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Written By ND

समय का उपयोग...

समय का उपयोग... -
- अनुराग तागड़े

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अक्सर युवाओं से यह बात कही जाती है कि वे समय सद्उपयोग करना नहीं जानते और फालतू बातों में समय जाया करते रहते हैं, पर क्या कभी किसी ने इस बात पर गौर किया है कि समय का उपयोग हो सकता है और अगर हुआ भी तो क्या वह मनुष्य के हाथ में है कि किस प्रकार से उपयोग किया जाए या फिर सद्उपयोग किया जाए।

युवावस्था में व्यक्ति को कितना भी समझाया जाए वह या तो झट से समझ जाएगा या फिर बिल्‍कुल भी नहीं समझेगा। समय का सद्उपयोग करना जरूरी है क्योंकि समय गुजर जाने के बाद लाख प्रयत्न करने के बाद भी वह क्षण वापस नहीं आएगा, इस बात की जानकारी सभी को है और युवाओं को काफी ज्यादा है। इसके बावजूद युवाओं को बार-बार इस बात की ताकीद दी जाती है कि समय को बर्बाद मत करो।

समय के साथ चलने में असल जिंदगी का मजा है और तभी आप अपडेटेड कहलाएँगे और न जाने कितनी बातें हैं समय को लेकर। पर क्या यह जरूरी है कि युवा 24 घंटे बस अपने करियर की तरफ या पढ़ाई की तरफ ही ध्यान दें? क्या यह जरूरी है कि युवा भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाएँ त्याग कर केवल पढ़ाई पर ध्यान दें? क्या युवाओं को इस प्रकार के बंधनों से चिढ़ है? आदि ऐसे कई प्रश्न उठना स्वाभाविक है।

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दरअसल समय न किसी के लिए रुका है और न ही भविष्य में वह किसी के लिए रुकेगा। उसकी तो अपनी गति है और इस गति में चलने का उसका शाश्वत नियम है और इसमें वह कोई भी कोताही नहीं बरतता है भले ही दुनिया-जहान में कुछ हो उसे पता है कि उसे क्या करना है। वहीं युवाओं की बात करें तब यह तथ्य सामने आता है वे बँधन में नहीं बँधना चाहते और दूसरी ओर समय बंधन में बँधा हुआ है। उसके पास हर सेकंड और मिनट का हिसाब-किताब है।

युवाओं को नियमों-कायदे में बँधना नहीं अच्छा लगता, वे तो अपनी मर्जी के मालिक बनकर जीना चाहते हैं। फिर बात पढ़ाई की हो या फिर एन्जॉयमेंट की क्यों न हो, वे अपनी तरह से कुछ करना चाहते हैं। अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तब एक तथ्य उभरकर सामने आता है, वह यह कि युवाओं को आप लक्ष्य दे दें और उस ओर मेहनत करने के लिए प्रेरित करें फिर देखें क्या परिणाम सामने आता है।

आप अगर उन्हें कहेंगे कि इतने प्रतिशत आना ही चाहिए या तुम्हारे दोस्त के इतने प्रतिशत बने हैं तुम्हारे भी बनने ही चाहिए तब जरा मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि प्रत्येक युवा अलग साँचे में ढला है। उसका व्यक्तित्व, पसंद-नापसंद अलग है फिर आप उसकी तुलना कर रहे हैं। साथ ही अपनी पसंद भी थोप रहे हैं कि हमें यह चाहिए। इस प्रकार की बातों को सुनकर युवा मन बागी हो जाता है और समय का सद्उपयोग जैसी बातें बेमानी हो जाती हैं।

अगर आपने युवाओं को केवल लक्ष्य दे दिया और वही उसके मन का तब देखिए समय का उपयोग वह किस तरह करता है। वह अपनी बाइक पर लांग ड्राइव पर जाएगा, मॉल में जाएगा और डिस्को थेक में भी जाएगा पर साथ ही वह अपनी जिम्मेदारी को भी समझने लगेगा।

इस कारण युवाओं को समय का उपयोग करने की केवल नसीहत देने भर से काम नहीं चलेगा बल्कि उन्हें जाने-अनजाने यही बताना होगा कि तुम्हारा मनपसंद का लक्ष्य क्या है, अब उस ओर कैसे बढ़ना है, इसका तरीका क्या है आदि बातें युवाओं पर छोड़ देंगे तब परिणाम काफी अच्छे आ सकते हैं।