शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By मनीष शर्मा

बच्चे के आगे झुक जाते हैं अच्छे-अच्छे

बच्चे के आगे झुक जाते हैं अच्छे-अच्छे -
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अयोध्या से निकले अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहने वाले दो जुड़वाँ बालकों- लव और कुश ने पक़ड़कर एक पेड़ से बाँध दिया। इस पर उस घोड़े की रक्षा कर रहे सैनिकों ने आकर उनसे कहा- बच्चो, यह खेलने की चीज नहीं।

इसे छोड़ दो। बालकों ने मना कर दिया। इस पर उन्होंने बच्चों को बहुत धमकाया, लेकिन जब वे नहीं माने तो युद्ध शुरू हो गया। जल्द ही सैनिकों के पैर उखड़ गए। एक सैनिक ने जाकर यह बात शत्रुघ्न को बताई तो वे तुरंत वहाँ पहुँचे। लव ने एक ही बाण से उनके रथ को तहस-नहस कर दिया। वे बेहोश होकर गिर पड़े। यह बात राम को पता चली तो उन्हें आश्चर्य हुआ।

उन्होंने लक्ष्मण को भेजा। लक्ष्मण के भी समझाने पर जब बात नहीं बनी तो दोनों ओर से बाण चलने लगे। जल्द ही लक्ष्मण घायल होकर मूर्च्छित हो गए। इसके बाद हनुमान के साथ वानर सेना लेकर आए भरत का भी वही हश्र हुआ। सूचना मिलने पर अंततः राम स्वयं वहाँ पहुँचे और बालकों से पूछा- बच्चो, तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? लव- हमें अपने पिता का नाम तो नहीं पता।

हाँ, हमारी माता का नाम है सीता। यह सुनते ही राम उन्हें पहचान गए कि ये तो उनके ही पुत्र हैं। उनके हाथ से धनुष छूट गया और वे सुध-बुध खोकर जमीन पर गिर पड़े। इसके बाद बच्चों ने हनुमान को पकड़कर पेड़ से बाँध दिया और राम का मुकुट लेकर माँ के पास पहुँचे।

मुकुट देखते ही सीता घबरा गईं कि कहीं बच्चों ने उनके राम को कोई नुकसान तो नहीं पहुँचा दिया। वे वाल्मीकि और बच्चों के साथ वहाँ पहुँचीं, तब तक राम को होश आ चुका था। शीघ्र ही बच्चों को पता चल गया कि राम ही उनके पिता हैं।

दोस्तो, गत शनिवार को लव-कुश जयंती थी। उनसे जुड़ा यह प्रसंग बताता है कि दुनिया में किसी के भी आगे न झुकने वाला बड़े से बड़ा शूरवीर भी अपने बच्चों के आगे झुक जाता है, हथियार डाल देता है, क्योंकि उनके आगे उसका न तो कोई जोर चलता है और न ही कोई युक्ति काम आती है।

यही राम के साथ भी हुआ और ऐसा ही आपके साथ भी होता होगा। इसका कारण है कि अपने बच्चों के सामने व्यक्ति की ताकत जवाब दे जाती है, क्योंकि वे उसकी कमजोरी जो होते हैं। यही कमजोरी उसकी ताकत छीन लेती है। उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर बच्चे अक्सर उससे अपने मन की करवा लेते हैं, करवाते रहते हैं और वह चाहकर भी अपने मन की नहीं कर पाता।

ऐसा करते समय बच्चे यह नहीं सोचते कि पिता की भावना से जिस तरह वे आज खेल रहे हैं, एक दिन उनका बच्चा भी उनकी भावना से वैसे ही खेल सकता है। आखिर वे आज पुत्र हैं तो कल पिता भी होंगे। इसलिए बेहतर है कि जो अपेक्षा हम अपने बच्चों से रखते हैं, उसी अपेक्षा पर हमें अपने पिता की नजरों में भी खरे उतरना चाहिए, उतरते रहना चाहिए। तभी तो आपके बच्चे में भी वही संस्कार पड़ेंगे।

वैसे भी हर बच्चे के पहले रोल मॉडल, पहले आदर्श, उसके माता-पिता ही होते हैं, जिन्हें देखकर वह दुनियादारी सीखता है और एक दिन उन्हीं की तरह बन जाता है। इसीलिए यदि आप अपने पालकों के साथ गलत करेंगे, तो समय आने पर बदले में वैसा ही अपनी अगली पीढ़ी से पाएँगे। यह तय है, क्योंकि उसने वैसा करना सीखा भी तो आपसे ही है।

दूसरी ओर, एक पिता ऊपर से कितना ही कठोर क्यों न दिखता हो, अपने बच्चे के लिए अंदर से उसकी भावनाएँ हमेशा मोम की तरह कोमल ही होती हैं। बच्चों के भविष्य के लिए ही वह उनकी नजरों में कठोर और बुरा बनकर रहता है। लेकिन इतना तय है कि वह बुरा सिर्फ बनकर रहता है, करता नहीं और न ही किसी को करने देता है। कई बार लोग पिता-पुत्र के बीच की दूरियों का फायदा उठाने के लिए उन्हें और भड़काते हैं।

ऐसा करते समय वे भूल जाते हैं कि ऊपर से चाहे कितने ही मतभेद नजर आएँ, लेकिन उनमें मनभेद नहीं होता। इसके चलते वे दोनों के बीच बुरी तरह पिस जाते हैं। कहते भी हैं कि घुटना पेट की ओर ही मुड़ता है। इसलिए कभी ऐसी मूर्खता न करें कि आप घुटने टेकने पर मजबूर हो जाएँ, लेकिन फिर भी बात न बने। अरे भई, सुना है तुम्हारे भड़काने से उन बाप-बेटे के रिश्ते सुधर गए।