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Last Updated : शुक्रवार, 21 अगस्त 2020 (15:23 IST)

नसीरुद्दीन शाह बोले- विदेश घूमने जाने के लिए साइन कर ली थी एक फिल्म

नसीरुद्दीन शाह बोले- विदेश घूमने जाने के लिए साइन कर ली थी एक फिल्म - shabana azmi film mee raqsam actor naseeruddin shah interview
मशहूर शायर और गीतकार कैफी आजमी कि जन्म शताब्दी पर उनकी बेटी शबाना आजमी और बेटे बाबा आजमी ने मिलकर एक फिल्म 'मी रक्सम' यानी मैं नाचूंगी का निर्माण किया है। यह फिल्म उन्होंने अपने पिता को ही अर्पित की है। मी रक्सम ऐसी लड़की की कहानी है जो एक मुसलमानी खानदान से है और उसकी इच्छा है कि वह दक्षिण भारतीय डांस भरतनाट्यम में पारंगत हो और परफॉर्म करें। हालांकि उसके आसपास के सभी लोग और उसकी जात बिरादरी वाले इस बात के बिलकुल खिलाफ होते हैं, इस लड़की के पिता ही अकेले ऐसे शख्स बनकर आते हैं जो उसके सपने को पूरा करने में अपनी बिरादरी वालों के खिलाफ खड़े होकर अपनी बेटी का साथ देते हैं। 

 
इस फिल्म में शबाना आजमी एक प्रेजेंटर की भूमिका में है। वही बाबा आजमी ने इस फिल्म को निर्देशित किया है। इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाने वाले नसीरुद्दीन शाह की वेबदुनिया से खास बातचीत हुई। बातचीत करते हुए नसीरुद्दीन शाह बताते हैं कि मेरा किरदार एक ऐसे शख्स का है जिसे लगता है कि वो जो कुछ कहेगा मिजवान वाले यानी उसके गांव वाले उसकी हर बात को पत्थर की लकीर मानेंगे और उसकी बातों पर चलेंगे। ऐसे में एक लड़की जो भरतनाट्यम सीखना चाह रही है। वह उसके पिता को भी अपने तरीके से समझाता है कि कैसे उसे अपनी जात बिरादरी की ही बात माननी चाहिए ना कि अपनी बेटी के सपनों के बारे में सोचना चाहिए।
नसीर बात को आगे बढ़ाते हुए बोलते हैं, यह तरीके के जो बहुत कट्टरपंथी होते हैं मैंने अपने आसपास बहुत देखे हैं। मेरे नानाजी की बात कर लो या फिर मेरे मामा जी की ही बात कर लो। उनसे मिलने जुलने वाले जो लोग आए करते थे, उन्हें भी यही लगता था कि वह जो बात कह रहे हैं, वही सही होती है किसी और की बात अगर उनसे कुछ अलग है तो वह बात ही गलत होगी। यानी उन्हें लगता है कि पूरी दुनिया में सिर्फ वही सही सोचते हैं और सही करते हैं। बाकी सब लोगों ने या तो उनके पीछे उनकी बात पर हां में हां मिलाना चाहिए या फिर होना ही नहीं चाहिए।
 
आपको हाशिम के रोल के लिए कुछ खास तैयारी करनी पड़ी।
नहीं रोल अगर अच्छा है तो आप यूं ही करने के मूड में आ जाते हैं और साथ ही में अगर कोई रोल बहुत अच्छे से लिखा गया हो तो फिर आपको उसे करने में कोई मुश्किल नहीं होती। आप सिर्फ उससे थोड़ा सा सजाते धजाते हैं और डायलॉग्स याद करते हैं। मेरा तो मानना है कि किसी भी रोल को पर्दे पर लाने के लिए जितना काम एक एक्टर करता है उसका 40 प्रतिशत काम तो एक निर्देशक करता है। सारी वाहवाही हम एक्टर्स लूट कर ले जाते हैं। जबकि अगर कोई रोल अच्छे से लिखा हो और आपका निर्देशक बहुत सधा हुआ हो तो आपको रोल पर बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत पड़ती नहीं है।

 
फिल्म में आप और शबाना जी हैं। इसके पहले जाने कितनी फिल्मों में आप दोनों को साथ में देखा गया है। क्या इस फिल्म में भी हम आपको साथ में देखेंगे?
(हंसते हुए) नहीं मुझे तो इस बात की हैरानी है कि बाबा ने ऐसा किया नहीं। निर्देशक ने मुझे शबाना को एक साथ क्यों नहीं रखा? क्यों ऐसा नहीं हुआ कि कोई हाशिम की हाशिमा भी बन गई और शबाना भी मेरे साथ आ गई?

