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Written By ND

दिमाग को हमेशा खुला रखें

दिमाग को हमेशा खुला रखें
- डॉ. विजय अग्रवा
ND

दोस्तों, जिंदगी की तरक्की का रास्ता शरीर और दिल से होकर उतना नहीं गुजरता जितना कि दिमाग से होकर गुजरता है। हमारा दिल हमारे जीने के काम आता है। जिंदगी में रस घोलने का काम हमारा दिल करता है, लेकिन जब जिंदगी में आगे बढ़ने की बात आती है, कुछ नया कर डालने की बात आती है तो उस समय हम सभी को अपने दिमाग का ही साथ लेना पड़ता है।

यहाँ मैं आपको एक प्रयोग करने की सलाह दे रहा हूँ। आप अपने आसपास के सामान्य से सामान्य उस व्यक्ति को देखिए, जिस पर आपको दया आ रही है। आप उस व्यक्ति को देखिए, जिसके बारे में आपको लगता है कि इसे यह काम न करके कोई दूसरा बड़ा और अच्छा काम करना चाहिए। आप उसे पिछले दस साल से ऐसा ही करता हुआ देख रहे हैं और विश्वास कीजिए कि आने वाले दस सालों तक वह वैसा ही करता रहेगा।

अब आप इसके काम करने के तौर-तरीके को देखने और समझने की कोशिश कीजिए। आप पाएँगे कि इस आदमी ने अपने दिमाग को बंद करके अपने-आपको एक मशीन में तब्दील कर दिया है। उसे जो काम दे दिया गया है वह कोल्हू के बैल की तरह लगातार उस काम को करता जा रहा है। दुर्भाग्य यह है कि उसने सोचना ही बंद कर दिया है और यहाँ तक सोचना बंद कर दिया है कि वह जो काम कर रहा है, उसी के बारे में पूरी तरह नहीं सोच रहा है। दुर्भाग्य यह है कि उसे अपने काम के बारे में जानकारी नहीं है और उस काम के बारेमें जानकारी नहीं है, जिसको वह दिन में न जाने कितनी-कितनी बार कर रहा है।

मेरे साथ एक बार नहीं, बल्कि कई-कई बार हुआ है और लगभग हर बार ही। यदि आपके साथ नहीं हुआ है तो आप ट्राई कर लीजिए। मैं रेस्टॉरेंट की जगह भोजनालय में खाना पसंद करता हूँ और वह भी थाली सिस्टम वाला देशी खाना। भोजनालय में जब भी मैंने बैरे से यह पूछा कि'आज थाली में कौन-कौन-सी सब्जी है' तो मेरा विश्वास कीजिए कि अपवाद स्वरूप ही कोई बैरा तत्काल इसका उत्तर दे पाया। यहाँ तक कि कॉफी हाउस तक में भी नहीं। बैरे का उत्तर होता है 'पूछकर बताता हूँ', और वह पूछने के लिए अंदर चला जाता है।

मित्रों आप सोच तक देखिए कि वह बैरा इससे पहले न जाने कितने लोगों को भोजन की थाली लाकर दे चुका है। भोजन की थाली में रखी गई कटोरियों में सब्जियाँ भरी हुई होती हैं और वे कटोरियाँ खुली होती हैं न कि ढँकी हुई। वह भोजन करने वालों को भोजन करते हुए भी देख रहा है। इसके बावजूद वह उत्तर नहीं दे पा रहा है। सोचिए कि ऐसा क्यों है?

उत्तर बहुत साफ है। उत्तर यह है कि उसकी आँखें तो खुली हैं, लेकिन उसने अपने दिमाग को बंद कर रखा है। वह देख तो सब कुछ रहा है, लेकिन उसने अपने देखे हुए दृश्यों को अपने दिमाग में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दे रखी है। या फिर यह भी हो सकता है कि उसमें इतना आत्मविश्वास ही नहीं है कि 'मैं जो कुछ भी कहूँगा, वह सच ही होगा'।

मित्रों, यदि यह सच है जो कि सच ही है, तो आप मुझे यह बताइए कि तो फिर क्या ऐसे आदमी को, जिसने एक जवान बैरे के रूप में होटल में काम करना शुरू किया था, एक बूढ़े बैरे के रूप में क्यों नहीं रिटायर हो जाना चाहिए। क्या इस बूढ़े बैरे पर हमें दया करना चाहिए?

मेरे कहने का मतलब केवल यही है कि केवल बीतता हुआ समय आपको तरक्की नहीं दे सकता। मेरे कहने का मतलब यह है कि केवल किया जाने वाला काम ही आपको तरक्की नहीं दे सकता। आपकी तरक्की तभी होगी, जब आप अपनी कीमत को बढ़ाएँगे और आपकी यह कीमत तब बढ़ेगी, जब आप अपने दिमाग को खुला रखकर उसमें नई-नई बातों को प्रवेश करने की इजाजत देंगे।

(लेखक पत्र सूचना कार्यालय, भोपाल के अपर महानिदेशक हैं।)