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मनोज बाजपेई अपने भैया जी, 100वीं फिल्म और बेटी के बारे में | Exclusive Interview

जब आप ऐसे कई किरदार निभाते हैं जो नेगेटिव हो या फिर बड़े हैवी वाले रोल रहे हो तो उसका असर, आपके दिमाग पर, दिल पर पड़ता है।

मनोज बाजपेई अपने भैया जी, 100वीं फिल्म और बेटी के बारे में | Exclusive Interview
"भैया जी फिल्म का निर्देशक अपूर्व आज के जमाने का निर्देशक है जो सोशल मीडिया पर ज्यादा रहता है। मैं तो सोशल मीडिया पर ज्यादा नहीं रहता। उसी ने एक दिन आकर मुझे कहा कि आप जानते हैं ना कि फिल्म इंडस्ट्री में आपको 30 साल हो जाएंगे और शायद 'भैया जी' आपकी 100वीं फिल्म होगी। यह सुन मैं थोड़ा सा चौंक गया। मैंने 'भैया जी' जैसी फिल्म कभी नहीं की। कमर्शियल एक्शन फिल्में 'सत्यमेव जयते' या 'बागी 2' की हैं, लेकिन 'भैया जी' जैसी फिल्म करूंगा कभी नहीं सोचा था।"
 
यह कहना है मनोज बाजपेई का जिनकी फिल्म 'भैया जी' 24 मई को रिलीज हो रही है। इस फिल्म में भैया जी बने मनोज बाजपेई एक्शन करते हुए दिखाई देने वाले और वह भी बिना किसी बॉडी डबल के। 
 
मैंने 'भैयाजी' करने से मना कर दिया था 
मनोज अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि "मैंने एक ऐसी चीज बनाने की सोची थी जो थोड़ी सी सीरियस भी रहेगी और थोड़ा कमर्शियल भी हो जाएगा। यानी कि बीच रास्ते को अख्तियार करने वाली ऐसी फिल्म होगी जिसमें सारे गुण होंगे। लेकिन जब मैंने कहानी सुनी तब निर्देशक अपूर्व ने कहा कि आप मुझे यह स्क्रिप्ट दीजिए। मैं इसको पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म बनाना चाहता हूं। पहले तो मैंने मना ही कर दिया। लेकिन यह तो मानने को तैयार ही नहीं था तो सोचा कि चलो भाई इस लड़के में इतना ज्यादा जज्बा है तो क्यों नहीं उसके साथ हो लिया जाए? 
 
मैंने तो अपूर्व को कह दिया था कि मुझसे यह सब होता नहीं है। मैं इतना एक्शन कर नहीं पाऊंगा। क्यों ना तुम्हारी मीटिंग किसी अच्छे एक्टर से करवा दूं। उसे लेकर फिल्म बना लेना, लेकिन अपूर्व जिद पर अड़ गया कि ऐसे से तो यह आम फिल्म बन जाएगी। मनोज बाजपाई जब ऐसी एक्शन ओरिएंटेड फिल्म करेगा तो ही यह खास बनेगी।"


 
कभी सोचा नहीं था 100 फिल्म कर सकूंगा 
सौ फिल्में कर सकूंगा, यह तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। एक दो की थी तो लगा कि शायद आठ-दस तक कर लूंगा। लेकिन एक दिन मुझे लौटना होगा। आप देखिए कैसे सौ फिल्म की तरफ आ गया हूं। इसका सारा श्रेय भगवान और मेहनत को दूंगा। वैसे लक बहुत ज्यादा मेरे साथ में नहीं रहा। लेकिन यह कह सकता हूं कि मेहनत तो खूब की। कभी छोटी फिल्म की। कभी बहुत ही छोटी फिल्म की। कभी टेलीविजन कर लिया। ओटीटी पर भी आ गया। करियर में कभी ऊपर गया तो कभी धड़ाम से नीचे आ गया, लेकिन रूका नहीं। मैं शायद इतना खुश किस्मत जरूर रहा कि मुझे बड़े अच्छे निर्देशक मिले। करियर जब नीचे की ओर जाता तो कोई अच्छा निर्देशक मुझ को अच्छी फिल्म दे देता और फिर करियर को रफ्तार मिल जाती। इसके अलावा सफलता का एक कारण यह भी रहा कि अगर मैं कोई चीज ठान लेता हूं तो करके ही रहता हूं। फिर उसमें मुझे एक दिन लगे या चार साल लग जाए। एक बार पड़ गया पीछे तो वह कर के ही रहूंगा।
 
