क्या फिल्में हमेशा बुरा ही करती हैं? कुछ भी अच्छा नहीं करतीं? मध्यप्रदेश सरकार ने अपने नागरिकों के साथ सीधा संवाद स्थापित करने के लिए अपने ढंग की पहली वेबसाइट लाँच की है। इसके ज़रिए नागरिक अपने सुझाव, अपनी शिकायतें सरकार तक पहुँचा सकते हैं। ये वेबसाइट जहाँगीर का वो घंटा है, जिसे बजाने वाले को इंसाफ मिल सकता है। करीब चालीस लोगों ने अपनी बात सरकार तक पहुँचाई भी है। क्या ये आइडिया फिल्मों में पहले नहीं आ चुका? याद कीजिए अनिल कपूर अभिनीत फिल्म "नायक"। इस फिल्म में हीरो मुख्यमंत्री बन जाता है और जनता की शिकायतें फोन से सुनता है, तत्काल कार्रवाइयाँ करता है और देखते ही देखते प्रदेश का लोकप्रिय नेता बन जाता है।
क्या मध्यप्रदेश सरकार का ये कदम फिल्म नायक से प्रेरित नहीं हो सकता? इन दिनों एक विज्ञापन भी आ रहा है। इस विज्ञापन में मंत्री किसी फाइल पर निर्णय लेने से पहले अपनी जनता से पूछता है कि क्या किया जाना चाहिए। मंत्री के पास वे लोग खड़े हैं जो निर्णय अपने पक्ष में कराना चाहते हैं। मोबाइल फोन के ज़रिए प्राप्त राय के आधार पर मंत्री जनता के पक्ष में फैसला लेता है और गलत लोगों के चेहरे उतर जाते हैं। यही विज्ञापन और यही फिल्में संदेश दे रही हैं कि टेक्नालॉजी के इस्तेमाल से हम और अधिक लोकतांत्रिक और अधिक इंसाफपसंद हो सकते हैं। पहले सरकारी बसों में एक लाइन लिखी रहती थी- शिकायत पुस्तिका ड्राइवर के पास है। सरकार अपेक्षा करती थी कि जिस ड्राइवर, कंडक्टर के खिलाफ यात्री को शिकायत करनी है, वो यात्री ड्राइवर से कहेगा कि ज़रा शिकायत पुस्तिका देना मुझे तुम्हारी शिकायत करनी है और ड्राइवर एकदम से पुस्तिका निकाल के दे देगा कि लीजिए साहब कीजिए मेरी शिकायत, पेन न हो तो पेन ये लीजिए।
टेक्नालॉजी ने बात आसान कर दी है। समाज की बेहतरी के संदेश देने वाले विज्ञापनों ने कहीं न कहीं अचेतन में ये बात जरूर डाल दी है कि उस आदमी तक शिकायत बहुत जल्द पहुँच सकती है, जिस तक पहुँचना चाहिए। इसी तरह सुझाव भी संबंधित आदमी तक पहुँचाना कठिन नहीं है। अब बात अमल की आती है। अमल नहीं भी हुआ तो आदमी इस आस में तो जी ही सकता है कि उसके सुझाव पर विचार हो रहा होगा। शिकायत करने वाले की सुनवाई भले न हो, पर उसकी भड़ास तो निकल ही सकती है। दिक्कत यही है कि धार-झाबुआ का आदिवासी वेबसाइट नहीं समझता। कम्प्यूटर तो छोड़िए आज भी कितने ही आदिवासी ऐसे हैं जिन्होंने कभी रेल भी नहीं देखी। देखना है कि अपने मुख्यमंत्री फिल्म नायक के अनिल कपूर के माफिक लोगों की समस्याएँ सुलझा पाते हैं या नहीं। तकनीक से बड़ी चीज़ नीयत होती है।