आप अपने रोल कैसे चुनते हैं?
रोल चुनने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कभी मुझे स्क्रिप्ट पसंद आ गई कभी मुझे वह रोल पसंद आ गया। कभी मुझे वह तरीका पसंद आ गया जिस तरीके से वह कहानी कही जाने वाली है। कभी निर्देशक मेरा दोस्त है तो कभी पैसे बहुत ज्यादा अच्छे मिल रहे हैं और कभी-कभी जरूरत हो जाती है तो मैं रोल निभा लेता हूं। और एक और असली बात बताता हूं एक फिल्म तो मैंने इसलिए की थी क्योंकि उसने मुझे फॉरेन लोकेशन पर शूट करने जाना मिल रहा था। हुआ कुछ यूं कि मैं फिल्में कर रहा था। मेरे सामने कहानी आई, मालूम पड़ा कि स्विट्जरलैंड में शूट होने वाली है तो मैंने ना इधर उधर देखा ना ज्यादा सोचा बस हां कह दी ताकि मैं विदेश घूम कर आ जाऊं शूट के बहाने ही सही।
 
अच्छा आप कैसी फिल्में करना पसंद नहीं करते हैं यह बताइए।
मैं ऐसी कोई फिल्में करना पसंद नहीं करता जिसकी स्क्रिप्ट पढ़ कर मुझे ऐसा न लगे कि मुझे इसके बारे में ज्यादा जानना है या ऐसी स्क्रिप्ट जिसमें बर्दाश्त थी ना कर सकूं। और दिल से कह दे कि यार यह तो फिर नहीं कर पाऊंगा मैं। ऐसी स्क्रिप्ट लिए मैं कहता हूं कि उनके अंदर से एक बदबू से आती है और मैं दूर हो जाता हूं।

कभी ऐसा हुआ हो तो वाकया शेयर करें।
नाम तो नहीं बताता, लेकिन हां ऐसा वाकया हुआ था। एक निर्देशक साहब आए। उनके तीन चार लोग साथ में आए साथ में कैसेट लेकर आए और रिकॉर्ड प्लेयर भी लेकर आ गए। उसके बाद मंडली जमी उन्होंने कहा कि फिल्म की शुरुआत ऐसे होगी, हीरोइन ऐसे आएगी और फिर गाना बजेगा तो उन्होंने अपने रिकॉर्डर पर गाना बजा दिया। उसके बाद वह कहानी फिर शुरू कर दी। उन्होंने इसके बाद कहानी कुछ ऐसे बढ़ेगी और यूं होगा और ऐसा होगा, इसके बाद एक बार फिर से हम गाना रखने वाले हैं।

फिल्म में उन्होंने फिर अपनी रिकॉर्डर पर गाना बजाया और उसके बाद जैसे ही वह आगे बढ़ने को है। मैंने उनको मना कर दिया। मैंने उनसे हाथ जोड़कर कहा कि देखिए यह फिल्म नहीं कर सकता। मुझे बिल्कुल इंटरेस्ट नहीं आ रहा है। और मैं तो एक्टर हूं तो सुनते हुए बैठ गया। अगर मैं दर्शक होता तो मैं पहले 10 मिनट के अंदर ही आपकी फिल्म छोड़कर भाग चुका होता।
 
लॉकडाउन के इस समय में या कोविड-19 समय में आपने कुछ अलग किया है या कुछ सीखा है?
इस पूरे समय में मैंने बहुत अलग बातें देखीं और महसूस की। इन कुछ महीनों के पहले मैंने जिंदगी में कभी भी घर के किसी काम में अपना हाथ नहीं बटाया था लेकिन इस बार ऐसा लगा कि मुझे हाथ बटाना चाहिए। काम भी करना चाहिए। हालांकि मुझे घर में रहने की आदत जरूर थी। मैं बहुत ज्यादा घर के बाहर घूमने वालों में से नहीं हूं। इसलिए घर पर रहना कभी परेशानी का सबब नहीं बना। लेकिन घर के कामों में पार्टिसिपेशन करना शुरू कर दिया है। अब आप इससे कोई खूबी कह लें या फिर कुछ नया सीख पहले तो वह आप पर है।

कैफी साहब की शताब्दी है। आप की कुछ यादें हैं उन्हें लेकर।
क़ैफी साहब के बारे में इतना बता सकता हूं। कि अगर वह आज जिंदा होते मुझे यह फिल्म करते हुए देखते तो उन्हें मुझ पर फक्र होता। वह मुझे बहुत प्यार करते। उन्होंने मुझे अपनी जिंदगी का एक बहुत बेहतरीन कंपलीमेंट भी दिया है। जब उन्होंने मेरी उमराव जान देखी तो मुझे आकर बोलने लगे कि तुमने तो फिल्म में ऐसे काम किया है। जैसे कि तुम जाने कितनी पुश्तों से दलाली का ही काम करते आ रहे हो? लोग इसे सुनकर बुरा भी मान सकते हैं। लेकिन आप सच बताइए किसी एक्टर के लिए यह सुनना कि उसका रोल इतना विश्वसनीय था कैसे पसंद नहीं आएगा।
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