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Written By समय ताम्रकर

जया बच्चन : सादगी और ग्लैमर का मिश्रण

जन्मदिन (9 अप्रैल) पर विशेष

Jaya Bachchan | जया बच्चन : सादगी और ग्लैमर का मिश्रण
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जया भादुड़ी ने ऐसे समय में फिल्मों में प्रवेश किया था, जब परदे पर शर्मिला टैगोर, मुमताज और हेमा मालिनी की चमक-दमक फैली हुई थी। काका यानी उस दौर के सुपर स्टार राजेश खन्ना के नगाड़े बॉक्स आफिस पर घनघना रहे थे। सत्तर के दशक में सीधी-सादी, मासूम-सी लड़की का ग्लैमर की दुनिया में आना और सफल होना, एक तरह से नामुमकिन जैसा था लेकिन जया की सादगी दर्शकों को एकदम से लुभा गई। उन्हें जया के मासूम चेहरे में एक भारतीय लड़की के दर्शन हुए। दर्शकों को लगा जैसे वे पड़ोस में रहने वाली लड़की हों।

जया भादुड़ी को सबसे पहले बंगला के महान फिल्मकार सत्यजित रे ने अपनी फिल्म ‘महानगर’ में पेश किया था। इसके पहले वे भारतीय फिल्म एंड टेलीविजन फिल्म इंस्टीट्यूट की डिप्लोमा फिल्म ‘सुमन’ में कैमरे का सामना कर चुकी थीं। ‘सुमन’ फिल्म के डायरेक्टर उनके सहपाठी मदन बावरिया थे। जया ने कैमरे से आँख कुछ इस अंदाज में मिलाई थी कि बंबइया निर्माता-निर्देशकों को वह लुभा गई।

ऋषिकेश मुखर्जी ने ‘सुमन’ फिल्म में जया को देखा, तो अपनी फिल्म ‘गुड्डी’ में स्कूल-गर्ल के रूप में चुन लिया। ‘गुड्डी’ फिल्म में स्कूल गर्ल फिल्म स्टार धर्मेंद्र की दीवानी है। ‘गुड्डी’ फिल्म सफल रही और जया को फौरन राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘उपहार’ में नायिका का रोल मिल गया। दर्शकों को जया भा गईं। उनके लिए वे नई आदर्श कन्या बन गईं। अपनी सादगीभरी पोषाक और सीधे-सरल रोल के कारण दर्शक जया को पसंद करने लगे।

जया ने भी तय कर लिया था कि वे हिन्दी फिल्म की हीरोइन की इमेज को बदल देंगी। अब तक फिल्मों में हीरोइन को हीरो के आसपास नाचते-गाते, रोमांस करते ही दिखाया जाता रहा था। हीरोइन भी बुद्धिमान हो सकती है। वह अपने फैसले खुद कर सकती है। जरूरत पड़ने पर माता-पिता या ससुराल वालों से तर्क-वितर्क कर सकती है, ऐसा कभी दिखाया नहीं गया था। वह महज शो-पीस या फिर घर की चाहरदीवारी में 'मैं चुप रहूँगी' अंदाज में आँसू बहाने वाली अबला जैसी दिखाई जाती थी।

जया ने अत्यंत कुशलता के साथ अपनी इमेज बनाई और पिया का घर, अनामिका, परिचय, कोरा कागज, अभिमान, मिली, कोशिश जैसी कई उम्दा फिल्में कीं। जया की जब सशक्त अभिनेत्री की इमेज बन गई तो अस्सी के दशक के नामी नायक उनके साथ काम करने से घबराने लगे। सिर्फ अमिताभ बच्चन और संजीवकुमार जया के लगातार नायक बनते रहे। परदे की नजदीकियाँ धीरे-धीरे अमिताभ-जया को निजी जिंदगी में भी पास लाती चली गईं और एक दिन वे लम्बूजी अमिताभ की पत्नी बन गईं।

जया ने अपने दौर की नायिकाओं से अपने को उन्नीस कभी साबित नहीं किया। वे शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल के समकक्ष अभिनेत्री मानी गईं। शादी के बाद घरेलू जिन्दगी जीने और अमिताभ के सुपरस्टार बन जाने की व्यस्तता के चलते उन्होंने फिल्मों में काम करना कम कर दिया।

बेटे अभिषेक का जन्म। बेटी का जन्म। दोनों की परवरिश। अमिताभ की बीमारी। बेटे का करियर। फिर ऐश्वर्या का बहू बनकर गृह प्रवेश। इन तमाम घटनाओं ने उन्हें घर के बाहर नहीं जाने दिया। उन्होंने बच्चों के साथ पति के करियर को भी संभाला। एक जुझारू स्त्री होने के नाते उन्होंने कई बार अग्नि परीक्षाएँ दीं और सबमें सफल रहीं। माँ रिटायर होती है जैसे नाटक में काम कर उन्होंने देश-विदेश में लोकप्रियता के परचम फहराए।

आज बच्चन परिवार दुनिया का सबसे अधिक ग्लैमरस, प्रसिद्ध और पैसे वाला प्रतिष्ठित परिवार है। एक कहावत है कि देने वाला जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है लेकिन बच्चन परिवार के मामले में आकाश के सारे बादल उनके घर की छत पर ठहरकर पैसों और प्रसिद्धि की लगातार बारिश कर रहे हैं। सुपरस्टार्स से भरे इस परिवार में जया का अपना एक अलग ही स्थान है।

जया बच्चन : फिल्मोग्राफी