प्लेसमेंट सिस्टम में बदलाव जरूरी
आईआईएम अहमदाबाद की नई प्लेसमेंट प्रणाली को लेकर बी-स्कूल्स में चर्चाओं के दौर अब भी थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। कुछ इसे नया प्रयोग कह रहे हैं तो कुछ पुरानी पद्धति को ही ज्यादा महत्व दे रहे हैं। प्लेसमेंट प्रणाली में बदलाव की जरूरत किसे और कितनी है यह सवाल काफी महत्वपूर्ण है, परंतु आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा नया प्रयोग किया गया है तो चर्चा तो होनी ही है। आईआईएम अहमदाबाद ने जो नई प्लेसमेंट प्रणाली का प्रयोग किया है उसमें एक ही क्षेत्र की कंपनियों का समूह बनाया, फिर उससे संबंधित स्टूडेंट्स को कंपनियों के साथ लगभग तीन दिन का समय दिया जाता है। इस प्रक्रिया में कंपनी को भी स्टूडेंट्स के प्रति मन बनाने में अच्छा खासा समय मिल जाता है। वहीं पुरानी प्रक्रिया में एक स्टूडेंट को बमुश्किल एक घंटे का समय मिल पाता था और उसका नंबर कब आएगा, उसे यह भी पता होता था। लगभग दो से तीन दिन वह अपने नंबर के इंतजार में बिता देता था।सेलरी महत्वपूर्णनई प्रणाली का उद्देश्य यह कि स्टूडेंट केवल अच्छी सेलरी के पीछे न जाएँ, बल्कि करियर ग्रोथ की तरफ भी देखें। पर, वास्तविकता के धरातल पर अगर किसी को एक करोड़ का पैकेज मिल रहा है और दूसरी प्रतिष्ठित कंपनी मात्र पचास लाख का ऑफर दे रही है, साथ ही जॉब सिक्यूरिटी की बात करती है और करियर डेवलपमेंट की बात करती है तो कोई भी समझदार स्टूडेंट एक करोड़ के ऑफर को ठुकरा नहीं सकता। दरअसल, जिस तरह से ज्यादा से ज्यादा बड़े आँकड़ों वाली सेलरी ऑफर करने का जो प्रचलन चल पड़ा है, उस पर रोक लगाकर ज्यादा लोगों को नौकरी मिले ऐसी सोच है। पर स्टूडेंट के लिए सेलरी का आँकड़ा ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, जब आईआईएम जैसे संस्थान का स्टूडेंट हो तो उसके मन में जॉब सिक्यूरिटी की बात तो कहीं से कहीं तक नहीं होगी।
जरूरत अनुसार बदल सकते हैंजहाँ तक देश के दूसरे शहरों के बी-स्कूल्स की बात है तो वे अपनी जरूरत अनुसार प्लेसमेंट प्रणाली को बदल सकते हैं। क्योंकि, इन स्कूल्स का मूल उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा कंपनियों को कैंपस में लाना होता है। जबकि, आईआईएम में यह स्थिति नहीं होती है। छोटे शहरों के बी-स्कूल्स को कैंपस में 25 कंपनियों को लाने के लिए मशक्कत करना पड़ती है, ऐसे में प्रैक्टिकल एप्रोच यही है कि जैसी जरूरत हो वैसी ही प्लेसमेंट प्रणाली को अपनाया जाना चाहिए।