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Last Updated : रविवार, 9 मार्च 2025 (11:20 IST)

मुगल ए आजम के निर्माण में के. आसिफ को करना पड़ा था काफी दिक्कतों का सामना, 10 साल में बनी थी फिल्म

मुगल ए आजम के निर्माण में के. आसिफ को करना पड़ा था काफी दिक्कतों का सामना, 10 साल में बनी थी फिल्म - death anniversary making of Mughal e Azam K Asif had to face a lot of difficulties
Photo Credit : Social Media
बॉलीवुड में फिल्मकार के. आसिफ को एक ऐसी शख्सियत के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने 3 दशक लंबे सिने करियर में अपनी फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिल पर अमिय छाप छोड़ी। के. आसिफ का मूल नाम कमरूद्दीन आसिफ था। उनका जन्म 14 जून 1922 को उत्तर प्रदेश के इटावा में एक मध्यम वर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था। 
 
चालीस के दशक में जीवन यापन के लिए के. आसिफ अपने मामा नजीर के पास मुंबई आ गए जहां उनकी दर्जी की दुकान थी। उनके मामा फिल्मों में कपड़े सप्लाई किया करते थे। साथ ही उन्होंने छोटे बजट की एक दो फिल्मों का निर्माण भी किया था। के. आसिफ अपने मामा के काम में हाथ बंटाने लगे। इसी दौरान उन्हें अपने मामा के साथ फिल्म स्टूडियो जाने का मौका मिलने लगा और धीरे-धीरे फिल्मों के प्रति उनकी रूचि बढ़ती गई।
 
के. आसिफ सलीम-अनारकली की प्रेम कहानी से काफी प्रभावित थे और उन्होंने सोच लिया था कि मौका मिलने पर वह इस पर फिल्म जरूर बनाएंगे। वर्ष 1945 में बतौर निर्देशक उन्होंने फिल्म 'फूल' से सिने करियर की शुरूआत की। पृथ्वीराज कपूर, सुरैया और दुर्गा खोटे जैसे बड़े सितारो वाली यह फिल्म टिकट खिडक़ी पर सुपरहिट साबित हुई। फिल्म की सफलता के बाद के. आसिफ ने अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'मुगल ए आजम' बनाने का निश्चय किया और शहजादा सलीम की भूमिका के लिए चंद्रमोहन, अनारकली की भूमिका के लिए अभिनेत्री वीणा और अकबर की भूमिका के लिए सप्रू का चुनाव किया।
 
इस फिल्म से जुड़ा रोचक तथ्य यह है कि किरदारों के चुनाव के लिए के. आसिफ को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। शहजादा सलीम के किरदार के लिए उन्होंने अभिनेता सप्रू का चुनाव किया और अकबर के किरदार के लिए चंद्रमोहन के सामने प्रस्ताव रखा लेकिन चंद्रमोहन ने उनसे साफ शब्द में कह दिया 'मैं इसी शर्त पर इस फिल्म में काम करना पसंद करूंगा जब आप इस फिल्म के निर्देशक नहीं होंगे'। इस पर के. आसिफ ने जवाब दिया, मैं उस दिन का इंतजार करूंगा जब आपको मेरी सूरत पसंद आने लगेगी। अकबर के किरदार के लिए उन्होंने चंद्रमोहन का चयन इसलिये किया क्योंकि उनकी आंख भी अभिनेता सप्रू की तरह नीली थी।
 
वर्ष 1946 अभिनेता चंद्रमोहन की असमय मृत्यु हो गई। इसी दौरान अभिनेत्री वीणा और सप्रू के चेहरे पर उम्र की लकीरे खींच आईं। के. आसिफ ने सप्रू के सामने अकबर का किरदार निभाने का प्रस्ताव रखा और अनारकली के किरदार के लिए नरगिस तथा सलीम के किरदार के लिये दिलीप कुमार का चयन किया लेकिन सप्रू जो नरगिस के साथ फिल्मों में बतौर अभिनेता काम कर चुके थे, उन्होंने अकबर का किरदार निभाने से मना कर दिया। बाद में अभिनेत्री नरगिस ने भी फिल्म में काम करने से मना कर दिया। तब के.आसिफ ने मधुबाला के सामने अनारकली की भूमिका निभाने का प्रस्ताव रखा और अकबर के किरदार के लिए पृथ्वीराज कपूर का चयन किया। 
 
