शनिवार, 27 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

अजब किशोर, गजब किशोर

जन्मदिवस पर विशेष

अजब किशोर, गजब किशोर -
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सत्रह वर्ष के किशोर कुमार 1946 में जब मुम्बई पहुँचे, तब उनकी पहचान मात्र अशोक कुमार के भाई के रूप में थी। उन्हें देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि आने वाले समय में यह लड़का फिल्म उद्योग पर छा जाएगा।

किशोर कुमार सही मायनों में हरफनमौला कलाकार थे। अभिनेता, गायक, लेखक, निर्माता, निर्देशक, संगीतकार जैसी कई भूमिकाएँ उन्होंने सफलतापूर्वक निभाईं। इस दुनिया से विदा लिए हुए उन्हें करीब बीस वर्ष हो गए हैं, बावजूद इसके वे आज भी युवा पीढ़ी के चहेते गायक हैं।

कर्कश किशोर : किशोर कुमार की आवाज बचपन में बेहद कर्कश थी। जब वे बोलते या गाते थे, तब उनकी कर्कश आवाज को सुनकर घर वाले बेहद डाँटते थे। एक बार बालक किशोर के पैर का अँगूठा गंभीर रूप से कट गया। इस चोट की वजह से वे लगातार कई दिनों तक रोते रहे। लगातार रोने की वजह से उनकी आवाज में परिवर्तन हो गया। कर्कशता भरी उनकी आवाज मधुर हो गई। उनकी बदली हुई आवाज को सुनकर घर वाले दंग रह गए।

खण्डवा से प्यार : किशोर कुमार का बचपन मध्यप्रदेश के खण्डवा शहर में बीता। इस छोटे-से शहर से निकलकर वे मुम्बई जैसे महानगर में गए, लेकिन खण्डवा उनके दिल में हमेशा बसा रहा। मुम्बई में उन्हें नाम और दाम दोनों मिला, लेकिन वह अपनापन नहीं मिला जो उन्हें खण्डवा में मिला था, इसलिए वे अकसर कहा करते थे कि रिटायरमेंट लेकर खण्डवा में बस जाऊँगा। उनका अंतिसंस्कार खण्डवा में हो, ये उनकी इच्छा थी, जिसे पूरा किया गया। वे हमेशा अपने स्टेज शो का आरंभ इस प्रकार करते थे-

मेरे दादा-दादियों
मेरे नाना-नानियों
मेरे भाई-बहनों
तुम सबको खण्डवा वाले किशोर कुमार का नमस्कार और राम-राम


सुपर स्टार के भाई : यह किस्सा तब का है, जब किशोर खण्डवा में रहते थे। अशोक कुमार तब तक सुपर स्टार बन चुके थे और किशोर सुपर स्टार के भाई। अशोक कुमार की एक फिल्म आने वाली थी, जिसे लेकर किशोर ने अपने दोस्तों में खूब हाँक दी थी। फिल्म जब खण्डवा में लगी तो किशोर अपने दोस्तों को भाई की फिल्म दिखाने के लिए ले गए। उस फिल्म में अशोक कुमार सीधे-सादे व्यक्ति बने थे और खलनायक उन्हें खूब चाँटे मारता है। ये देख किशोर के दोस्तों ने किशोर की खूब हँसी उड़ाई और कहा कि तेरा भाई कितना डरपोक है। फिल्म देखने के बाद किशोर ने अशोक कुमार को फोन लगाया कि वे आइंदा ऐसी फिल्में न करें और यदि करें तो उसे खण्डवा में नहीं लगने दें।

पेड़ों से दोस्ती : किशोर कुमार अकसर चीजों से बात किया करते थे। ऐसा कर उन्हें बेहद सुकून मिलता था। अपने बगीचे में लगे पेड़ों के उन्होंने बाकायदा नाम रख दिए थे और घंटों वे उन वृक्षों से अपने दिल की बातें किया करते थे। उनका मानना था कि इनसान के बजाय पेड़ों से दोस्ती करना अच्छा है। चलती का नाम गाड़ी वाली पुरानी मोटर उन्होंने घर के पिछवाड़े में रखवाई थी। उसमें अकसर वे बैठा करते थे।