मेरे भैया जी तो रामगोपाल वर्मा हैं  
भैया जी वह होते हैं जो आपके मेंटर होते हैं। आपको सही गलत की बातें बताते हैं। मेरी जिंदगी में राह दिखाने वाले मेरे भैया जी अगर कोई है तो वह है राम गोपाल वर्मा ही है। हां, यह बात सही है कि मैं उनके साथ बहुत सारी फिल्में अभी नहीं कर पा रहा हूं। लेकिन फिर भी छह फिल्में तो की है। 
 
अभिनेता होने के साइड इफेक्ट 
जब आप ऐसे कई किरदार निभाते हैं जो नेगेटिव हो या फिर बड़े हैवी वाले रोल रहे हो तो उसका असर, आप के दिमाग पर, दिल पर पड़ता है। स्विच ऑन स्विच ऑफ पॉलिसी ऐसी नहीं हो सकती है। वैसे भी किसी एक बड़े निर्देशक ने कहा है कि हर एक्टर के मस्तिष्क में कहीं किसी कोने में एक खरोंच जरूर रहती है, जो उसका किरदार उसके मस्तिष्क पर बना देता है। यह अभिनेता होने का एक साइड इफेक्ट है। लेकिन ऐसे में मैंने रास्ता निकाला कि इसके बारे में सोचना ही बंद कर दो, कोई रोल निभाओ फिर अगले रोल पर चले जाओ तो आपके दिमाग को इतना समय ही ना मिले। क्या असर छोड़ रहा है उससे कैसे निकलूं? सौ बात की एक बात अगर कहूं तो वह यह कि जब आपको कुछ नया करना हो और रोल के प्रभाव से बाहर निकलना हो तो अपने परिवार के साथ कहीं घूमने निकल जाओ। 
 
मेरी बेटी को मेरी फिल्म 'बंदा' बहुत पसंद है  
मेरी बेटी को मेरी फिल्में देखना अच्छा लगता है। उसने बंदा तीन बार देखी है। मुझे लगता है बंदा ऐसी फिल्म है जिसे हर लड़की को देखनी ही चाहिए ताकि उसको समझ में आए कि परेशानियां और चैलेंज जिंदगी में कहां-कहां पर है। वह तीन बार देखने के बाद वह बोली कि आप की सबसे अच्छी फिल्म है। वहीं जोरम जैसे फिल्म देखकर उसने एक घंटे के अंदर बंद कर दी। वह बोली कि यह फिल्म मुझे नहीं देखनी है। उसको अच्छा नहीं लगा कि 3 महीने की बच्ची को उठाकर मैं भाग रहा हूं और वह इस बात पर रोने भी लगी थी कि तीन महीने की बच्ची को उसकी मां से अलग हो जाना पड़ा। अगर गुलमोहर की बात करूं तो वो फिल्म देखने के बाद बाथरूम में जाकर रोया करती थी क्योंकि तकरीबन डेढ़ साल पहले उसे अपनी नानी को खो दिया था और वो अपने नानी के बड़े करीब थी। जब भी वह शर्मिला टैगोर को देखती तो उसे अपनी नानी याद आ जाती थी। उसको मेरी फैमिली मैन बड़ी अच्छी लगती है। वह उन दोनों बच्चों के बारे में वह पूछती भी रहती है।
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