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Written By WD

फर्क है, स्‍वतंत्रता और स्‍वछंदता में

‍हॉस्‍टल में रहें जरा संभलकर

फर्क है, स्‍वतंत्रता और स्‍वछंदता में -
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-नूपुर दीक्षि
पीईटी और पीएमटी और ऐसी ही अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने का सपना कई युवा देखते हैं। उनमें से कुछ के सपने साकार भी हो जाते हैं। फिर अपने मनपसंद विषय में आगे की पढ़ाई करने के लिए उन्‍हें अपना घर, अपने लोग, अपनी जड़ें छोड़कर किसी अनजान शहर में पढ़ने जाना पड़ता है। यहाँ से शुरूआत होती है, एक नए संघर्ष की।

बारहवीं पास करने के बाद वैसे भी युवामन में कॉलेज लाइफ को लेकर बहुत सारे सपने होते हैं। उस पर प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने की खुशी। इस खुशी के साथ मिल जाती है, अकेले रहने और अपनी मर्जी से जीवन जीने की आजादी।

यहाँ जरूरी होता है कि स्‍वतंत्रता और स्‍वछंदता के मध्‍य अंतर को पहचाना जाए। स्‍वतंत्रता का भरपूर आनंद लें पर स्‍वयं को स्‍वछंद न होने दें।

माधवी ने बहुत मेहनत करके इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में सफलता हासिल की। उसका दाखिला एक बड़े शहर के इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया और वो आँखों में ढेर सारे ख्‍वाब लिए शहर के हॉस्‍टल में पढ़ने आई।

यहाँ न तो घर की तरह माँ सुबह जल्‍दी उठने के लिए आवाज देती थी, न ही किसी बात पर कोई रोक-टोक थी। वक्‍त बेवक्‍त अपनी मर्जी से खाना, अपने हिसाब से सोना, जागना और अपने मन मुताबिक देर रात तक जागकर पढ़ना।

इस अनियमित जीवन-शैली की वजह से कुछ ही दिनों में माधवी की तबीयत खराब रहने लगी। तबीयत अच्‍छी न होने की वजह से उसका मन पढ़ाई में भी नहीं लगने लगा। कॉलेज में भी उसका प्रदर्शन लगातार खराब होता जा रहा था।

हॉस्‍टल में छ: महीने गुजारने के बाद माधवी को ऐसा लगने लगा, जैसे उसकी पूरी शख्सियत ही बदल गई है और आगे बढ़ने की बजाय वह पीछे होती जा रही है।

माधवी इस स्थिति का दोष अपने हॉस्‍टल को देने लगी। अकेली माधवी का ही नहीं, बल्कि हॉस्‍टल में रहने वाले कई युवाओं का अनुभव ऐसा हो सकता है। आप स्‍वयं सोचिए कि क्‍या वाकई इन लोगों के जीवन में पसरी इस अनियमितता की वास्‍तविक वजह हॉस्‍टल लाइफ है?

नहीं, ऐसी स्थितियों के लिए हॉस्‍टल नहीं, बल्कि युवा स्‍वयं जिम्‍मेदार होते हैं। सोलह-सत्रह वर्ष की उम्र तक बच्‍चे माता-पिता के प्‍यार की छाँव में पलकर बड़े होते हैं। स्‍कूल की पढ़ाई पूरी होते ही जब उन्‍हें अपनों से दूर किसी अनजान जगह पर जाना पड़ता है तो कुछ छोटी-छोटी गलतियों की वजह से उनके करियर और व्‍यक्तिगत जीवन की गाड़ी पटरी से उतर जाती है।

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अगर हॉस्‍टल में रहते समय कुछ खास बातों का ध्‍यान रखा जाए तो हॉस्‍टल में बिताया गया समय आपके जीवन का सबसे यादगार और हसीन समय साबित हो सकता है।

खुद पर कसें लगाम
घर पर जाने-अनजाने आप कुछ भी गलत करते हैं तो माता-पिता आपको तुरंत रोक लेते हैं, लेकिन हॉस्‍टल में इन छोटी-छोटी बातों का ध्‍यान रखने वाला कोई नहीं होता। इसलिए जरूरी है कि आप अपनी जिम्‍मेदारी खुद उठाएँ। अपनी बोलचाल में अभद्र शब्‍दों को शामिल न होने दें। अपनी जीवन-शैली को नियमित बनाने की कोशिश करें।

पॉकेटमनी को सँभालें
घर से बाहर निकलते ही हर कदम पर रुपए खर्च करने होते हैं। इस बात का एहसास हॉस्‍टल में रहने वाले विद्यार्थियों को जल्‍दी ही हो जाता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप फिजूल खर्च से बचें और रुपए के मूल्‍य को पहचानें।

ना कहना सीखें
होस्‍टल में रहते हुए आपके लिए आपके साथी सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण हो जाते हैं। उनके साथ मौज-मस्‍ती करने का मजा अलग ही है। इसी मौज-मस्‍ती के बीच कुछ गलत आदतें अनजाने में ही हमारे व्‍यक्तित्‍व का हिस्‍सा बन जाती है। हर बार दोस्‍तों का कहा मानने की बजाय कभी-कभी ना कहना भी सीखें।

सामंजस्‍य बैठाने की आदत डालें
हॉस्‍टल में अच्‍छी तरह रहने के लिए व्‍यक्तित्‍व में थोड़ा लचीलापन होना बहुत जरूरी है। हर बात में अपनी जिद पर अड़ जाना आपके स्‍वयं के लिए ठीक नहीं होगा। हॉस्‍टल में आपको अपने रूममेट से लेकर अन्‍य साथियों के साथ सामंजस्‍य बिठाकर रहना होगा। अगर आप हर बात अपने अनुसार करना चाहेंगे तो आपका पूरा समय आपसी विवाद में व्‍यर्थ जाता रहेगा और साथियों की नजर में भी आपकी छवि एक असहयोगी इंसान की हो जाएगी। यदि आपका रवैया सहयोगात्‍मक रहेगा तो आपको भी बदले में अच्‍छा व्‍यवहार मिलेगा।

हॉस्‍टल लाइफ आपके जीवन का एक टर्निंग प्‍वाइंट साबित होता है। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आपके जीवन की गाड़ी इस टर्निंग प्‍वाइंट से किस ओर मुड़ती है। वैसे भी एक दिन हम सभी को स्‍वयं के प्रति जिम्‍मेदार होना ही पड़ता है। हॉस्‍टल में आपको अपनी जिम्‍मेदारी स्‍वयं उठाने का अवसर जल्‍दी और मस्‍ती-भरे माहौल में मिल जाता है। इसलिए इस समय का लुत्‍फ उठाते हुए सदुपयोग करें।