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Written By समय ताम्रकर

प्रकाश मेहरा : ओ साथी रे, तेरे बिना भी क्या जीना

प्रकाश मेहरा
IFM
‘ओ साथी रे, तेरे बिना भी क्या जीना...’ प्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘मुकद्दर का सिकंदर’ का एक लोकप्रिय गीत है। प्रकाश मेहरा अपने जीवन में भी इस गीत का अनुसरण करते थे। वे अपनी पत्नी को बेहद चाहते थे, जो अपने अंतिम वर्षों में कोमा में रहीं और बाद में उनका निधन हो गया। ‘तेरे बिना भी क्या जीना’ की तर्ज पर प्रकाश मेहरा भी टूट गए। पत्नी के गम में वे कई दिनों तक अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते थे और अकेले गुमसुम से बैठे रहते थे। फिल्मी दुनिया से उन्होंने अपने आपको काट लिया था और नैराश्य में चले गए थे। अपने आखिरी कुछ महीने अस्पताल में गुजारने के बाद 17 मई की सुबह उन्होंने अंतिम साँस ली। प्रकाश मेहरा की तबीयत खराब होने का पता बॉलीवुड को तब चला जब अमिताभ बच्चन उनसे मिलने गए। बॉलीवुड के लोग कितने निष्ठुर हैं, इसका पता इस बात से ही चल जाता है कि एक समय हिट पर हिट फिल्म बनाने वाले प्रकाश की क्या हालत है, इस बारे में किसी को सुध भी नहीं थी। प्रकाश मेहरा कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे, लेकिन अमिताभ को देख उन्होंने प्रतिक्रिया दी थी। शायद वे अपने प्रिय सितारे का ही इंतजार कर रहे थे और उन्हें देख उनके दिल को ठंडक महसूस हुई।

अमिताभ को बनाया सुपरस्टार
अमिताभ को फिल्मों में पहला अवसर ख्वाजा अहमद अब्बास ने दिया था, लेकिन इसके बाद अमिताभ ने लगातार एक दर्जन फ्लॉप फिल्में दीं और उनसे किसी को भी उम्मीद नहीं थी। प्रकाश मेहरा के पास ‘जंजीर’ की पटकथा तैयार थी, जिसे देवआनंद, धर्मेन्द्र, राजकुमार जैसे अभिनेता ठुकरा चुके थे। सुपरस्टार्स के इन नखरों से परेशान मेहरा ने अमिताभ को चुना और उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में ऐसा पेश किया कि वर्षों तक अमिताभ अपनी इस इमेज के जरिये दर्शकों का मनोरंजन करते रहे। इस फिल्म के लिए जब प्राण ने अमिताभ के साथ पहला शॉट देने के बाद प्रकाश मेहरा को कोने में ले जाकर कहा ‘क्या कमाल का लड़का तुमने चुना है। ये जरूर सुपरस्टार बनेगा। प्राण और प्रकाश मेहरा की पैनी नजर सही साबित हुई और बॉलीवुड को मेगास्टार मिला। इसके बाद अमिताभ और प्रकाश मेहरा की जुगलबंदी ने अनेक सफलतम फिल्में दीं।

कहानी प्रस्तुत करने में जादूगर
प्रकाश मेहरा की फिल्मों को यदि आप देखें तो पाएँगे कि उनकी फिल्मों की कहानी बड़ी सीधी और सरल होती है। वे इसे स्क्रीन पर इस तरह पेश करते थे कि दर्शक कहानी और किरदारों में खो जाया करते थे। खुद अमिताभ ने इस बात को स्वीकारा कि कभी भी प्रकाश मेहरा ने कैमरा एंगल या तकनीक पर जोर नहीं दिया और हमेशा कहानी और स्क्रीनप्ले पर ध्यान दिया। उन्होंने आम दर्शकों को ध्यान में रखकर फिल्में बनाईं और उनकी भाषा इतनी सरल रखी कि सभी उसको समझ सकें। शायद इसीलिए उनकी फिल्मों ने कामयाबी हासिल की। उनकी फिल्मों के पात्र अकसर अनाथ रहते थे। वे समाज या अपनों द्वारा सताए रहते थे। उनकी इस पीड़ा को मेहरा ने ‘शराबी’, ‘लावारिस’ और ‘मुकद्दर का सिकंदर’ में बखूबी पेश किया। एक अनाथ का दर्द मेहरा अच्छे से समझते थे। कम उम्र में ही उनके पिता साधु बन गए और उन्होंने अपना रास्ता खुद तय किया। उन्हें अपने परिवार से किसी तरह की मदद नहीं मिली।

