1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. फिल्म समीक्षा
  4. dhadak 2 review casteism love story siddhant chaturvedi trupti dimri
Last Updated : शुक्रवार, 1 अगस्त 2025 (19:57 IST)

धड़क 2 रिव्यू: जातिवाद की सच्चाई और रोहित वेमुला से लेकर जींस पहनने तक की कड़वी हकीकत

Dhadak 2 movie review in Hindi
भारत में जब आप किसी को नाम बताते हैं, तो अगला सवाल अक्सर होता है, सरनेम क्या है? क्योंकि जैसे ही पूरा नाम सामने आता है, लोग आपकी जाति पहचानकर तय करते हैं कि आपके साथ व्यवहार कैसा होना चाहिए। सड़कें चौड़ी हो गईं, इमारतें ऊंची हो गईं, लोग सूट-बूट पहनने लगे, लेकिन सोच आज भी जाति की दीवारों में कैद है।
 
धड़क 2’ जातिवाद पर करारा प्रहार करने की कोशिश करती है। फिल्म का नायक नीलेश अपने क्लास में पूरा नाम बताने से डरता है, क्योंकि ‘अहिरवार’ बोलते ही लोगों की सोच बदल जाती है। वह अपने मोहल्ले का नाम भी नहीं बताता, क्योंकि वह इलाका ‘नीची जातियों’ से जुड़ा है। दूसरी ओर नायिका विधि जाति नहीं, सोच से किसी को परखती है। ब्राह्मण होते हुए भी वह नीलेश को पसंद करती है, क्योंकि वह इंसानियत को तरजीह देती है।
 
फिल्म इस बात को भी उजागर करती है कि जाति का भेदभाव सिर्फ जातियों के बीच नहीं, बल्कि एक ही जाति के भीतर भी मौजूद है। जैसे एक ब्राह्मण परिवार मांसाहार करता है, दूसरा उसे तिरस्कार की नजर से देखता है। फिल्म यह सवाल उठाती है कि खाने की पसंद-नापसंद का जाति से क्या संबंध है? और कौन तय करता है ये नियम?
 
नीलेश और विधि लॉ के छात्र हैं और इसी पृष्ठभूमि में प्रेम कहानी बुनी गई है। आरक्षण, सामाजिक भेदभाव और जातिगत हिंसा जैसे विषयों को संवेदनशील तरीके से उठाया गया है। नायक कहता है, “70 साल से आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन भेदभाव तो सदियों तक किया गया है।” 
 
फिल्म की कहानी तमिल फिल्म ‘परियेरुम पेरुमल’ पर आधारित है। यह जातिवाद, वर्गभेद, लैंगिक असमानता और पहचान की राजनीति जैसे मुद्दों को छूती है। एक दलित छात्र की फेलोशिप सिर्फ इसलिए रद्द कर दी जाती है क्योंकि वह अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है, यह घटना सीधे तौर पर रोहित वेमुला मामले की याद दिलाती है।
 
फिल्म में नायिका विधि का परिवार भी उसी मानसिकता से ग्रसित है जहां लड़कियों का जींस पहनना या मोबाइल चलाना गलत माना जाता है। नीलेश के पिता को औरत बनकर नाचने के लिए उपहास का पात्र बनाया जाता है। ये सारे दृश्य कहानी में अच्छे से पिरोए गए हैं, लेकिन बीच-बीच में फिल्म अपनी धार खो बैठती है।
 
फिल्म की सबसे बड़ी कमी यही है कि यह कई गंभीर मुद्दे उठाती है, लेकिन उन्हें हार्ड-हिटिंग अंदाज में पेश नहीं कर पाती। कई ऐसे क्षण आते हैं जब स्क्रीन पर तीखी चोट की जरूरत महसूस होती है, लेकिन लेखक और निर्देशक उस तीव्रता को पकड़ नहीं पाते।
 
नीलेश और विधि का रोमांस भी उतना गहरा नहीं लगता। दोनों का एक-दूसरे के प्रति अचानक आकर्षण दर्शकों को विश्वसनीय नहीं लगता। यही वजह है कि नीलेश पर हो रहे अत्याचारों की गंभीरता दर्शकों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाती।
 
निर्देशक शाजिया इकबाल का काम सराहनीय है। उन्होंने फिल्म का माहौल सटीक तरीके से रचा है और कलाकारों से बेहतरीन प्रदर्शन करवाया है। सिद्धांत चतुर्वेदी ने अपने करियर का अब तक का सर्वश्रेष्ठ अभिनय किया है। एक दलित युवक की हीनभावना और अंदरूनी दर्द को उन्होंने बखूबी उकेरा है। तृप्ति डिमरी भी अपने अभिनय से दर्शकों को बांधे रखती हैं।

 
कम संवादों के बावजूद सौरभ सचदेवा अपनी मौजूदगी से डर पैदा करने में सफल रहते हैं। विपिन शर्मा और जाकिर हुसैन जैसे कलाकार भी अपने-अपने किरदारों में दमदार हैं।
 
तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत है। सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग प्रभावशाली हैं। हालांकि, संगीत और गीत पक्ष थोड़ा कमजोर है।
 
कुल मिलाकर ‘धड़क 2’ एक साहसी प्रयास है, जो उन सामाजिक कुरीतियों को उजागर करती है जो आज भी हमारे समाज को जकड़े हुए हैं। अगर फिल्म अपने संदेश को और तीखेपन से प्रस्तुत कर पाती, तो इसका असर और गहरा होता।
  • निर्देशक: शाजिया इकबाल 
  • फिल्म: DHADAK 2 (2025) 
  • गीत: रश्मि विराग, गुरप्रीत सैनी, सिद्धार्थ-गरिमा 
  • संगीत: जावेद-मोहसिन, रोचक कोहली, श्रेयस पुराणिक
  • कलाकार: तृप्ति डीमरी, सिद्धांत चतुर्वेदी, जाकिर हुसैन, सौरभ सचदेवा, विपिन शर्मा
  • सेंसर सर्टिफिकेट: यूए (16 वर्ष से अधिक उम्र के लिए) * 2 घंटे 26 मिनट 8 सेकंड
  • रेटिंग : 3/5