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Written By समय ताम्रकर

बचना ऐ हसीनों : तीन हसीनाओं के साथ एक दीवाना

बचना ऐ हसीनों
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निर्माता : आदित्य चोपड़ा
निर्देशक : सिद्धार्थ आनंद
संगीत : विशाल-शेखर
कलाकार : रणबीर कपूर, बिपाशा बसु, दीपिका पादुकोण, मिनिषा लांबा, हितेन पेंटल, कुणाल कपूर
रेटिंग : 2.5/5

यशराज फिल्म्स द्वारा निर्मित ‘बचना ऐ हसीनों’ में तीन कहानियाँ हैं। राज-माही, राज-राधिका और राज-गायत्री की। कहानियों में राज स्थायी किरदार है, लेकिन लड़कियाँ बदलती रहती है।

जिस तरह फिल्म का शीर्षक एक हिट गाने से उधार लिया गया है, उसी तरह पहली कहानी इसी बैनर द्वारा निर्मित फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे’ से प्रेरित है। बात 1996 की है। यशराज फिल्म्स की पुरानी फिल्मों की तरह राज और माही रेल में बैठकर स्विट्ज़रलैंड घूम रहे हैं। माही की ट्रेन छूट जाती है और राज उसे छोड़ने के बहाने एक दिन अपने साथ घूमाता है। राज के प्रति माही आकर्षित हो जाती है। एक चुम्बन के अलावा राज कुछ कर तो नहीं पाता, लेकिन दोस्तों के आगे डींग हाँक देता है। माही सुन लेती है और उसका दिल टूट जाता है। राज कोई प्रतिक्रिया नहीं देता और कहानी खत्म।

फिर कहानी आती है 2002 में। मुंबई में राधिका (बिपाशा बसु) राज की लिव इन गर्लफ्रेंड है। ये आइडिया भी निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने अपनी फिल्म ‘सलाम नमस्ते’ से उठाया है। राधिका और राज में कोई वचनबद्धता नहीं है। खाना-पीना और ऐश करना के सिद्धांत पर उनकी जिंदगी चल रही है। इसी बीच राज की नौकरी ऑस्ट्रेलिया में लग जाती है। जब वह राधिका को बताता है तो राधिका उससे शादी करने की जिद करती है। राज जितना उससे बचना चाहता है उतना ही फँसता चला जाता है। आखिर में एक दिन बिना बिताए वह चुपचाप ऑस्ट्रेलिया चला जाता है।

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में रह रहा राज और उसका दोस्त सचिन प्यार मोहब्बत को नहीं मानते। ‘हे बेबी’ के किरदारों की तरह मौज-मस्ती करते रहते हैं। 2007 में राज की मुलाकात होती है गायत्री (दीपिका पादुकोण) से। गायत्री रात में टेक्सी चलाती है, दिन में काम और पढ़ाई करती है। गायत्री के प्रति राज आकर्षित हो जाता है और उससे प्यार करने लगता है। वह शादी के लिए प्रपोज करता है, लेकिन गायत्री उसे ठुकरा देती है। राज का दिल टूट जाता है। इस दर्द का अहसास उसे पहली बार होता है। उसे समझ में आता है कि राधिका और माही को उसने कितना दर्द पहुँचाया है। वह उनसे माफी माँगने का निश्चय करता है और भारत वापस आता है। किस तरह वह अपने उद्देश्य में कामयाब होता है, यह फिल्म का सार है।

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फिल्म की कहानी अच्छी है और उस पर एक उम्दा फिल्म बनने की संभावनाएँ थीं, लेकिन निर्देशक सिद्धार्थ आनंद और लेखक उन संभावनाओं का दोहन नहीं पाए। फिल्म का सबसे बड़ा टर्निंग पाइंट है राज का हृदय परिवर्तन। एक प्ले बॉय जो लड़कियों को सिर्फ मन बहलाने की वस्तु समझता था, एकाएक गायत्री द्वारा ठुकराए जाने से इतनी आत्मग्लानि से भर गया कि माफी माँगने निकल पड़ा, हजम नहीं होता। राज का हृदय परिवर्तन दिखाने के लिए ठोस दृश्यों और कारणों की जरूरत थी, लेकिन इसे बेहद हल्के तरीके से लिया गया।