गीत-संगीत की समझ
प्रकाश मेहरा ने जितनी भी फिल्में बनाईं, उनके गीत हिट रहे और आज भी सुने जाते हैं। वे गीतों का इस्तेमाल अपनी फिल्मों में फिलर के रूप में नहीं करते थे, बल्कि वो कहानी को आगे बढ़ाने में सहायक होते थे। वे गीत के लिए सिचुएशन बनाने में खासे माहिर थे। उनकी फिल्मों के गीत अर्थपूर्ण होते थे और गीतों के जरिये फिल्म के किरदार अपने भाव पेश करते थे। उन्होंने भी अपनी फिल्मों के लिए कई गीत लिखे। कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी ने मेहरा की अधिकांश फिल्मों में संगीत दिया।

अमिताभ को लेकर बड़ी योजनाएँ
अपने प्रिय सितारे अमिताभ बच्चन को लेकर प्रकाश मेहरा के पास कई बड़ी योजनाएँ थीं, जो क्रियान्वित नहीं हो सकीं। अमिताभ और हॉलीवुड सितारों को लेकर उन्होंने हिंदी और अँग्रेजी में बनने वाली भव्य फिल्म बनाने की योजना बनाई थी। इसी तरह उनकी एक फिल्म का निर्देशन भी अमिताभ करने वाले थे, लेकिन यह बात घोषणा से आगे नहीं बढ़ पाई।

मनमोहन देसाई से टक्कर
अमिताभ जब सुपर सितारा थे, तब प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई उनके प्रिय निर्देशक थे। मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा में कभी नहीं बनी। उनमें इस बात की होड़ मची रहती थी कि अमिताभ को लेकर कौन बड़ी हिट फिल्म बनाता है। दोनों बड़बोले बयान जारी करते थे और अपनी फिल्मों को बड़ी हिट साबित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। मेहरा और देसाई में सिर्फ एक ही कॉमन बात थी-अमिताभ।

अमिताभ से नाराज मेहरा!
‘जंजीर’ से लेकर ‘जादूगर’ तक अमिताभ-प्रकाश का लंबा साथ चला। ‘जादूगर’ को छोड़ उनके द्वारा साथ की गई सारी फिल्में सुपरहिट रहीं। ‘जादूगर’ फ्लॉप हुई और अमिताभ-मेहरा के संबंधों में खटास आ गई। कहा जाता है कि इस फिल्म के फ्लॉप होने में प्रकाश मेहरा ने अमिताभ को दोषी माना। प्रकाश मेहरा की ‘जादूगर’ और मनमोहन देसाई की ‘तूफान’ साथ में तैयार हुई। अमिताभ ने मनमोहन देसाई की फिल्म को प्राथमिकता देते हुए इसे पहले प्रदर्शित करवाया। ‘तूफान’ के दो सप्ताह बाद ‘जादूगर’ प्रदर्शित हुई। अमिताभ ‘तूफान’ में भी जादूगर बने थे और जादूगर में भी। उन्होंने यह बात मेहरा से छिपाई थी। इस वजह से प्रकाश मेहरा को गहरा धक्का पहुँचा और उन्होंने अमिताभ को लेकर कभी फिल्म नहीं बनाई। मेहरा ने ‘जिंदगी एक जुआ’ और ‘बाल ब्रह्मचारी’ के जरिये ये साबित करने की कोशिश की कि वे अमिताभ के बिना भी सफल फिल्म बना सकते हैं, लेकिन दोनों फिल्में फ्लॉप हो गईं। इसके बाद प्रकाश मेहरा ने अपने आपको शराब में डुबो लिया और अमिताभ ने वक्त के साथ चलने वाले निर्देशकों को प्राथामिकता दी। मेहरा शराब के सहारे अपनी यादों की जुगालियाँ करते रहे। एक समय उनका ऑफिस लोगों से भरा रहता था, लेकिन जब उन्होंने फिल्म बनाना छोड़ दिया तो अकेले रह गए।

