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Last Updated : मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023 (16:45 IST)

फर्जी वेबसीरिज रिव्यू

Farzi Web series review फर्जी वेबसीरिज रिव्यू | Farzi web series review starring Shahid Kapoor and Vijay Sethupathi
जाली नोट किसी भी देश के आर्थिक समीकरण को बिगाड़ सकते हैं और दुनिया भर में इस विषय को लेकर बेहतरीन थ्रिलर फिल्में बनी हैं। हिंदी में भी कुछ सतही प्रयास हुए हैं। 'द फैमिली मैन' वाले राज एंड डीके इस विषय पर 'फर्जी' नामक वेबसीरिज लेकर आए हैं। फिल्मों की तुलना में वेबसीरिज में आप खूब वक्त ले सकते हैं। डिटेल में जाकर बात को बता सकते हैं। लेकिन बढ़िया विषय होने के बावजूद 'फर्जी' जाली नोट के गैर कानूनी धंधे के बारे में बहुत गहराई में नहीं उतरती है और सीरिज के मुख्‍य किरदार सनी (शाहिद कपूर) पर जरूरत से ज्यादा फोकस करती है। 
 
सनी की मां बचपन में गुजर गई। थोड़ा बड़ा हुआ तो उसके पिता ट्रेन में ही उसे छोड़ कर भाग गए। किसी तरह सनी अपने नानू (अमोल पालेकर) से मिला जो 'क्रांति' नामक अखबार अपनी प्रिंटिंग प्रेस में छापते हैं जो कोई नहीं खरीदता। युवा सनी अपने नानू की प्रेस को पैसों के अभाव में बंद होते नहीं देख सकता है। 
 
सनी की सोच है कि सिस्टम से दबने की बजाय सिस्टम को अपने नीचे दबा कर रखो। कम मेहनत कर ज्यादा पैसा कमाने के लालच में वह अपनी नानू की प्रिंटिंग प्रेस में नोट छापने लगता है। सनी की एक खासियत है। वह बहुत अच्छा आर्टिस्ट है और किसी भी पेंटिंग या नोट की हूबहू डिजाइन बना लेता है।  
 
दूसरा ट्रैक माइकल (विजय सेतुपति) का है जो स्पेशल टास्क ऑफिसर है और सीसीएफएआरटी का हेड है जो नकली नोट बनाने वालों के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। रिजर्व बैंक की ऑफिसर मेघा व्यास (राशि खन्ना) भी विजय की टीम का हिस्सा है। 
 
मंसूर दलाल (केके मेनन) एक गैंगस्टर है जो फर्जी नोट के धंधे में है और जॉर्डन से काम करता है। किस तरह से मंसूर, सनी और माइकल के रास्ते टकराते हैं और चोर-पुलिस का खेल शुरू होता है इसे राज एंड डीके ने दर्शाया है।
 
फर्जी सीरिज राइटिंग डिपार्टमेंट में हिचकोले लेती है। जरूरी बातों पर मेहनत नहीं की गई है और गैर जरूरी बातों पर जरूरत से ज्यादा मेहनत है। नानू और सनी के विचारों के बीच मतभेद, सनी का मिडिल क्लास को लेकर फ्रस्ट्रेशन, नानू की लोगों में क्रांति जगाने का उद्देश्य, इसको लेकर कुछ अच्छे संवाद और सीन देखने को मिलते हैं, लेकिन 'जाली नोट' के बारे में जानकारी कम मिलती है।  


 
सनी अपनी प्रेस में अपने दोस्त फिरोज के साथ जिस तरह से नोट छापने में कामयाब होता है, उससे लगता है कि नोट छापना तो बेहद आसान है, जबकि यह काम अत्यंत ही कठिन है। सनी सिंगल कलर ऑफसेट मशीन के जरिये नोट छापता है जो कहीं से भी संभव नहीं लगता। मैन्युअल कटिंग मशीन से नोट काटता है। 
 
जाली नोट बनाने वाले किस तरह से अपना जाल फैलाते हैं? कैसे नेटवर्क बनाते हैं? कैसे नोट की डिजाइन तैयार करते हैं? किस तरह से तकनीकी रूप से काम होता है? इससे किस तरह की हानि होती है? नोटबंदी का क्या इससे संबंध था? इन सवालों के जवाब विस्तार से मिलने थे, जो इस सीरिज में नहीं मिलते हैं। यहां पर लेखक एक अच्छे विषय को बेहतर तरीके से उठाने में चूक गए।
 
