एक मछली साफ कर सकती है पूरा तालाब
रासबिहारी बोस का सपना था कि वे फौज में शामिल होकर बहादुरी के ऐसे कारनामे दिखाएँ कि बंगालियों को भी बहादुर माना जाने लगे। मात्र सत्रह घुड़सवार सैनिकों की मदद से बख्तियार खान द्वारा बंगाल पर कब्जा कर लेने के कारण यह माना जाता था कि बंगाली लोग लड़ाकू नहीं होते। रासबिहारी ने अँगरेजी पलटन में भर्ती होने के दो बार प्रयास किए, लेकिन बंगाली होने की वजह से उन्हें अपमानित कर भगा दिया गया। उन्होंने ठान लिया कि अपने सपने को पूरा करके ही रहेंगे। इसके लिए उन्होंने कलकत्ता के विलियम फोर्ट में अपनानाम अधूरा बताकर नौकरी हासिल कर ली ताकि वे सेना की गतिविधियाँ देखकर कुछ सीख सकें। लेकिन कुछ ही हफ्तों में उनकी पोल खुल गई और उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इस घटना के बाद उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए कामकरना शुरू कर दिया। जल्द ही वे अँगरेज हुकूमत की आँखों की किरकिरी बन गए। इस बीच उन्होंने जापान जाकर उसे भारत की आजादी में सहयोग करने के लिए मना लिया। उन्होंने 1924 में टोक्यो में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की जिसके माध्यम से वे भारत की आजादी के लिए विश्वव्यापी समर्थन जुटाने लगे। अंततः दिसंबर 1941 में उन्होंने वहाँ 'आजाद हिन्द फौज' की स्थापना की। |
रासबिहारी बोस ने अपने प्रयत्नों से, काम से, जज्बे से, साहस से लोगों के मन से यह धारणा दूर कर दी कि बंगाली दब्बू या कायर होते हैं। बाद में तो अँगरेज उनके नाम से ही घबराने लगे। |
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इस तरह फौज में शामिल न किए जाने वाले व्यक्ति ने अपने जज्बे से एक नई फौज ही खड़ी कर दी। इस बीच बंगाल में उनसे प्रभावित होकर और भी युवक बहादुरी के कारनामे करने लगे। बाद में सुभाषचन्द्र बोस के रूप में योग्य उत्तराधिकारी मिलने पर रासबिहारी ने फौज की कमान उन्हें सौंप दी। दोस्तो, कहते हैं प्रतिभा अपना मुकाम हासिल कर ही लेती है, बशर्ते उसे साहस और जज्बे का साथ मिल जाए। वर्ना तो कई प्रतिभाशाली लोग अपना सपना पूरा करने की कोशिश में एकाध बार असफल होने के बाद यह मान लेते हैं कि अब इस जन्म में तो वे अपने मन की नहीं करपाएँगे। और वे मन मारकर वह करने लगते हैं, जो उनके मन मुताबिक नहीं। यदि आप भी अपनी पसंद या रास का काम नहीं कर पा रहे हैं और मन ही मन इस बात को लेकर कुढ़ते रहते हैं तो यह तो गलत है, क्योंकि इसकी वजह से आप उस काम को उसमें रुचि वाले की तुलनामें कम कुशलता से करते होंगे। तब आपको सुनना भी पड़ती होगी यानी हर तरफ से निराशा है।
इसलिए बेहतर यही है कि अपने मन का काम करने की दिशा में प्रयत्न किया जाए ताकि आप अपना बेहतर आउटपुट दे सकें। बशर्ते वह काम वाकई आपके मन का हो, क्योंकि अकसरलोग दूसरों के देखादेखी किसी काम को मनमाफिक मान लेते हैं, जबकि वास्तव में वह होता नहीं। यदि आप भी ऐसा करेंगे तो असफल ही होंगे और एक नई निराशा से घिर जाएँगे। इसलिए पहले अपने मन को टटोल लें और फिर कदम बढ़ाएँ। एक न एक दिन रासबिहारी बोसकी तरह आपका सपना भी पूरा होगा। दूसरी ओर, कहते हैं कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। इसी तरह एक मछली पूरे तालाब को स्वच्छ कर सकती है, बशर्ते उसमें परिस्थिति के आगे हार न मानने का जज्बा हो। तब उसके सकारात्मक प्रयास धीरे-धीरे रंग लाते हैं और दूसरे भी उसकी राह पर चलने लगते हैं। रासबिहारी बोस ने अपने प्रयत्नों से, काम से, जज्बे से, साहस से लोगों के मन से यह धारणा दूर कर दी कि बंगाली दब्बू या कायर होते हैं। बाद में तो अँगरेज उनके नाम से ही घबराने लगे। इसी तरह किसी संस्था की धूमिल छवि को यदि एक व्यक्ति सुधारने का प्रयास शुरू कर दे, तो जल्द ही उसके दूसरे सहकर्मी भी हिम्मत करके उसका साथ देने लगते हैं और सभी मिलकर एक दिन संस्था की छवि को बदलने में कामयाब हो जाते हैं। और अंत में, आज 'रासबिहारी बोस जयंती' है। आज प्रण करें कि आप निराश होकर बैठने की बजाय अपना सपना पूरा करने के रास्ते पर कदम बढ़ाएँगे, बढ़ाते रहेंगे। शुरुआत में भले ही लोगों को यह रास न आए, लेकिन जब आप उस दिशा में कुछ अच्छा कर दिखाएँगे तो लोग भी आपका साथ देने लगेंगे और आप पहुँच जाएँगे अपनी मंजिल तक। अरे भई, इतनी साफ झक। तुम किस तालाब की मछली हो?