प्रकाश मेहरा की श्रेष्ठ फिल्में
जंजीर- उस दौर में समाज के प्रति युवा लोगों में आक्रोश था। मेहरा ने यह बात पकड़कर अमिताभ को उस वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में पेश किया। अमिताभ का शानदार अभिनय और मेहरा का तीखे निर्देशन ने ‘जंजीर’ को एक कामयाब फिल्म बनाया।

मुकद्दर का सिकंदर- इस फिल्म की प्रेरणा ‘देवदास’ से लेकर प्रकाश मेहरा ने इसे अपने कमर्शियल नजरिये से पेश किया। मेहरा की फिल्मों के संगीत की बात की जाए, तो ‘मुकद्दर का सिकंदर’ के संगीत को श्रेष्ठ कहा जा सकता है। अमिताभ, विनोद खन्ना और राखी के करियर की बड़ी हिट फिल्मों में से यह एक मानी जाती है।

नमक हलाल- अमिताभ बच्चन को हास्य भूमिका सौंपी गई। क्रिकेट की कमेंट्री और मक्खी को मारने वाले दृश्य और ‘पग घुँघरू बाँध’ और ‘आज रपट जाएँ’ जैसे गाने आज भी लोगों को याद हैं। ‘

शराबी- अभिनय की दृष्टि से यह फिल्म अमिताभ की श्रेष्ठ फिल्मों में से मानी जाती है। एक साधारण कहानी को प्रकाश मेहरा ने असाधारण तरीके से पेश किया। फिल्म में कई लंबे दृश्य और गाने हैं, जिन्हें उन्होंने कुशलता से पेश किया।

प्रकाश मेहरा : एक नजर
13 जुलाई 1969 को उत्तरप्रदेश में जन्मे प्रकाश मेहरा को फिल्मों के प्रति प्यार मुंबई में खींच लाया। वे हीरो बनने आए थे, लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिले। 1968 में उन्होंने प्रोडक्शन कंट्रोलर के रूप में अपना करियर शुरू किया। 1969 में उन्होंने शशि कपूर और बबीता को लेकर ‘हसीना मान जाएगी’ का निर्देशन किया। फिल्म को अच्छी कामयाबी और प्रकाश मेहरा को पहचान मिली। कुछ फिल्म निर्देशित करने के बाद उन्होंने अपने बैनर तले पहली फिल्म ‘जंजीर’ बनाई। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने बैनर तले उन्होंने कुछ छोटी फिल्मों का भी निर्माण किया। हेराफेरी, मुकद्दर का सिकंदर, लावारिस, नमक हलाल, शराबी जैसी सफल फिल्मों से उन्होंने तहलका मचा दिया। पोस्टर पर प्रकाश मेहरा का नाम टिकट खरीदने के लिए काफी होता था। ‘बाल ब्रह्मचारी’ (1996) उनके द्वारा निर्देशित आखिरी फिल्म थी। जबकि निर्माता के रूप में ‘मुझे मेरी बीवी से बचाओ’ 2001 में प्रदर्शित हुई थी। 17 मई 2009 को उनका निधन हुआ।

प्रमुख फिल्में :
हसीना मान जाएगी, मेला, हाथ की सफाई, हेराफेरी, मुकद्दर का सिकंदर, ज्वालामुखी, लावारिस, नमक हलाल, शराबी, मुकद्दर का फैसला, जादूगर, जिंदगी एक जुआ।