एक नगर में अपने गुणवत्तापूर्ण और स्तरीय सामान तथा सेठ के मधुर व्यवहार के कारण एक किराना दुकान काफी अधिक चलती थी। एक अन्य व्यापारी ने इस धंधे में फायदा देख उस दुकान के पड़ोस में ही अपनी दुकान शुरू कर दी।
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अधिक आकर्षक साज-सज्जा और बेहतर सामान के बावजूद उसकी दुकान पर इक्का-दुक्का ग्राहक ही आते थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसकी दुकान क्यों नहीं चल रही है? एक दिन उसने पड़ोसी की दुकान के सामने दिनभर खड़े रहकर उसकी हर गतिविधि का बारीकी से अध्ययन किया। अगले दिन से उसने पड़ोसी की नकल करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसकी ग्राहकी पुराने व्यापारी से भी ज्यादा हो गई।
इधर पुराना व्यापारी अपने ग्राहकों के टूटने का कारण समझ नहीं पा रहा था। एक दिन उसने नए व्यापारी से उसकी सफलता का राज पूछा। इस पर वह बोला- वैसे ऐसी बात किसी को बताई नहीं जाती, लेकिन चूंकि मैंने दुकान चलाने के सारे गुर आपको देखकर ही सीखे हैं, इसलिए आपको बता देता हूं। मैंने आपके गुणों के साथ ही आपकी कमजोरियों पर भी ध्यान दिया, ताकि उनका फायदा उठाकर मैं आपसे आगे निकल सकूं।
मैंने देखा कि आप सामान तौलने से पहले पैकेट ज्यादा भरते हैं और बाद में उसमें से सामान निकालकर वजन बराबर करते हैं। आपके ऐसा करते समय ग्राहक असहज दिखाई देते थे। मैंने तुरंत फैसला किया कि आपकी नकल तो करूंगा, लेकिन अकल के साथ। इसके बाद मैं ग्राहक को सामान देते समय पहले पैकेट कम भरता और तौलते समय उसमें अलग से सामान डालकर वजन बराबर करता।
ऐसा करना ग्राहकों को अच्छा लगता। इसी एक अंतर की वजह से ग्राहक मेरी दुकान की ओर आकर्षित होने लगे। बाकी सारी बातें तो मैंने आपकी ही अपनाई थीं। यही है मेरी सफलता का राज। देखा दोस्तों, अगर नकल करने में भी अकल लगाई जाए तो बड़ी कामयाबी मिल सकती है।