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फोर्स 2 : फिल्म समीक्षा

Movie Review of Hindi Film 'Force 2'  | फोर्स 2 : फिल्म समीक्षा
फोर्स 2 उन अंडरकवर एजेंट्स को समर्पित है जो समय आने पर देश के लिए अपनी जान देते हैं और उन्हें 'शहीद' का दर्जा भी नहीं मिलता। इस थीम को लेकर चिर-परिचित कहानी बुनी गई है। 
 
एसीपी यशवर्धन (जॉन अब्राहम) ने पांच वर्ष पूर्व अपनी पत्नी को खोया था और अब उसे कोई दर्द नहीं होता। दूसरी ओर रॉ के तीन एजेंट्स चीन में मारे जाते हैं। इनमें से एक यश का दोस्त भी है। कोई ऐसा है जो इनकी पहचान दुश्मनों को बता रहा है। इसे ढूंढने की जिम्मेदारी यश को सौंपी जाती है। इस काम में उसकी मदद करती है रॉ एजेंट केके (सोनाक्षी सिन्हा)। दोनों पता लगाते हैं कि बुडापेस्ट में कोई ऐसा शख्स है जो यह काम कर रहा है। बुडापेस्ट पहुंच कर वे शिव शर्मा (ताहिर भसीन राज) को बेनकाब कर देते हैं। इसके बाद शिव को पकड़ने का खेल शुरू होता है। शिव ऐसा क्यों कर रहा है, यह राज फिल्म के अंत में खुलता है। 
 
फिल्म की कहानी बेहद सरल है और सारा फोकस शिव को पकड़ने में होने वाले रोमांच पर रखा गया है। इसके लिए कॉमेडी या रोमांस की बैसाखियों का सहारा भी नहीं लिया गया है। फिल्म में आगे क्या होने वाला है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। कुछ उतार-चढ़ाव देकर चौंकाने की कोशिश की गई है, लेकिन ये पैंतरेबाजी बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं है। 

 
स्क्रिप्ट में एक्शन के शौकीनों को खुश करने के लिए लॉजिक को किनारे रख दिया है। बुडापेस्ट की सड़कों पर यश और केके जिस तरह की गोलीबारी करते हैं उस पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है। शिव तक हर बार यश-केके आसानी से पहुंच जाते हैं। यदि इसमें थोड़ी कठिनाई रखी जाती तो फिल्म का मजा बढ़ सकता था, लेकिन एक्शन सीक्वेंस की अधिकता के कारण इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। केके और यश की अलग-अलग 'वर्किंग स्टाइल' को लेकर होने वाले टकराव से दर्शकों का मनोरंजन होता है। 
 
'फोर्स' का निर्देशन निशिकांत कामत ने किया था, लेकिन सीक्वल में यह जिम्मेदारी अभिनय देव ने संभाली है। अभिनय के नाम के आगे 'देल्ही बैली' (2011) जैसी फिल्म और '24: सीजन 2' जैसा टीवी शो दर्ज है। यहां पर भी अभिनय ने अपनी जवाबदारी बखूबी संभाली। अपनी टारगेट ऑडियंस को ध्यान में रख कर उन्होंने फिल्म बनाई है। एक रूटीन कहानी को उन्होंने अपने प्रस्तुतिकरण के दम पर दर्शकों को बांध रखने में सफलता हासिल की है। स्क्रिप्ट की कमियों को बखूबी छिपाते हुए उन्होंने फिल्म को 'कूल' लुक दिया है और 'स्टाइलिश' एक्शन का तड़का लगा कर दर्शकों का मनोरंजन किया है। अभिनय की इसलिए भी तारीफ की जा सकती है कि उन्होंने फिल्म को भटकने नहीं दिया। एक आइटम सांग का मोह भी वे छोड़ देते तो बेहतर होता। हंगरी की महिला का हिंदी गाना अटपटा लगता है। 
 
'फोर्स 2' के एक्शन डायरेक्टर और उनकी टीम का काम काबिल-ए-तारीफ है। कार चेज़िंग सीन और गन फाइट्स के जरिये वे दर्शकों को रोमांचित करने में सफल रहे हैं। दो-तीन सीक्वेंस तो कमाल के हैं। निश्चित रूप से एक्शन फिल्मों के प्रशंसक इन्हें देख रोमांचित होंगे।  
 
जॉन अब्राहम एक स्टाइलिश हीरो हैं। वे फिल्म में बेहतर लगे हैं तो इसका श्रेय निर्देशक को जाता है। जॉन के चेहरे पर आसानी से भाव नहीं आते और उन्हें इस तरह के दृश्य बहुत कम दिए गए हैं। ज्यादातर समय वे एक्शन करते ही नजर आए। उनका एंट्री वाला सीक्वेंस जोरदार है। सोनाक्षी सिन्हा ने जॉन का साथ अच्छे से निभाया है और वे भी रॉ एजेंट के रूप में एक्शन करती नजर आईं। 
 
'मर्दानी' में अपनी खलनायकी से प्रभावित करने वाले ताहिर राज भसीन यहां पर भी बुरे काम करते दिखाई दिए। एक कूल, माउथ आर्गन बजाने वाले और चालाक विलेन के रूप में वे अपना प्रभाव छोड़ते हैं और अंत में कुछ दर्शकों की हमदर्दी भी उनके साथ हो सकती है। 
 
सिनेमाटोग्राफी जबरदस्त है और फिल्म को 'रिच लुक' देती है। क्लाइमैक्स का कुछ  हिस्सा वीडियो गेम की तरह शूट किया गया है और यह प्रयोग अच्छा लगता है। एक्शन सीक्वेंस को सफाई के साथ शूट किया गया है। फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक अन्य एक्शन फिल्मों की तरह लाउड नहीं है। तकनीकी रूप से फिल्म बेहद सशक्त है। 
 
'फोर्स 2' प्रीक्वल की तुलना में बेहतर है। ज्यादा उम्मीद लेकर न जाए तो पसंद आ सकती है। 
 
बैनर : जेए एंटरटेनमेंट प्रा.लि., वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, सनशाइन पिक्चर्स प्रा.लि.
निर्माता : विपुल शाह, जॉन अब्राहम 
निर्देशक : अभिनय देव 
संगीत : अमाल मलिक
कलाकार : जॉन अब्राहम, सोनाक्षी सिन्हा, ताहिर राज भसीन 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 6 मिनट 48 सेकंड्स 
रेटिंग : 3/5