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Written By मनीष शर्मा

भेदभाव के भाव से महसूस होता है अभाव

भेदभाव भाव महसूस अभाव
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एक बार एक अघोरी साधु श्मशान घाट में अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों में चिता की राख भरकर बैठा था। वह एक मुट्ठी को खोलकर राख को कुछ देर तक सूँघता रहता और फिर मुट्ठी बंद कर दूसरे हाथ की मुट्ठी के साथ भी ऐसा ही करता।

उसे ऐसा करते हुए बहुत देर से देख रहे एक व्यक्ति ने उसके पास जाकर पूछा- 'महाराज, आप राख को सूँघकर क्या जानने में लगे हैं?' साधु बोला- 'बच्चा, हम गहरी खोज में लगे हैं, लेकिन हमें नहीं लगता कि हम अपने इस कार्य में सफल होंगे।' व्यक्ति- 'कौन-सी गहरी खोज?'

इस पर साधु ने अपने एक हाथ की मुट्ठी खोलकर उसे दिखाते हुए कहा- 'यह जीवन के सारे ऐशोआराम भोगने वाले एक राजा की राख है।' फिर दूसरी मुट्ठी दिखाते हुए बोला- 'और यह एक ऐसे गरीब की राख है जिसने अपनी जिंदगी के आधे दिन फाके में काटे।

मैं दोनों की राख सूँघकर इनके बीच के अंतर को जानने की कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी मुझे सफलता नहीं मिल पा रही है। मुझे तो दोनों ही राख एक बराबर लग रही हैं।'

दोस्तो, कहावत है कि ईश्वर की नजर में सब बराबर हैं, क्योंकि उसने सबको बराबर जो बनाया है। उसके लिए न कोई अमीर है, न गरीब। न कोई ऊँच, न नीच। न कोई छोटा, न बड़ा। लेकिन विडंबना यह है कि दिन-रात उससे याचना कर उसकी राह पर चलने का दावा करने वाले उसके बंदे, उसके भक्त ही सबको बराबरी की नजर से नहीं देखते, क्योंकि उनकी नजर, उनके मन, आचरण में भेदभाव होता है।

इसी कारण वे सामने वाले को अपने से छोटा या बड़ा, ऊँचा या नीचा मानते हैं। और जो ऐसा करते हैं, वे अपने पास सब कुछ होने के बाद भी एक कमी-सी, एक अभाव-सा महसूस करते हैं।

वे यह समझ ही नहीं पाते कि यह अभाव अपने मन में बसी भेदभाव की भावना की वजह से है। जिस दिन वे इससे ऊपर उठ जाएँगे, उस दिन यह कमी खुद-ब-खुद दूर हो जाएगी। लेकिन समस्या यह है यह जानते हुए भी लोग इससे मुक्त नहीं हो पाते।

सभी जानते हैं कि मिट्टी से बना यह शरीर एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा। इस बात पर मिट्टी डालते हुए वे ऐसे-ऐसे कामों में लगे रहते हैं, जिनसे उनकी मिट्टी पलीद ही होती है। इसलिए जीवन में ऐसा कोई काम न करें जिससे कि अपने ही हाथों अपनी मिट्टी खराब हो। सबको बराबर मानें, क्योंकि ऊपर वाले के दरबार में आपका आकलन आपके कद-पद से नहीं, आपके कर्मों से, गुणों से होता है।

दूसरी ओर, किसी बॉस या ऊपर वाले के लिए भी सभी कर्मचारी बराबर होते हैं, क्योंकि उसे तो सभी से काम लेना होता है। ऐसे में जो अच्छा काम-व्यवहार रखते हैं, वे उसकी नजरों में चढ़ते जाते हैं। जो इसके विपरीत करते हैं, वे ऊपर हों तो भी उसकी नजरों से नीचे उतरते जाते हैं। इसके बावजूद न सुधरने पर उन्हें एक दिन खाक छानना पड़ जाती है। इसलिए अपने किसी भी सहकर्मी को छोटा समझकर उसके साथ दुर्व्यवहार न करें।

आपको भूमिका बड़ी मिली है, तो इसका मतलब यह नहीं कि आप बड़े हो गए। ऐसा मानकर सामने वाले से गलत व्यवहार करने वालों को जिंदगी में एक न एक दिन नीचा देखना पड़ता है। और कल जिसे वे छोटा समझ रहे थे, वह अपने कर्म से या तो उनकी बराबरी आकर खड़ा हो जाता है या फिर उनसे भी आगे निकल जाता है। इसलिए सबको बराबर समझें, तब आपका सम्मान भी बराबर बना रहेगा।

और अंत में, आज वह दिन है जिस दिन 'दिन-रात बराबर' हो जाते हैं यानी उनकी अवधि एक समान हो जाती है। इस दिन के माध्यम से प्रकृति हमें संदेश देती है कि व्यक्ति को दिन-रात की तरह अपने जीवन में आए उतार-चढ़ाव से अप्रभावित रहकर सत्य की राह पर चलते हुए अपने काम करते रहना चाहिए।

दिन-रात कितने ही बढ़-घट जाएँ, एक दिन उन्हें बराबर होना ही पड़ता है। कभी दिन बड़े होते हैं, कभी रातें। इसी तरह कभी सुख लंबे होते हैं, कभी दुःख। जो दोनों को समान रूप से भोगता है, वही सही तरीके से जीवन जीता है, जीना जानता है। अरे भई, दिन-रात बराबर करके काम करोगे, तभी काम बराबर होगा।