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Written By मनीष शर्मा

अयोग्य चाहे गुड़ रहे चेला योग्य चाहे चेला हो चीनी

संत रामानुजाचार्य कुशाग्र
संत रामानुजाचार्य कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। सोलह वर्ष की आयु में अपने रिश्ते के भाई गोविंद भट्ट के साथ कांची जाकर अद्वैत दर्शन के प्रकांड विद्वान यादवप्रकाशजी के शिष्य बनकर वेदों का अध्ययन करने लगे। वे अकसर आगामी पाठों का अर्थ निकालकर सहपाठियों को बता देते थे।

साथ ही गुरु के किसी तर्क से सहमत न होने या उसमें कोई दोष पाने पर वे अपने तर्क से उन्हें निरुत्तर कर देते थे। जब ऐसा कई बार हुआ तो गुरु उन्हें अपना प्रतिद्वंद्वी मानकर उनसे मन ही मन जलने लगे। एक बार जब रामानुज ने गुरु से असहमत होने पर खड़े होकर कुछ कहना चाहा तो गुरु चिढ़कर बोले- तू मुझे सिखाएगा। अभी तू जानता ही क्या है वेदों के बारे में। चुपचाप बैठ जा अपनी जगह।

उन्होंने उस दिन डपटकर रामानुज बिठा तो दिया लेकिन उनके मन की दुर्भावना और बढ़ गई और उन्होंने रामानुज को जंगल में ले जाकर मरवा डालने का षड्यंत्र रच दिया। इस बात की भनक गोविंद भट्ट को लग गई। उन्होंने रामानुज को सावधान कर दिया। बाद में जंगल में एक बहेलिया दंपति की मदद से वे बच निकले और कांची पहुँच गए।

गुरु को रामानुज के बचने की खबर लगी तो उन्होंने यह सोचकर उन्हें बुलाया कि कहीं इसे मुझ पर संदेह तो नहीं। लेकिन जब रामानुज ने उनके प्रति पहले की तरह ही सम्मान जताते हुए अध्ययन शुरू कर दिया। इससे गुरु आत्मग्लानि से भर उठे।

दोस्तो, एक योग्य गुरु अपने शिष्य की प्रतिभा से प्रसन्न होता है, क्योंकि आगे जाकर वह उनका ही नाम रोशन करता है, मान बढ़ाता है। इस कारण वह ऐसे शिष्य की प्रतिभा को निखारकर उसे अपने से भी श्रेष्ठ बनाने में जुट जाता है। कहावत भी है कि 'गुरु गुड़ रह गए, चेला चीनी हो गए'। योग्य गुरु चाहता है कि उसका शिष्य उसे गुड़ साबित करे यानी उससे बहुत आगे निकले।

इसके विपरीत एक अयोग्य गुरु कभी नहीं चाहता कि उसका शिष्य उससे आगे निकले। वह चेले को गुड़ बनाकर रखना चाहता है ताकि उसकी पूछ-परख बनी रहे। ऐसे में यदि उसे अपने किसी शिष्य में प्रतिभा नजर आती है तो वह उसे दबाना शुरू कर देता है।

ऐसे गुरुओं से यदि कोई शिष्य रामानुज की तरह तर्क करने की कोशिश करता है, तो वे उनके गुरु की तरह उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर देते हैं, ताकि डर के मारे वह उनकी गलती न निकाल सके, चाहे वे कितने ही गलत क्यों न हों।

ऐसे ही शिक्षकों को विद्यार्थियों का प्रश्न पूछना रास नहीं आता और वे किसी प्रश्न का जवाब देने की बजाय या टाल देते हैं या उन्हें डाँटकर बैठा देते हैं। ऐसा वे अपनी अयोग्यता को छिपाने के लिए करते हैं। संत नितानंद ने कहा है- 'कामी क्रोधी गुरु घने, लोभी गुरु जग माहिं। नितानंद वे गुरु सही, अमरपुरी ले जाहिं।' यानी दुनिया में कामी, क्रोधी और लोभी गुरुओं की भरभार है।

सच्चे गुरु तो वे हैं जो शिष्य को मोक्षमार्ग पर ले जाएँ। लेकिन यादवप्रकाशजी जैसे गुरु तो शिष्य को अमरपुरी ले जाने की बजाय यमपुरी भेजने की सोचते हैं, क्योंकि वे वास्तव में गुरु जो नहीं होते। वे तो बस आजीविका का कोई और साधन न मिलने पर शिक्षक बन जाते हैं। यदि आप भी इनमें से हैं, तो आपको जो मौका मिला है, उसका लाभ उठाएँ और खुद को तैयार करें।

सवालों से घबराएँ नहीं, क्योंकि ये ही तो आपको भी परिपक्व बनाते हैं। दुनिया में कोई भी पूर्ण ज्ञानी नहीं। ऐसे में यदि आप बाद में भी किसी सवाल का उत्तर पता करके बता देंगे तो भी आपका सम्मान बना रहेगा। अगर अपनी अज्ञानता पर पर्दा डालने की कोशिश करेंगे तो उसके उजागर होने पर आपको नीचा देखना पड़ेगा।

और अंत में, आज रामानुज समुदाय की 'श्री जयंती' है। रामानुजाचार्यजी ने सिखाया कि यदि आप में प्रतिभा है तो आपसे ईर्ष्या करने वाले भी होंगे, जो आपकी प्रतिभा को दबाने और आपको रास्ते से हटाने की कोशिश करेंगे। लेकिन तब भी आप उनकी ओर ध्यान दिए बिना अपने कर्म करते रहें।

यदि आप सही हैं तो आपको रास्ते से हटाने वाले खुद ही आपके रास्ते से हटते चले जाएँगे। अरे भई, अपने योग्य मातहत को आहत करने से तुम्हें ही मात मिलेगी।