माइकल वाला कैरेक्टर तो फैमिली मैन से ही उठा लिया गया है। माइकल का अपनी पत्नी से रिश्ता ठीक नहीं चल रहा है। उसे लगता है कि पत्नी का अफेयर चल रहा है और वह इसको लेकर जासूसी भी करवाता है।   
 
शुरुआती दो एपिसोड अत्यंत धीमे हैं। तीसरे एपिसोड से ही हलचल पैदा होती है, लेकिन जो थ्रिल इस तरह की सीरिज में होना चाहिए वो इसमें बहुत कम है। हर एपिसोड लगभग एक घंटे का है। आठ एपिसोड्स के जरिये जो बात कही गई है उसे पांच में खत्म किया जा सकता था।
 
फर्जी सीरिज का मेकिंग उम्दा है। कहने का तरीका जोरदार है। ये निर्देशक राज और डीके का ही कमाल है कि राइटिंग डिपार्टमेंट की कमियों के बावजूद वे फर्जी को देखने लायक बना पाए हैं। उत्सुकता बनी रहती है कि आगे क्या होगा और कैसे होगा। नए किरदारों और घटनाक्रमों के जरिये लगातार कुछ नया पेश करने की कोशिश की गई है। राज और डीके ने छोटे-छोटे दृश्यों पर भी मेहनत की है। 
 
जिस तरह उनका निर्देशन डिटेलिंग लिए हुए है वैसी स्क्रिप्ट भी होती तो बात ही कुछ और होती। हां, सनी के किरदार पर जरूरत से ज्यादा फोकस गैरजरूरी था। संभव है कि राज और डीके भी अपना यूनिवर्स बनाए क्योंकि फैमिली मैन का एक किरदार फर्जी में नजर आता है और तिवारी का भी उल्लेख मिलता है। सीरिज की एडिटिंग बढ़िया है। एडिटर और डायरेक्टर्स ने कहानी को इस तरह से पेश किया है कि यह आपको बांधे रखती है।   
 
शाहिद कपूर ने 'फर्जी' के जरिये डिजीटल डेब्यू किया है, लेकिन उन्होंने अपने किरदार को सौ प्रतिशत नहीं दिया है। कुछ दृश्यों में उनमें ऊर्जा की कमी लगती है। विजय सेतुपति को देखना अच्छा लगता है। उन्होंने बेहतर एक्टिंग की है, लेकिन उनका रोल और पॉवरफुल लिखा जाना था। विजय और शाहिद के टकराव वाले दृश्यों की कमी खलती है, हालांकि स्क्रिप्ट में इसकी गुंजाइश नहीं थी। 
 
मेघा के रूप में राशि खन्ना प्रभावित करती है। कुछ अलग करने की बैचेनी और छटपटाहट को उन्होंने अच्छे से दर्शाया है। उनका किरदार अंत में इतना चतुर नहीं नजर आता, जितना शुरुआत में लगता है। 
 
केके मेनन के लिए इस तरह के किरदार निभाना मुश्किल नहीं था। ज़ाकिर हुसैन मनोरंजन करते हैं। उनके किरदार की कुछ कड़ियां संभवत: सेकंड सीज़न में सामने आएंगी। फिरोज़ के किरदार में भुवन अरोरा का काम शानदार है। लंबे समय बाद अमोल पालेकर नजर आए हैं। उनकी आती-जाती याददाश्त का लेखकों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक उपयोग किया है। 
 
राज और डीके काबिल निर्देशक हैं और उनसे बहुत ज्यादा उम्मीदें रहती हैं। उम्मीद थोड़ी कम रखी जाए तो फर्जी का पसंद आ सकती है।  
 
  • निर्देशक : राज एंड डीके
  • कलाकार : शाहिद कपूर, विजय सेतुपति, केके मेनन, राशि खन्ना, भुवन अरोरा
  • सीज़न : 1 * एपिसोड : 8
  • अमेजन प्राइम वीडियो
  • रेटिंग : 3/5