इसी तरह गायत्री का चरित्र को भी ठीक से लिखा नहीं गया। एक आत्मसम्मान को महत्व देने वाली लड़की कैसे उस लड़के को चाहने लगती है जो उसके सामने कई लड़कियों से संबंध रखता है। जब उसे राज से कोई लेना-देना नहीं था तो वो क्यों उसके साथ इटली घूमने जाती है? राज के शादी के प्रस्ताव को ठुकराने के बाद एकाएक उसका हृदय परिवर्तन कैसे हो जाता है कि वह शादी के लिए तैयार हो जाती है। वह अपने दिल की बात राज के घर रोज एक पत्र लिखकर बताती है क्योंकि राज भारत गया हुआ है। इतनी पढ़ी-लिखी राधिका क्या मोबाइल, फोन, एसएमएस या ई-मेल नहीं कर सकती थी?

राज और माही की कहानी बेहद बोर है और ये आश्चर्य की बात है कि निर्देशक ने इस कहानी को ज्यादा फुटेज दिया है। राज और माही की प्रेम कहानी को देख ऐसा लगता है कि हम वर्षों पुरानी फिल्म देख रहे हैं। राज के माही से माफी माँगने वाले दृश्य भी बेहद लंबे रखे गए हैं। वही पंजाबी शादी, नाच-गाने देख अब उब होने लगी है।

राज और राधिका की कहानी सबसे अच्छी है। हालाँकि माफी देने के बहाने राधिका जो हरकतें (पीए बनाना, वेटर बनाना, सड़क पर नचाना) राज से करवाती है वो राज के चरित्र पर नहीं जमती। राज और गायत्री की कहानी को निर्देशक ने ठीक तरह से विकसित नहीं किया। जबकि इसी प्रेम कहानी के जरिए राज को प्यार का अहसास होता है।

निर्देशक सिद्धार्थ आनंद ने फिल्म का मध्यांतर के पूर्व वाला हिस्सा अच्छा बनाया है। कहानी सरपट दौड़ती है और उम्मीद जगाती है कि कुछ अलग और नया देखने को मिलेगा। मध्यांतर तक फिल्म का प्रस्तुतिकरण भी अच्छा है। मध्यांतर के बाद फिल्म 90 के दशक जैसी फिल्मों की तरह हो जाती है। राज का चरित्र जो समय से आगे का प्रतीत होता है, पुराने जमाने के नायकों की तरह व्यवहार करने लगता है। तीन कहानियों में से वे सिर्फ एक (राज-राधिका) कुछ हद तक सही बना सके।

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रणबीर कपूर का अभिनय पूरी फिल्म में एक जैसा है। उनके चरि‍त्र में 18 से 30 वर्ष की उम्र का विकास दिखाया गया है, लेकिन वे अभिनय में उस तरह का बदलाव नहीं दिखा पाए। भावनात्मक दृश्यों में भी उनका अभिनय कमजोर है। मिनिषा लांबा का चयन बिलकुल गलत है। न तो वे सुंदर दिखाई दी और न ही उन्होंने अच्छा अभिनय किया। बिपाशा को सबसे अच्छी भूमिका मिली और उन्होंने शानदार काम किया। ग्लैमरस और तेज तर्रार राधिका की भूमिका उन्होंने बेहतरीन तरीके से निभाहै। दीपिका पादुकोण ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अभिनय किया, लेकिन उनकी भूमिका ठीक से लिखी नहीं गई। हितेन पेंटल और कुणाल कपूर ने मुख्य कलाकारों का साथ अच्छी तरह से निभाया।

विशाल शेखर ने कुछ उम्दा धुनें बनाई हैं। ‘खुदा जाने’, ‘लकी बॉय’ ‘बचना ऐ हसीनों’ और ‘आहिस्ता आहिस्ता’ में लोकप्रिय होने के सारे तत्व मौजूद हैं। गानों का फिल्मांकन भव्य है। भारत, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैंड और इटली जैसी जगहों पर फिल्म को फिल्माया गया है। बैक ग्राउंड म्यूजिक और फोटोग्राफी उम्दा है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘बचना ऐ हसीनों’ में एक उम्दा फिल्म बनने की संभावनाएँ थीं, लेकिन वो औसत बनकर रह गई।