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Written By समय ताम्रकर

जोकर : फिल्म समीक्षा

Joker Movie Review | जोकर : फिल्म समीक्षा
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बैनर : हरी ओम एंटरटेनमेंट कं., थ्रीज़ कंपनी, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : फराह खान, अक्षय कुमार, शिरीष कुंदर
निर्देशक : शिरीष कुंदर
संगीत : गौरव डगाँवकर
कलाकार : अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा, श्रेयस तलपदे, मिनिषा लांबा, असरानी, चित्रांगदा सिंह
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 1 घंटा 45 मिनट
रेटिंग : 1/5

जोकर फिल्म से अक्षय कुमार इतने नाराज हुए कि फिल्म में अपना पैसा लगा होने के बावजूद उन्होंने फिल्म का प्रमोशन ही नहीं किया जिससे फिल्म के रिलीज होने के पहले ही फिल्म के प्रति नकारात्मक माहौल बन गया। इस पर फिल्म के निर्देशक शिरीष कुंदर ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनका काम बोलेगा। ‘जोकर’ देख कर उनका काम ये बोलता है कि फिल्म ऐसी नहीं बनाया जाना चाहिए।

‘जोकर’ के नाम पर उन्होंने जो तमाशा दिखाया है वो बेहद बचकाना है। शायद शाहरुख खान ने इसीलिए जोकर करने से मना कर दिया था, लेकिन शिरीष को अपनी‍ स्क्रिप्ट पर विश्वास था और उन्होंने जिद पर आकर अक्षय को लेकर फिल्म बना डाली।

शिरीष ये तय ही नहीं कर पाए कि ये फिल्म वे बच्चों को ध्यान में रखकर बना रहे हैं या बड़ों के लिए। दोनों उम्र के वर्गों को फिल्म पसंद आए इसकें लिए सही तालमेल जरूरी होता है, लेकिन शिरीष इसमें बुरी तरह असफल रहे।

जब फिल्म का निर्देशक कमजोर हो तो इसका असर फिल्म के हर डिपार्टमेंट पर पड़ता है। जोकर के साथ भी यही हुआ। अभिनय, स्क्रिप्ट, संगीत सहित हर मामले में फिल्म बुरी है।

भारत के मैप में पगलापुर नामक गांव को स्थान नहीं‍ मिलने के लिए जो तर्क दिया है वो बेहद लचर है। भारत के आजाद होने के कुछ महीने पहले एक अंग्रेज ने भारत का नक्शा बनाया। वह पगलापुर जाकर अपने नक्शे को पूरा करना चाहता था, लेकिन उस गांव पर पागलखाने से भागे पागलों ने कब्जा कर लिया।

वह अंग्रेज पगलापुर नहीं जा पाया और उस गांव को भारत के नक्शे में दिखाए बिना उसने भारत का नक्शा पास कर दिया। बिना गांव में जाए भी वह मैप में पगलापुर को दर्शा सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। सवाल ये भी उठता है कि नक्श बनाने के लिए क्या वह अंग्रेज भारत के हर गांव में गया था?

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पगलापुर गांव में न बिजली है और न पानी। आजादी के वर्षों बाद भी उस गांव के बारे में कोई नहीं जानता। वहां के लोग पागल जैसी हरकतें करते हैं। कोई अपने आपको लालटेन समझ कर उलटा लटका रहता है तो कोई हवाई जहाज को देख यह समझ बैठता है कि हिटलर ने हमला कर दिया है। पगलापुर में सिर्फ मर्द ही नजर आते हैं, औरतें ढूंढे नहीं मिलतीं।

इन पागलों के बीच एक नौजवान अगस्त्य (अक्षय कुमार) अमेरिका जाकर वैज्ञानिक (?) बन जाता है। गांव में आकर वहां की हालत देख बड़ा निराश होता है। पगलापुर को इंटरनेशनल मेप पर लाने के लिए वह ऐसी फिजूल हरकत करता है कि दुनिया भर का मीडिया, पुलिस, सेना, एफबीआई और नासा के वैज्ञानिक तक वहां पहुंच जाते हैं, लेकिन कोई भी पगलापुर के पागलों की चालाकी समझ नहीं पाते।

कद्दू, तरबूज, पपीते, करेले और मिर्च से बनाए गए एलियंस के झूठ को वे पकड़ नहीं पाते। टैंक और हाथ में बंदूक लिए खड़े सैनिक बस एलियंस को निहारते रहते हैं। वे आगे बढ़कर उन्हें पकड़ते भी नहीं। स्क्रिप्ट में इस तरह की इतनी खामियां हैं कि एक किताब लिखी जा सकती है।

फिल्म के निर्देशक और लेखक ने दर्शकों को भी पगलापुर के निवासियों की तरह मान लिया और यह समझ कर माल परोसा कि दर्शक सब कबूल कर लेंगे। शिरीष कुंदर ने कई फिल्मों से प्रेरणा ली, फिर भी अच्छा काम नहीं कर सके। उनका आइडिया अच्छाष है, लेकिन उसको फिल्म में उतारने में वे नाकाम रहे। फिल्म का नाम जोकर क्यों रखा, इसके पक्ष में उन्होंने कुछ संवाद और सीन डाल दिए, जो कि स्क्रिप्ट में फिट नहीं बैठते।

आधी से ज्यादा फिल्म में अक्षय कुमार ने अनमने ढंग से काम किया है। उन्हें अपनी गलती शायद समझ में आ गई थी, इसलिए किसी तरह उन्होंने फिल्म पूरी की। हर ‍हीरो रिलीज के पहले अपनी फिल्म के बारे में कई झूठी बातें बोलता है, लेकिन अक्षय इस फिल्म को लेकर इतने शर्मिंदा हैं कि झूठ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।

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सोनाक्षी सिन्हा के हिस्से में एक दमदार डायलॉग तक नहीं आया और पूरी फिल्म में वे अपने मोटापे को छिपाते हुए नजर आईं। श्रेयस तलपदे एक अजीब सी भाषा पूरी फिल्म में बोलते रहे। क्यों? इसका जवाब नहीं मिलता। उनकी भाषा सिर्फ एलियंस ही समझते हैं। मिनिषा लांबा, संजय मिश्रा, असरानी, आर्य बब्बर जैसे कई कलाकार फिल्म में हैं, लेकिन उनका पूरी तरह उपयोग नहीं‍ किया गया।

फिल्म के गाने ऐसे हैं कि सिनेमाघर छोड़ने के बाद एक भी गाना याद नहीं रहता। चित्रांगदा सिंह पर फिल्माया गया आइटम सांग एकदम ठंडा है।

कुल मिलाकर ‘जोकर’ समय और धन की बर्बादी है।