रूप में येसु का जन्म हुआ वहां चर रहे पशुओं ने उन्हें प्रणाम किया और देखते ही देखते जंगल के सारे वृक्ष सदाबहार हरी पत्तियों से लद गए। बस, तभी से क्रिसमस ट्री को ईसाई धर्म का परंपरागत प्रतीक माना जाने लगा।

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