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Written By समय ताम्रकर

गैंग्स ऑफ वासेपुर : फिल्म समीक्षा

गैंग्स ऑफ वासेपुर
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बैनर : वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
निर्माता : अनुराग कश्यप, सुनील बोहरा, गुनीत मोंगा
निर्देशक : अनुराग कश्यप
संगीत : स्नेहा खानवलकर
कलाकार : मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन शेख, ऋचा चड्ढा, हुमा कुरैशी, रीमा सेन, राजकुमार यादव
सेंसर सर्टिफिकेट : ए * 2 घंटे 39 मिनट 30 सेकंड
रेटिंग : 3/5

गैंग्स ऑफ वासेपुर के दोनों भाग एक साथ ही देखे जाने चाहिए, वरना किरदारों को याद रखने में परेशानी हो सकती है। जिन लोगों को पहला भाग देखे हुए लंबा समय हो गया है उन्हें कठिनाई महसूस हो सकती है क्योंकि फिल्म का दूसरा भाग ठीक वही से शुरू होता है जहां पहला खत्म होता है। पहले भाग का रिकेप होता तो शायद बेहतर होता।

गैंग्ग ऑफ वासेपुर दो परिवारों की आपसी दुश्मनी की कहानी है, जिसमें अपना वर्चस्व साबित करने के लिए एक-दूसरे के परिवार के लोगों की हत्या की जाती है। ‘बदला’ बॉलीवुड का पुराना फॉर्मूला है और जब अनुराग कश्यप ने अपनी पहली कमर्शियल फिल्म (जैसा की वे कहते हैं) बनाई तो इसी फॉर्मूले को चुना।

अनुराग का बचपन उत्तर भारत के एक छोटे शहर में बीता है। बी और सी ग्रेड फिल्म देख कर वे बड़े हुए और उन्होंने अपनी उन यादों को फिल्म में उतारा है। वासेपुर की युवा पीढ़ी संजय दत्त और सलमान बनने के सपने देखती रहती है।

एक रूटीन रिवेंज ड्रामा इसलिए दिलचस्प लगता है क्योंकि छोटे शहर की आत्मा कहानी और किरदारों में नजर आती है, साथ ही धनबाद और वासेपुर के माहौल से भी बहुत कम दर्शक परिचित हैं। भले ही कहानी में काल्पनिक तत्व हों, लेकिन उनकी प्रेरणा वहां घटे वास्तविक घटनाक्रमों से ली गई है।

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‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ अनुराग कश्यप की महाभारत है, जिसमें ढेर सारे किरदार हैं और उन्हें बड़ी सफाई से आपस में गूंथा गया है। हर किरदार की अपनी कहानी है। एक पीढ़ी द्वारा की गई गलती को कई पी‍ढ़ियां भुगतती रहती है।

पहले भाग की जान मनोज बाजपेयी थे तो दूसरे की नवाजुद्दीन। नवाजुद्दीन भी बेहतर अभिनेता हैं, लेकिन मनोज जैसा प्रभाव वे नहीं छोड़ पाए। दूसरा भाग पहले का दोहराव लगता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी पर कहानी शिफ्ट होती है और वही खून-खराबा होता रहता है। सब का क्या हाल होने वाला है, ये पहले से ही दर्शक को मालूम रहता है, दिलचस्पी इसमें रहती है कि यह कैसे होगा। कुछ जगह फिल्म में ठहराव महसूस होता है क्योंकि गोलियों की बौछार कुछ ज्यादा ही हो गई है।

दूसरे भाग में कुछ अच्छे किरदार देखने को मिलते हैं। जैसे फैजल का छोटे भाई परपेंडिकुलर का किरदार बड़ा मजेदार है। काश उसे ज्यादा फुटेज मिलते। फैजल के रोमांस में एक अलग ही तरह का हास्य है। उसकी प्रेमिका उसे डांट लगाती रहती है कि उसे हाथ लगाने के पहले फैजल को इजाजत लेनी चाहिए। वो सीन बेहद उम्दा है जिसमें फैजल अपनी प्रेमिका से सेक्स करने की इजाजत मांगता है।

गैंग्स ऑफ वासेपुर देखने का सबसे बड़ा कारण है निर्देशक अनुराग कश्यप। उनका प्रस्तुतिकरण लाजवाब है। ‍बतौर निर्देशक उन्होंने छोटे से छोटे डिटेल का ध्यान रखा है। कुछ सेकंड्स के दृश्य बहुत कुछ कह जाते हैं। सुल्तान का पीछा कर उसकी हत्या करने वाला सीन तो उन्होंने लाजवाब फिल्माया है। ऐसे कई दृश्य हैं।

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लाइट, शेड और लोकेशन का अनुराग ने बेहतरीन तरीके से उपयोग किया है। हर एक्टर से उन्होंने ऐसा काम निकलवाया है कि लगता ही नहीं कि वो एक्टिंग कर रहा है। सभी अपने किरदार में डूबे नजर आते हैं। बैकग्राउंड म्युजिक, म्युजिक, सिनेमाटोग्राफी, एडिटिंग टॉप क्लास है।

गैंग्स ऑफ वासेपुर की कहानी भले ही रूटीन हो, लेकिन जबरदस्त अभिनय और निर्देशन इस फिल्म को देखने योग्य बनाते हैं।