वर्ष 1951 में एक बार फिर से मुगल ए आजम के निर्माण कार्य आरंभ हुआ। इसी दौरान के. आसिफ ने दिलीप कुमार, नरगिस और बलराज साहनी को लेकर फिल्म 'हलचल' का निर्माण कार्य शुरू किया। वर्ष 1951 में प्रदर्शित यह फिल्म टिकट खिडक़ी पर सफल साबित हुई। इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य है कि इप्टा से जुड़े रहने और अपने क्रांतिकारी और कम्युनिस्ट विचार के कारण बलराज साहनी को जेल भी जाना पडा। निर्माता के आग्रह पर विशेष व्यवस्था के तहत वह फिल्म की शूटिंग किया करते थे और शूटिंग खत्म होने के बाद वह वापस जेल चले जाते थे।
 
फिल्म मुगल ए आजम के निर्माण में के. आसिफ को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इसके निर्माण में लगभग 10 वर्ष लग गए जबकि सलीम अनारकली की प्रेम कहानी पर बनी एक अन्य फिल्म 'अनारकली' प्रदर्शित होकर सुपरहिट भी हो गई। वर्ष 1960 में जब मुगल ए आजम रिलीज हुई तो इसने टिकट खिडक़ी पर सारे रिकार्ड तोड़ दिये। फिल्म का संगीत उन दिनो काफी लोकप्रिय हुआ। 
 
इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि संगीतकार नौशाद ने फिल्म का संगीत देने से मना कर दिया था। हुआ यूं कि के. आसिफ ने नौशाद को फिल्म का संगीत देने के लिए एक लाख रूपए का एडवांस देने की पेशकश की थी पर नौशाद ने अपनी व्यस्तता के कारण संगीत देने के प्रस्ताव ठुकरा दिया।
 
के. आसिफ हर कीमत पर फिल्म में नौशाद का ही संगीत चाहते थे। उन्होंने जब नौशाद को काम करने के लिए रूपयों का लालच दिया तो वह पलटकर बोले 'क्या आप समझते हैं कि पैसे से हर चीज खरीदी जा सकती है और आप हर चीज खरीद लेंगे। अपने पैसे उठाएं मैं फिल्म नहीं करूंगा'। इस पर आसिफ साहब ने चुटकी बजाते हुए कहा 'कैसे नहीं करेंगे इतने पैसे दूंगा कि आज तक किसी ने नहीं दिए होंगे।' जब आसिफ साहब ने और पैसा बढ़ाने के लिए इशारा किया तो नौशाद ने गुस्से में आकर नोटों का बंडल फेंक दिया। कमरे में नोट ही नोट बिखर गए। तब उनकी पत्नी और नौकर ने सारे नोट उठाए फिर नौशाद ने कहा 'अच्छा आसिफ साहब आप अपने पैसे अपने पास रख लीजिए हम फिल्म में काम करेंगें।'
 
फिल्म मुगल ए आजम की सफलता के बाद के. आसिफ ने राजेन्द्र कुमार और सायरा बानो को लेकर 'सस्ता खून मंहगा पानी' का निर्माण कार्य शुरू किया लेकिन कुछ दिनों की शूटिंग होने के बाद उन्होंने इस फिल्म का निर्माण बंद कर दिया और गुरूदत्त और निम्मी को लेकर लैला मजनूं की कहानी पर आधारित मोहब्बत और खुदा का निर्माण कार्य आरंभ कर दिया। 
 
वर्ष 1964 में गुरूदत्त की असमय मृत्यु के बाद उन्होंने गुरूदत्त की जगह अभिनेता संजीव कुमार को काम करने का मौका दिया। लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ और 9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने से वह इस दुनिया को अलविदा कह गये। बाद में उनकी पत्नी अख्तर के प्रयास से यह फिल्म वर्ष 1986 में प्रदर्शित हुई।
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