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Written By समय ताम्रकर

बजरंगी भाईजान : फिल्म समीक्षा

बजरंगी भाईजान : फिल्म समीक्षा - Bajrangi Bhaijaan Review, Salman Khan, Kabir Khan, Samay Tamrakar
भारत-पाकिस्तान के खट्टे-मीठे रिश्तों ने हमेशा ही फिल्मकारों को आकर्षित किया है। गदर जैसी फिल्मों में खट्टा ज्यादा था तो 'बजरंगी भाईजान' में इन पड़ोसी देशों के बारे में मिठास ज्यादा मिलती है। गदर में अपनी पत्नी को लेने के लिए सनी देओल पाकिस्तान में जा खड़े हुए और पूरी फौज को उन्होंने पछाड़ दिया था। बजरंगी भाईजान में पाकिस्तानी से आई बालिका को छोड़ने सलमान खान भारत से वहां जा पहुंचते हैं जहां उन्हें कई मददगार लोग मिलते हैं। उनके व्यवहार से महसूस होता है कि दोनों देश के आम इंसान अमन, चैन और शांति चाहते हैं, लेकिन राजनीतिक स्तर पर दीवारें खड़ी कर दी गई हैं और कुछ लोग इस दीवार को ऊंची करने में लगे रहते हैं।
 
बजरंगी भाईजान को कमर्शियल फॉर्मेट में बनाया गया है और हर दर्शक वर्ग को खुश किया गया है। हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाक, इमोशन, रोमांस, कॉमेडी बिलकुल सही मात्रा में हैं और यह फिल्म इस बात की मिसाल है कि कमर्शियल और मनोरंजक सिनेमा कैसा बनाया जाना चाहिए। दर्शक सिनेमा हॉल से बाहर आता है तो उसे महसूस होता है कि उसका पैसा वसूल हो गया है। 
कहानी है पवन चतुर्वेदी (सलमान खान) की जो पढ़ाई से लेकर तो हर मामले में जीरो है। लगातार फेल होने वाला पवन जब पास हो जाता है तो उसके पिता सदमे से ही मर जाते हैं। बजरंगबली का वह भक्त है। बजरंग बली का मुखौटा लगाए कोई जा रहा हो तो उसमें भी पवन को भगवान नजर आते हैं। पवन की एक खासियत है कि वह झूठ नहीं बोलता है।
 
पिता के दोस्त (शरत सक्सेना) के पास वह नौकरी की तलाश में दिल्ली जा पहुंचता है। यहां उसकी रसिका (करीना कपूर खान) से दोस्ती होती है। एक दिन पवन की मुलाकात एक छोटी बच्ची (हर्षाली मल्होत्रा) से होती है जो बोल नहीं सकती। मां-बाप से बिछुड़ गई है। उस लड़की को वह अपने घर ले आता है ताकि वह उसे मां-बाप से मिला सके। उसे वह मुन्नी कह कर पुकारता है। मुन्नी अनपढ़ भी है। 
 
पवन उससे कई शहरों के नाम पूछता है और अंत में उसे पता चलता है कि मुन्नी तो पाकिस्तान की रहने वाली है। वह पाकिस्तानी एम्बेसी ले जाता है। वीजा पाने की कोशिश करता है, लेकिन नाकाम रहता है। हारकर वह खुद मुन्नी को बॉर्डर पार कर पाकिस्तान ले जाने का फैसला करता है। राह इतनी आसान नहीं है, लेकिन पवन को बजरंग बली पर पूरा भरोसा है। 
 
 
वी. विजयेन्द्र प्रसाद ने बेहतरीन कहानी लिखी है जिसमें सभी दर्शक वर्ग को खुश करने वाले सारे तत्व मौजूद हैं। फिल्म का स्क्रीनप्ले भी उम्दा लिखा गया है और पहले दृश्य से ही फिल्म दर्शकों की नब्ज पकड़ लेती है। शुरुआती दृश्यों में ही मुन्नी अपनी मां से बिछड़ जाती है और दर्शकों की हमदर्दी मुन्नी के साथ हो जाती है। 
 
इसके बाद सलमान की धांसू एंट्री 'सेल्फी' गाने से होती है। जब मुन्नी को पवन का साथ मिल जाता है तो दर्शक निश्चिंत हो जाते हैं कि अब मुन्नी को कोई खतरा नहीं है। पवन के रूप में सलमान का किरदार बहुत अच्छी तरह गढ़ा गया है। 'घातक' के सनी देओल की या‍द दिलाता है। 
फिल्म का पहला हाफ हल्का-फुल्का और मनोरंजन से भरपूर है। इसमें रोमांस और इमोशन है। कुछ दृश्य मनोरंजक और दिल को छू लेने वाले हैं। मुन्नी का राज खुलने वाले दृश्य जिसमें पता चलता है कि वह पाकिस्तान से है, बेहतरीन बन पड़ा है। वह पाकिस्तान की क्रिकेट में जीत पर खुशी मनाती है और बाकी लोग उसे देखते रह जाते हैं। इसी तरह मुन्नी का चुपचाप से पड़ोसी के घर जाकर चिकन खाना, मस्जिद जाना, उसको एक एजेंट द्वारा कोठे पर बेचने वाले सीन तालियों और सीटियों के हकदार हैं। 
 
