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Written By मनीष शर्मा

रिकॉर्ड बनता ही है टूटने के लिए

रिकॉर्ड बनता ही है टूटने के लिए
सन्‌ 1972 के म्यूनिख ओलिम्पिक में शामिल 22 वर्षीय अमेरिकी तैराक मार्क स्पिट्ज इस लक्ष्य के साथ आया था कि इस बार तो वह अपने हमवतन डॉन स्कोलेंडर द्वारा 1964 के टोकियो ओलिम्पिक की तैराकी स्पर्धाओं और धावक जेसी ओवंस द्वारा 1936 के बर्लिन ओलिम्पिक में एक ही ओलिम्पिक में हासिल 4-4 स्वर्ण पदकों के रिकॉर्ड को तोड़कर ही रहेगा।

इसी सपने के साथ वह 1968 के मेक्सिको सिटी ओलिम्पिक में भी उतरा था। तब उसने 6 स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचने के दावे किए थे, लेकिन वह टीम स्पर्धाओं के 2 स्वर्ण पदकों के अलावा एक रजत और एक कांस्य पदक ही जीत सका। लेकिन वह अपना सपना बरकरार रखते हुए अगले ओलिम्पिक की तैयारियों में जुट गया। चार साल बाद वह पूरी तैयारी के साथ म्यूनिख ओलिम्पिक में उतरा।

इस बीच उसने तैराकी में कई विश्व रिकॉर्ड बनाए, जिससे उसे 'मार्क द शार्क' कहा जाने लगा। इधर स्पर्धाएँ शुरू हुईं, उधर मार्क की झोली में एक के बाद एक स्वर्ण पदक आने लगे। इसके बाद 4 सितंबर 1972 को 4×100 मीटर की मेडले रिले स्पर्धा में तीसरे नंबर के तैराक के रूप में जीतते हुए एक ही ओलिम्पिक में सात स्वर्ण पदक जीतने का नया विश्व रिकॉर्ड बना डाला।

उसने सभी स्पर्धाओं में नए विश्व रिकॉर्ड भी बनाए। उसकी जीत को एक अजूबे की तरह देखा गया और यह कहा जाने लगा कि अब यह रिकॉर्ड टूटना असंभव है।

दोस्तो, कहते हैं असंभव शब्द तो मूर्खों, कायरों और आलसियों के शब्दकोश में ही मिलता है। साहसी और धैर्यवान लोग तो असंभव के बारे में सोचते भी नहीं, न ही उन्हें यह शब्द सुनाई देता है। उनके सामने आते ही 'अ' अक्षर साइलेंट जो हो जाता है। वैसे भी असंभव के लिए अँगरेजी शब्द इम्पॉसिबल खुद कहता है कि 'आई एम पॉसिबल।' जुनूनी लोग इसे इसी रूप में लेकर असंभव चीजों को अपने जज्बे से संभव करते जाते हैं।

जैसा कि बीजिंग ओलिम्पिक की तैराकी स्पर्धाओं में सात नए विश्व रिकॉर्डों के साथ आठ स्वर्ण पदक जीतकर माइकल फेल्प्स ने किया। ऐसा करके उन्होंने 36 साल पहले मार्क के असंभव लगने वाले रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

उन्होंने भी अपना आठवाँ स्वर्ण पदक मार्क की तरह 4×100 मीटर की मेडले रिले स्पर्धा में तीसरे नंबर के तैराक के रूप में भाग लेकर जीता। उनकी जीत पर स्पिट्ज ने कहा भी कि उसने मुझे मेरी ही याद दिली दी। और फेल्प्स ने कहा- यह कुछ भी नहीं है।

सबसे बड़ी बात यह है कि दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं। मैंने यही सीखा है और इससे मुझे मदद मिली। अब 'मार्क द शार्क' की तह फेल्प्स को डॉल्फिन कहा जा रहा है। इसी तरह आप भी अपने शब्दकोश के असंभव शब्द से 'अ' अक्षर को अलग करके नामुमकिन को मुमकिन करके दिखा सकते हैं।

दूसरी ओर, कहते हैं कि रिकॉर्ड बनते ही टूटने के लिए हैं। इसलिए कभी भी किसी भी रिकॉर्ड को यह न मानें कि वह टूटेगा नहीं। नहीं, ऐसा असंभव है, क्योंकि उसके बनते लोग उसे लक्ष्य बनाकर उसे तोड़ने में जुट जाते हैं। इनमें अधिकतर वे ही होते हैं, जिन्होंने खुद वह रिकॉर्ड बनाया होता है। जीवन के हर क्षेत्र में आप रोज नए रिकॉर्ड बनते और टूटते हुए देखते हैं।

क्या कोई सोच सकता था कि 100 मीटर की दौड़ 9.69 सेकंड में जीती जा सकती है। जमैका के धावक उसेन बोल्ट ने 9.72 सेकंड का अपना ही पुराना रिकॉर्ड तोड़ते यह दौड़ इस नए रिकॉर्ड समय में जीती है। आगे उसका यह रिकॉर्ड भी टूटेगा। तोड़ने वाला वह खुद भी हो सकता है या कोई दूसरा भी। लेकिन इतना तय है कि अपने ही बनाए कीर्तिमान को ध्वस्त करने का जो मजा है, वह अकल्पनीय है।

इसलिए आप किसी भी क्षेत्र से संबंधित हों, यदि लगातार आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आपको अपने ही बनाए रिकॉर्ड को लगातार तोड़ते रहना होगा वर्ना आप वहीं के वहीं रह जाएँगे। यह बात मार्केटिंग और सेल्स क्षेत्र से जुड़े लोगों को विशेष रूप से सीखना चाहिए।

तभी वे अपने बढ़े हुए टारगेट को तोड़ते हुए सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। इससे ही उनकी कीर्ति बढ़ेगी, बनी रहेगी। अरे भई, रिकॉर्ड बनाना अच्छी बात है, लेकिन नाकामियों के नहीं।