जापान का जज्बा!
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अनुराग तागड़े जापानी लोगों के दर्द को दुनियाभर ने देखा और सभी ने अपनी और से सहानुभूति भी प्रकट की! यह घटना ही इतनी बड़ी है, जिसने दुनिया को हिलाकर रख दिया। इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद कोई भी देश भीतर तक हिल जाता! पर, यहीं जापानी लोग अन्य लोगों से भिन्न हैं। इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी जापानी सरकार और खासतौर पर जापानी लोगों ने धैर्य नहीं खोया।
खाने के सामान और पीने के पानी की कमी थी, परंतु कहीं पर भी लूट-खसोट की बात सामने नहीं आई! अपने स्वाभिमान को बरकरार रख जापानी एक-दूसरे की मदद करते रहे और रोजमर्रा के जीवन में दुर्घटना के पहले जो अनुशासन था, उसी को उन्होंने दुर्घटना के बाद भी रखा। कई बड़े स्टोर्स के बाहर लंबी लाइन लगी थी। लोगों ने घंटों अपनी बारी आने का इंतजार कर सामान खरीदा। इतना ही नहीं जापान ने किसी विदेशी सहायता की आस नहीं रखकर स्वयं ही सबकुछ करने की बात की। अंतरराष्ट्रीय दबाव आने पर ही उसने सहायता के लिए हामी भरी। दरअसल, जापान के लोगों से कई बातें सीखने जैसी है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है उनका इतनी बड़ी घटना को लेकर जो दृष्टिकोण था, वह काबिलेतारीफ है। किसी भी व्यक्ति ने मीडिया के समक्ष यह रोना नहीं रोया कि वे इतने दिनों से भूखे हैं या उन्हें किसी की सहायता चाहिए या सरकार ने हमारी कोई मदद नहीं की!
इसे हम अपनी सामान्य जिंदगी से जोड़कर देखें तब कई बातें सीखने योग्य नजर आएँगी। ट्रैफिक के नियम हो या फिर स्वयं को अनुशासित करना हो, हम जब कोई काम गले तक आ जाता है तभी जागते हैं। अगर किसी कंपनी का इंटरव्यू कॉल आता है तब हम बायोडाटा बनाने की बात करते हैं। हम सार्वजनिक जीवन में भी अनुशासित रहना पसंद नहीं करते। ट्रैफिक नियम तोड़ने से लेकर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने में भी पीछे नहीं रहते।