बदला लेने से अच्छा है खुद को बदल लेना
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मनीष शर्माएक शिष्य अपने गुरु के साथ तलवारबाजी का अभ्यास कर रहा था कि अचानक उसकी तलवार से गुरु गंभीर रूप से घायल हो गए। बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। इसमें शिष्य की कोई गलती नहीं थी फिर भी उसका मन आत्मग्लानि से भर उठा। दुःखी मन से उसने वह जगह छोड़ दी और भटकते हुए एक ऐसे गाँव जा पहुँचा, जो एक पहाड़ी के पीछे स्थित था। पहाड़ी का रास्ता बहुत ही दुर्गम था इस कारण गाँव का संपर्क बाकी दुनिया से कटा हुआ था।गाँव के बहुत से लोग उस पहाड़ी को पार करने के दौरान अपनी जान गँवा चुके थे। यह जानकर देखकर उस शिष्य ने फैसला किया कि वह पहाड़ी को काटकर गाँव तक आने-जाने के लिए एक रास्ता बनाएगा। यदि वह ऐसा करने में सफल हो गया तो उसके लिए इससे बढ़कर प्रायश्चित कोई दूसरा हो ही नहीं सकता। और वह काम में जुट गया। इस तरह कई वर्ष बीत गए। वह आधे पहाड़ को काटकर सुरंग बनाने में कामयाब हो गया। एक दिन काम करते हुए उसने अपने गुरू पुत्र को अपने सामने खड़ा पाया, जो पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उसे ढूँढते हुए वहाँ आया था। यह जानकर शिष्य बोला- तुम मेरा लक्ष्य पूरा होने के बाद अपना बदला पूरा कर लेना। वह मान गया, लेकिन उसने वहीं रुकने का फैसला किया, ताकि वह भाग न जाए। वह रोज उसके आसपास रहकर उसे बड़ी-बड़ी चट्टानों को खोदते-काटते देखता। उसकी लगन और जुनून को देखकर वह उससे प्रभावित होने लगा। धीरे-धीरे वह भी उसके काम में हाथ बँटाने लगा। इस तरह कई वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद अन्ततः वे पहाड़ी को काटकर रास्ता बनाने में सफल हो गए। इसके बाद शिष्य ने गुरू पुत्र के आगे सिर झुकाकर कहा- अब तुम मेरा शीश काटकर बदला ले लो। गुरू पुत्र इसी दिन की प्रतीक्षा में था। उसने तलवार उठा ली, लेकिन तलवार चलाने के पहले ही उसके हाथ काँपने लगे। तलवार को नीचे पटककर वह बोला- इन वर्षों में मैंने तुमसे बहुत कुछ सीखा है। मैं अब बदल चुका हूँ इसलिए तुमसे बदला नहीं लूँगा।
दोस्तों, कहते हैं कि बदला लेने से अच्छा है खुद को बदल लेना। क्योंकि अधिकांश मामलों में ऐसा होता है कि आप जिससे बदला लेना चाहते हैं वह खुद ही अपने किए पर पश्चाताप कर रहा होता है। ऐसे में आप उससे बदला लेकर अपना ही नुकसान करते हैं, क्योंकि तब मामला बराबरी का हो जाता है। क्योंकि वह अपनी जिस गलती पर पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था, उससे बदला लेकर आप उसकी अग्नि को शांत कर देते हैं। तब वह अपने किए पर पछताना छोड़कर यह सोचने लगता है कि आपके जैसे व्यक्ति के साथ वैसा ही किया जाना चाहिए जैसा कि उसने किया। ऐसे में वह अपनी भूल को ही भूल जाता है।वैसे भी प्रतिशोध लेने से आप और आपके शत्रु के बीच कोई फर्क नहीं रहता। हाँ, इसके उलट उसको क्षमा करके जरूर आप उससे भिन्न, अलग नजर आते हैं। कहते भी हैं कि बदला लेना साहस की नहीं कमजोरी की निशानी होता है। अब जो दुश्मनी करने और बदला लेने में विश्वास करते हैं वे तो कायर और कमजोर ही कहलाएँगे न। उन्हें साहसी और वीर तो किसी भी पैमाने पर नहीं माना जा सकता। वैसे भी सामने वाले को नुकसान पहुँचाने से आपको कोई फायदा नहीं होता उलटे बदले की आग अंदर ही अंदर आपको ही जलाती रहती है। आप दिन-रात इसी जुगत में रहते हैं कि सामने वाले को कैसे नुकसान पहुँचाया जाए। इससे आपका मन दूसरी चीजों में लगना बंद हो जाता है और आप खुद ही अपनी सफलताओं के रास्ते बंद कर देते हैं। इस तरह आप सभी से कट जाते हैं। इसलिए यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं तो बीती बातों को भुलाना ही बेहतर होगा। इससे आपके मन का बोझ उतर जाएगा और आपको असीम शांति मिलेगी। अंत में, हमें उम्मीद है कि अब आपको इस बात का बोध हो ही गया होगा कि प्रतिशोध से कुछ हासिल होता। यह तो आगे बढ़ने में एक अवरोध की तरह ही होता है। इसलिए आज से ही आप अपने मन से बदले की भावना को निकालकर खुद को बदल लें। हम जानते हैं कि यह काम आसान नहीं है। यह भी किसी पहाड़ी को काटने जितना ही मुश्किल है। लेकिन यदि आप इस पहाड़ी को काटकर सुरंग बनाने में कामयाब हो गए तो फिर आपके लिए भी सफलताओं के नए द्वार खुल जाएँगे।