इंटरवल के बाद फिल्म धीमी और कमजोर पड़ती है, लेकिन जल्दी ही ट्रेक पर आ जाती है। पाकिस्तान में पवन को पुलिस, फौज और सरकारी अधिकारी परेशान करते हैं, लेकिन आम लोग जैसे चांद (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) और मौलाना (ओम पुरी) उसके लिए मददगार साबित होते हैं। एक बार फिर कुछ बेहतरीन दृश्य देखने को मिलते हैं। 
 
फिल्म के क्लाइमैक्स में भले ही सिेनेमा के नाम पर छूट ले ली गई हो, लेकिन यह इमोशन से भरपूर है। भारत-पाक दोनों ओर की जनता का पवन को पूरा समर्थन मिलता है और उसे एक सही मायने में हीरो की तरह पेश किया गया है। एक ऐसा हीरो जिसे आम दर्शक बार-बार रुपहले परदे पर देखना चाहता है। गूंगी मुन्नी की फिल्म के अंत में बोलने लगने लगती है, भले ही यह बात तार्किक रूप से सही नहीं लगे, लेकिन यह सिनेमा का जादू है कि देखते समय यह दृश्य बहुत अच्छा लगता है। 
 
निर्देशक कबीर खान ने फिल्म को बेहद संतुलित रखा है। उन्हें पता है कि कई लोग इसे हिंदू या मुस्लिम के चश्मे से देखेंगे, लिहाजा उन्होंने कहानी को इस तरह से प्रस्तुत किया है कि किसी को भी आवाज उठाने का मौका नहीं मिले। उन्होंने फिल्म को उपदेशात्मक होने से बचाए रखा और अपनी बात भी कह दी। पवन और मुन्नी की जुगलबंदी को उन्होंने बेहतरीन तरीके से पेश किया है। मुन्नी की मासूमियत और पवन की सच्चाई तथा ताकत का मिश्रण बेहतरीन है। 
 
तर्क की बात की जाए तो कई प्रश्न ऐसे हैं जो दिमाग में उठते हैं। जैसे क्या बिना वीजा के लिए गैर-कानूनी तरीके से किसी देश में घुसना ठीक है? सीमा पार करते ही पवन को पाकिस्तानी फौजी पकड़ लेते हैं और फिर छोड़ देते हैं, क्यों? मुन्नी की मां अपनी बेटी को ढूंढने की कोशिश क्यों नहीं करती? 
 
अव्वल तो ये कि फिल्म में इमोशन और मनोरंजन का बहाव इतना ज्यादा है कि आप इस तरह के सवालों को इग्नोर कर देते हैं। वहीं इशारों-इशारों में इनके जवाब भी मिलते हैं। पाकिस्तानी फौजी सोचते हैं कि इस आदमी की स्थिति ‍इतनी विकट है कि कानूनी रूप से वे चाहे तो कभी भी मदद नहीं कर सकते, लेकिन इंसानियत के नाते तो कर ही सकते हैं। धर्म और कानून से भी बढ़कर इंसानियत होती है। शायद इसीलिए अंत में पाकिस्तानी सैनिक, पवन को रोकते नहीं हैं और बॉर्डर पार कर भारत जाने देते हैं। 
 
सलमान खान की मासूमियत जो पिछले कुछ वर्षों से खो गई थी वो इस फिल्म से लौट आई है। उन्होंने अपने किरदार को बिलकुल ठीक पकड़ा है और उसे ठीक से पेश किया है। वे एक ऐसे हीरो लगे हैं जिसके पास हर समस्या का हल है। बजरंगी भाईजान निश्चित रूप से ऐसी फिल्म है जिस पर वे गर्व कर सकेंगे। 
 
हर्षाली मल्होत्रा इस फिल्म की जान है। उसकी भोली मुस्कुराहट, मासूमियत, खूबसूरती कमाल की है। हर्षाली ने इतना अच्छा अभिनय किया है कि वह सभी पर भारी पड़ी है। उसके भोलेपन से एक पाकिस्तान का घोर विरोधी किरदार (जो कहता है कि यह उस देश की है जो हमारे लोगों को मारते हैं) भी प्रभावित हो जाता है। 
 
करीना कपूर खान का रोल छोटा है, लेकिन वे प्रभावित करती हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी अब स्टार हो गए हैं और दर्शक उनकी एंट्री पर भी तालियां-सीटियां मारते हैं। पाकिस्तानी पत्रकार का रोल उन्होंने अच्छे से निभाया है जो सलमान खान की हर कदम पर मदद करता है। ओम पुरी छोटे रोल में असरकारी रहे हैं। 
 
संगीत और संवाद के मामले में फिल्म कमजोर है। 'सेल्फी ले ले रे' खास नहीं है। चिकन सांग की फिल्म में जरूरत ही नहीं थी और यह गाना नहीं भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। 'भर दो झोली' जरूर अच्छा है और 'तू जो मिला' का फिल्म में अच्छा उपयोग किया गया है। 
 
'बजरंगी भाईजान' की सच्चाई और मुन्नी की मासूमियत दिल को छूती है। 
 
बैनर : इरोज इंटरनेशनल, सलमान खान फिल्म्स, कबीर खान फिल्म्स 
निर्माता : सलमा खान, सलमान खान, रॉकलाइन वेंकटेश
निर्देशक : कबीर खान
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : सलमान खान, करीना कपूर खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, हर्षाली मल्होत्रा, ओम पुरी, शरत सक्सेना
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 39 मिनट 19 सेकंड्स 
रेटिंग : 4/5