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कट तो बोलो : गायन किशोर कुमार का पहला प्यार था। अभिनय के क्षे‍त्र में वे मजबूरीवश आए थे। अभिनय से बचने के लिए वे सीन को अपने हिसाब से करते थे। निर्देशक कुछ और समझाता था और किशोर अजीबोगरीब हरकत करते थे, ताकि उन्हें फिल्म से निकाल दिया जाए। लेकिन हुआ इसके विपरीत। उनकी हरकतों को खूब पसंद किया गया। एक बार उन्हें एक दृश्य में कुछ दूरी तक कार चलाना थी। निर्देशक ने उन्हें कह दिया कि जब वे कट बोलें तब किशोर को गाड़ी रोक देना है। किशोर ने कार चलाई और वे रूके ही नहीं। सीधे चले गए। कुछ देर बाद यूनिट के लोग घबराए कि हीरो कहाँ चला गया। अभी तक वापस नहीं आया। किशोर मुम्बई से निकलकर पनवेल पहुँच गए। वहाँ से उन्होंने फोन लगाया ‍और निर्देशक से पूछा कि कट बोल रहे हो या कार और आगे तक ले जाना है।

जैसा हीरो वैसी आवाज : किशोर कुमार की यह खासियत थी कि वे जिस नायक को अपनी आवाज उधार देते थे, उसी के मुताबिक अपनी आवाज में परिवर्तन कर देते थे। किशोर द्वारा गाए गीत सुनकर आप आसानी से यह अंदाज लगा सकते हैं कि यह गीत देव आनंद पर फिल्माया गया है या राजेश खन्ना पर। किशोर की आवाज उधार लेकर देव आनंद, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन ने सफलता पाई है।

किशोर पर प्रतिबंध : आपातकाल के दौरान किशोर कुमार को संजय गाँधी ने दिल्ली में एक सांस्कृतिक निशा में गाने का न्योता भेजा। किशोर ठहरे मन के राजा। जैसा मूड में आए वैसा वे करते थे। वे पारिश्रमिक माँग बैठे। पारिश्रमिक तो नहीं मिला, पर उन्हें आकाशवाणी और दूरदर्शन पर बैन कर दिया गया। आपातकाल हटने पर 5 जनवरी 1977 को उनका पहला गाना बजा- दुःखी मन मेरे, सुन मेरा कहना, जहाँ नहीं चैना, वहाँ नहीं रहना।

हॉरर फिल्मों का शौक : किशोर कुमार ने अपने घर में एक स्पेशल कमरा तैयार किया था। इस पूरे कमरे में डरावनी फिल्मों की वीडियो कैसेट्‍स रखी हुई थीं। किशोर कुमार अकसर अँधेरा कर इस कमरे में डरावनी फिल्में देखा करते थे। वे घंटों तक कब्रिस्तान में बैठे रहते थे। उनके निराले शौक देखकर फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें सनकी, डरपोक, पागल, कंजूस, सिरफिरा, मस्त कलंदर कहा जाता था।

चार शादियाँ : मनमौजी स्वभाव के मालिक किशोर की अपनी पत्नियों से कम पटी। उन्होंने चार विवाह किए। पहला विवाह उन्होंने रूमा देवी से किया। दो साल बाद उनके यहाँ बेटा हुआ, जिसे अमित कुमार नाम दिया गया। बाद में किशोर का रूमा देवी से संबंध टूट गया। 'चलती का नाम गाड़ी' में किशोर के अभिनय और हरकतों पर मधुबाला मर मिटीं। दोनों ने शादी कर ली। नौ साल चली इस शादी में मधुबाला ज्यादातर समय बीमार रहीं। किशोर ने अपनी पत्नी की खूब सेवा की। मधुबाला के निधन के छह वर्ष बाद 1975 में किशोर ने योगिता बाली से शादी की। यह शादी कुछ ही महीनों में टूट गई। इसके बाद किशोर की जिंदगी में लीना चंदावरकर आईं। लीना और किशोर का सुमित कुमार नामक बेटा है।